हिमाचल की पहाडिय़ों में भी है एक एलोरा
-प्रिया आनंद
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कांगड़ा घाटी की रत्न मंजूशा का सबसे कीमती रत्न मसरूर मंदिर हैं। मसरूर मंदिर शिव को समर्पित है, मुख्य मंदिर के बाईं ओर सीढिय़ां हैं, जो ऊपर तक जाती हैं। ऊपर पहुंच कर ही हमें इन मंदिरों की वास्तविक सुंदरता देखने को मिलती है। यहां से आप पूरी कांगड़ा घाटी देख सकते हैं।
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मसरूर के मंदिरों की दीवारों पर चित्रित तथा गवाक्षों में स्थापित मुर्तियां शिव, विष्णु, बैकुंठ, ब्रम्हा, इंद्र तथा गणेश की हैं। इनके अतिररिक्त इंद्राणी , माहेश्वरी, वैष्णवी, वाराही, चामुंडा और महालक्ष्मी की मूर्तियां हैं। इस वृहदाकार मंदिर की खूबसूरती का पूरा परिचय हमें मंदिर के ऊपर ही जा कर मिलता है। मंदिर की छत से कांगड़ा घाटी की मनोरम रूप दिखाई देता है। मसरूर मंदिर कांगड़ा के गौरवशाली भव्य वास्तुशिल्प का ज्वलंत उदाहरण है।
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हिमाचल को अगर मंदिरों का घर कहा जाए तो गलत न होगा। इस राज्य में 6000 मंदिर हैं एक से एक मंदिर जो पहाड़ी वास्तु शिल्प के सुंदर उदाहरण हैं।
पगोडा, शिकर, गुंबदों और समतल छतों वाले मंदिर। मंदिरों की इस शृंखला में आते हैं मसरुर मंदिर समूह ... आठवीं शताब्दी के बने इन मंदिरों को देखते ही आप समझ जाएंगे कि आप पर्यटन के दुर्लभ खजाने तक आ पहुंचे हैं। एक ही चट्टान को काट कर ताराशे गए ये मंदिर जादुई प्रभाव रखते हैं। इंडो- आर्यन स्टाइल में इन पंद्रह मोनोलिथिक रॉक कट टेम्पल्स की खूबसूरती यह है कि इन पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है... समंदर, कमल फूल, पत्ते, गंधर्व, यक्षणियां इन पत्थरों में जीवंत हैं। एकल चट्टान को तराश कर बनाया गया उत्तरी भारत का यह अकेला मंदिर है। इस पूरे क्षेत्र में ऐसी संरचना देखने में नहीं आती। चट्टान काट कर मंदिरों का आकार देना एक विलक्षण शिल्प है और इस तरह की कारीगरी बहुत कम दिखती है। ऐसे मंदिरों का चलन पल्लव शासकों के समय सातवीं शताब्दी के आस-पास आरंभ हुआ। कैलाश मंदिर के बनने तक यह कला चरमोत्कर्ण पर पहुंच चुकी थी। दक्षिण में इस तरह के मंदिर सामान्य बात हैं और ऐसे मंदिर पुरातत्व शास्त्रियों के लिए हमेशा से ही दिलचस्पी का विषय रहे हैं।
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मसरूर मंदिर समूह 15 मंदिरों का गौरव रखता है जबकि धमनार में 8 मंदिर ही हैं। इसकी लंबाई-चौड़ाई भी धमनार की अपेक्षा अधिक है और सज्जा में भी यह श्रेष्ठ है। धमनार जहां निचली भूमि पर स्थित है, वहीं मसरूर का यह भव्य संसार 2500 फुट की ऊंची पर्वत श्रृंखला पर स्थित है।
यहां एक और रोचकता है कि एलोरा का कैलाश मंदिर भी 100 फुट के गहरे गड्ढे में ही बना हुआ है। जो भी हो कैलाश मंदिर सर्वश्रेष्ठ है और इसे विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है।
सातवीं- आठवीं शताब्दी की यह प्रस्तर शिल्प शैली और इसका वास्तु देख कर यही लगता है कि यह मानवीय हाथों की रचना नहीं, इसे किसी दूसरी दुनिया के लोगों ने बनाया है। कांगड़ा से 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित यह मंदिर समूह पहाड़ी श्रृंखलाओं पर स्थित है। एलोरा के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते हैं, पर बहुत कम लोगों ने मसरूर के बारे में जाना होगा। यह एक बेहद खूबसूरत लैंडस्कैप पर किसी चित्र की तरह लगता है। आयताकार काम्पलेक्स के एक तरफ पहाड़ी चट्टानें हैं और दूसरी तरफ बर्फ से ढकी धौलाधार की पहाडिय़ां नजर आती हैं।
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दुर्भाग्य से 1905 में यहां आए भूकंप से यह मंदिर तबाह हो गया, ज्यादातर हिस्सा ध्वस्त हो चुका है, पर जितना भी अंश बाकी है, कलात्मकता की दृष्टि से अद्वितीय है। गहन प्रचुर खुदाई से अलंकृत ये मंदिर बड़ी तीव्रता से आकर्षित करते हैं।
मंदिर के साथ ही आयताकार तालाब है जो इस धारण को बल देता है कि मंदिर के साथ किसी जलाशय का होना अनिवार्य है। निश्चय ही इतने सुंदर और विस्तार से बनाए गए मंदिर को ठाकुर द्वार कहा जाता है। इस मंदिर की छत बहुत ऊंची है तथा भरपूर खुदाई से चित्रित है। निश्चय ही इतने सुंदर और विस्तार से बनाए गए मंदिर की योजना राज परिवार की ओर से ही की गई होगी। यहां के गांव वालों का कहना है कि इसे बनाने में शिल्पकारों को 80 वर्ष लगे थे।
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भले ही इतना समय न लगा हो, पर यह तो सच है कि मंदिर को बनाने में पूरी योग्यता और समय का इस्तेमाल किया गया है। ठाकुर द्वार में स्थापित मुर्तियां राम- सीता व लक्ष्मण की हैं, पर यह मंदिर विष्णु को समर्पित है। इसके सबसे एक अलग तथ्य यह भी है कि इसकी संरचना तथा अलंकरण इसे भगवान शिव का मंदिर घोषित करते हैं। वास्तव में यह शिव मंदिर ही है, क्योंकि 19वीं शताब्दी में एक यूरोपीय यात्री जो यहां तक आया था उसने अपने रिकार्ड में इसे शिव मंदिर ही लिखा है। यहां के मंदिरों की दीवारों पर चित्रित तथा गवाक्षों में स्थापित मुर्तियां शिव, विष्णु, बैकुंठ, ब्रम्हा, इंद्र तथा गणेश की हैं। इनके अतिरिक्त इंद्राणी, माहेश्वरी, वैष्णवी, वाराही, चामुंडा और महालक्ष्मी की मूर्तियां हैं। इस वृहदाकार मंदिर की खूबसूरती का पूरा परिचय हमें मंदिर के ऊपर ही जा कर मिलता है। मंदिर की छत से कांगड़ा घाटी की मनोरम रूप दिखाई देता है। भूकंप के कारण यह भव्य मंदिर खंड- खंड हो गया, पर आज भी जो कुछ यहां देखने को मिलता है, उसी से इसके महत्व और ऐतिहासिकता का पता चल जाता है। मसरूर मंदिर कांगड़ा के गौरवशाली भव्य वास्तुशिल्प का ज्वलंत उदाहरण है।
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मौसम जैसे-जैसे बदल रहा है , पर्यटक पहाड़ का रूख करने लगे हैं। इनमें सभी गाड़ी वाले नहीं होते.... बहुत ऐसे भी होते हैं जो जागरूक हैं ऐसी जगहों को देखना चाहते हैं पर सुविधाहीनता की समस्या उन्हें मसरूर तक जाने से रोकती है। ऐसे में यहां का पर्यटन कैसे बढ़ेगा? और जब तक पर्यटन बढ़ेगा नहीं तो इतनी भव्य विरासत विश्व पटल पर कैसे आ सकेगी। जाहिर है हिमाचल के पास आपार पुरातात्विक संपदा है पर उसका सही दोहन न होने से स्थिति जैसी की तैसी है। इस छोटी सी बात को हम कब समझ पाएंगे...?
2 comments:
I am so greatful to you for publishing such information about Himachal Pradesh.I hope many people do not know that Himachal has such a treasure.
Poonam Sharma
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