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Mar 24, 2012

बकरी की हांक से पद्मश्री की धाक तक

- अतुल श्रीवास्तव

एक छोटा सा गांव। गांव के कोने में एक खपरैल वाला छोटा सा मकान। इस मकान में एक परिवार। परिवार में पति-पत्नी, दो लड़की और दो लड़के - कुल चार बच्चे। बिल्कुल आम ग्रामीण परिवार की तरह। पति खेतों में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने का काम करता था और पत्नी चारों बच्चों की देखभाल करने के अलावा खेत में पति की मदद करने, बकरी चराने और घर के सभी काम करने का जिम्मा उठाती थी।
यह कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है। करीब 11 साल पुरानी है। अब इस कहानी में बदलाव आ गया है। अब इस कहानी की नायिका अपने गांव, अपने खेत और अपने घर तक सीमित नहीं रही। अब अपने हौसले के बल पर यह गांव से निकलकर शहर और अब देश की राजधानी दिल्ली तक अपनी पहचान बना चुकी है। यह पहचान उसने बनाई अपनी इच्छा शक्ति के दम पर। बात हो रही है छत्तीसगढ़ के आखिरी छोर पर बसे राजनांदगांव जिले के एक छोटे से गांव सुकुलदैहान की रहने वाली फूलबासन बाई यादव की। गांव की इस बकरी चराने वाली फूलबासन बाई यादव को देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई। दिल्ली में फूलबासन बाई को यह पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति के हाथों मिला। फूलबासन की महिला सशक्तिकरण को लेकर प्रतिबद्धता का एक सबूत यह भी है कि जिस वक्त दिल्ली में पदम पुरस्कारों की घोषणा हो रही थी उस वक्त भी वह इसी विषय पर काम करने आंध्रप्रदेश के वारंगल में थी। दोपहर में जब मैंने उससे टेलीफोन पर बात की तो उनका कहना था कि यह पुरस्कार उसे नहीं, उन सारी महिलाओं को मिला है जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में उनके साथ मिलकर काम किया है।
मौजूदा समय में छत्तीसगढ़ में महिला सशक्तिकरण की रोल मॉडल बन चुकी फूलबासन बाई का जन्म राजनांदगांव जिले के ग्राम छुरिया में 1971 में पिता श्री झड़ीराम यादव एवं माता श्रीमती सुमित्रा बाई के घर हुआ। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने कक्षा 7वीं तक शिक्षा हासिल की। मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ग्राम सुकुलदैहान के चंदूलाल यादव से हुआ। भूमिहीन चंदूलाल यादव का मुख्य पेशा चरवहे का है। गांव के लोगों के पशुओं की चरवाही और बकरी पालन उनके परिवार की जीविका का आज भी मुख्य आधार है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले छत्तीसगढ़ को पिछड़ा इलाका कहा जाता था और यहां की महिलाएं भी पिछड़ेपन की शिकार थीं। राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 में यहां की महिलाओं को जागृत और सशक्त करने के उद्देश्य से महिला सशक्तिकरण का काम शुरू हुआ। तत्कालीन कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव की पहल पर राजनांदगांव जिले में महिलाओं को एकजुट करने एवं उन्हें जागरूक बनाने के उद्देश्य से गांव- गांव में मां बम्लेश्वरी स्व-सहायता समूह का गठन प्रशासन द्वारा शुरू किया गया। उस समय के तत्कालीन महिला बाल विकास अधिकारी राजेश सिंगी ने इस काम को पूरे जोशो खरोश के साथ किया इसका नतीजा रहा कि मौजूदा समय में राजनांदगांव महिला सशक्तिकरण की दिशा में आदर्श बन गया।
इस अभियान से प्रेरित होकर श्रीमती फूलबासन यादव ने अपने गांव सुकुलदैहान में 10 गरीब महिलाओं को जोड़कर प्रज्ञा मां बम्लेश्वरी स्व-सहायता समूह का गठन किया। महिलाओं को आगे बढ़ाने एवं उनकी भलाई के लिए निरंतर जद्दोजहद करने वाली फूलबासन यादव ने इस अभियान में सच्चे मन से बढ़- चढ़कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। अभियान के दौरान उन्हें गांव- गांव में जाकर महिलाओं को जागरूक और संगठित करने का मौका मिला। अपनी नेक-नियति और हिम्मत की बदौलत श्रीमती यादव ने इस कार्य में जबर्दस्त भूमिका अदा की। देखते ही देखते राजनांदगांव जिले में मात्र एक साल की अवधि में 10 हजार महिला स्व-सहायता समूह गठित हुए और इससे डेढ़ लाख महिलाएं जुड़ गईं। महिलाओं ने एक दूसरे की मदद का संकल्प लेने के साथ ही थोड़ी- थोड़ी बचत शुरू की। देखते ही देखते स्व-सहायता समूह की बचत राशि करोड़ों में पहुंच गई। इस बचत राशि से आपस में लेनदेन करने की वजह से उन्हें सूदखोरों के चंगुल से भी छुटकारा मिला। बचत राशि से स्व-सहायता समूह ने सामाजिक सरोकार के भी कई अनुकरणीय कार्य शुरू कर दिए, जिसमें अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, बेसहारा बच्चियों की शादी, गरीब परिवार के बच्चों का इलाज आदि शामिल है। श्रीमती यादव ने सूदखोरों के चंगुल में फंसी कई गरीब परिवारों की भूमि को भी समूह की मदद से वापस कराने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की।
फूलबासन यादव को 2004-05 में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए छत्तीसगढ़़ शासन द्वारा मिनीमाता अलंकरण से नवाजा गया। 2004-05 में ही महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से बचत बैंक में खाते खोलने और बड़ी धनराशि बचत खाते में जमा कराने के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए फूलबासन बाई को नाबार्ड की ओर से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वर्ष 2006-07 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। 2008 में जमनालाल बजाज अवार्ड के साथ ही जी-अस्तित्व अवार्ड तथा 2010 में भारत सरकार द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। श्रीमती यादव को सद्गुरू ज्ञानानंद एवं अमोदिनी अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। उक्त पुरस्कार के तहत मिलने वाली राशि को उन्होंने महिलाओं एवं महिला समूहों को आगे बढ़ाने में लगा दिया है। इन सबके बाद यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीमती यादव के परिवार का जीवन- यापन आज भी बकरी पालन व्यवसाय के जरिए हो रहा है। सद्गुरू
फूलबासन ने अपने 12 साल के सामाजिक जीवन में कई उल्लेखनीय कार्यों को महिला स्व- सहायता समूह के माध्यम से अंजाम दिया है। महिला स्व- सहायता समूह के माध्यम से गांव की नियमित रूप से साफ- सफाई, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण के लिए सोख्ता गड्ढा का निर्माण, सिलाई कढ़ाई सेन्टर का संचालन, बाल भोज, रक्तदान, सूदखोरों के खिलाफ जन- जागरूकता अभियान, शराबखोरी एवं शराब के अवैध विक्रय का विरोध, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ वातावरण का निर्माण, गरीब एवं अनाथ बच्चों की शिक्षा- दीक्षा के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी फूलबासन ने अहम रोल अदा किया है। राजनांदगांव जिला ही नहीं अपितु पूरे छत्तीसगढ़़ में श्रीमती यादव महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सशक्त सूत्रधार के रूप में जानी जाती हैं।
पद्मश्री पुरस्कार हासिल कर फूलबासन ने नारी शक्ति को साबित किया है। नारी एकता को साबित किया है और साबित किया है कि यदि हौसला हो तो सब कुछ संभव है। बधाई हो फूलबासन को।
संपर्क: सहारा समय राजनांदगांव, मो. 9425240408
Email: aattuullss@gmail.com,
Blog: http://atulshrivastavaa.blogspot.in

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