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देश भर की पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में मृत्युंजय मिश्रा का नाम लेख और कहानियों के साथ रेखाचित्र के रू प में बार-बार दिखाई पड़ता है। यह ऐसे ही दिखाई पड़ता है जैसे धरती पर चलते-फिरते लोगों के साथ पेड़, पक्षी, सूरज, बादल, पानी और घर द्वार। दैनिक जीवन के इस्तेमाल की वस्तुएं और औरत।
चित्रों में लोग चलते-फिरते हलचल करते नजर आते हैं। ये लोग कागज की धरती पर अनगढ़ तरीके से उतरते हैं जैसे मिट्टी में खेलते हुए कोई मिट्टी कुरेद कर आकार बनाता है। इसमें आसपास के दृश्य होते हैं।
मृत्युंजय के चित्रों में मनोभावों का संप्रेषण प्रमुख होता है। रूपभेद, प्रमाण, भाव, लावण्य योजना, लय आदि। मृत्युंजय के चित्र सहज दृश्य को उपस्थित करते हैं। रूपकारों की बनावट के विस्तार में जाने की जरूरत महसूस नहीं करते बल्कि अर्थवत्ता की सूचना देने की लिए प्रतीकों का प्रयोग करते हैं।
विस्तृत पृथ्वी में जीवन संदर्भ जिस तेजी से बदलते हैं उसी तेजी से मृत्युंजय चित्र रेखा बनाते हैं। मृत्युंजय उत्तेजना से भरे ऊर्जावान कलाकार हैं यह उनके रेखाचित्रों की संख्या देखकर अनुभव होता है। ऐसा लगता है चलती रेलगाड़ी से, खिडक़ी से तेजी से बदलते दृश्यों को देखा जा रहा है। ये काम रूक- पलट कर देखने की भी मांग करते हंै। ये रुकना देखना सृजनात्मकता को नए सिरे से रचने के आयाम खोल सकता है।
उनकी अंतरिक्ष चित्र शृंखला अन्य चित्रों से बिल्कुल अलग है। इन चित्रों में बेचैनी के बावजूद स्थिरता, रंगों में गहराई एवं गंभीरता है। दूर आसमान में क्या-कुछ हलचल हो रही होगी, इन कल्पनाओं की फैन्टेसी, चित्रों में मुखर हैं। इन चित्रों में आकृतियों नहीं है, पहचान में आने लायक वस्तुरूप नहीं हैं, लेकिन यह रुपांकन किसी खोज, तलाश और उस निर्जन स्थान के सम्मोहन का इशारा करता है जो कहता है चलकर देखें।
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जन्म - 12.01.1974
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कार्य - छत्तीसगढ़ संवाद में 7 साल से कॉपीराइटर के पद पर कार्यरत।
पता- रामसागर पारा, धमतरी (छ.ग.) 493773
फोन- 07722-235353, मो. 9827474263, 9826119253, 9329737848
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