उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jun 1, 2022

रेखाचित्रः क्वीनी

- कुसुमलता चांडक

बात उन दिनों की है जब मैं नई- नई शादी होकर आई थी। छोटा सा परिवार था हमारा। सास- ससुर, ननद ,मेरे पति और मैं। हमारे इस छोटे से परिवार में एक दिन एक और सदस्य का आगमन हुआ।

मेहमान तो नन्हा सा ही था मगर वो नहीं जिसे आप सोच रहे हैं। एक दिन ऑफिस से लौटते हुए मेरे ससुर जी की गोद मे बांसी कागज में लिपटा हुआ कोई सामान था। मैं उनसे सामान लेने उनके पास गई तो चौंक उठी क्योंकि वह कोई सामान नही था। बांसी कागज में लिपटी एक प्यारी सी पिलिया आराम से उनकी गोदी में बैठी मुझे देख रही  थी।

सुनहरे भूरे रंग की नन्ही सी काया, छोटे- छोटे तराशे हुए से बाल, हिरनी जैसी चमकदार आँखें देखकर मैं हैरान थी। ससुर जी ने उसे मुझे थमा दिया । अब तक घर के सभी लोग हमारे आस-पास आ चुके थे। मेरी ननद तो उसे देखकर खुशी से चिल्ला ही उठी। हम सभी उसे अपनी- अपनी गोद मे लेने के लालायित हो रहे थे।

कुछ दिन तक जैसे उसके आने का उत्सव ही मनता रहा। उसके साथ खेलने के चक्कर मे अक्सर काम देर से होने लगे। ननद भी अपनी पढ़ाई से ज्यादा ध्यान उसकी तरफ देने लगी थी। ये सब देखकर एक दिन मेरी सासु जी ने ससुर जी को उसे छोड़ आने का फरमान जारी कर दिया।

बेमन से ससुर जी उसे अपनी गोद मे लेकर कुकड़ैल पर छोड़ने चले गए। वहाँ पल के पास उसे अपनी गोद से उतारकर वह चलने लगे तो वो भी कुँ - कुँ करती हुई उनके पीछे चलने लगी। कभी रुक जाती तो कभी खरगोश की तरह तेज भागकर ससुर जी की पेंट का पायचा अपने मुँह में भर लेती।  ससुर जी बहुत देर तक अपने मन को मजबूत नहीं रख सके और उसे लेकर वापिस आ गए। उसे घर वापिस आया देखकर हम सभी के उदास चेहरे खिल गए लेकिन आश्चर्य, हममें से कोई उसे अपनी गोद में लेता उसके पहले सासुजी उसे अपनी गोद में लेकर इस तरह लाड़ करने लगी जैसे कितने दिन बाद मिली हो। हम सबकी चुप्पी से अचानक उनका ध्यान जब हम लोगों पर गया तो बनावटी गुस्से से डाँटते हुए उन्होंने कहा, अब इसका कोई नाम रखोगे या ये ऐसी ही बेनाम रहेगी!

अभी तक उसका कोई नाम नहीं रखा गया था। उसका नाम क्या रखा जाय, इसके लिए हम सभी की मीटिंग शुरू हो गई। जब वह सड़क पर चलती थी तो अपने आस-पास के कुत्तों को बड़ी हिकारत भरी नजर से देखते हुए गर्दन अकड़ा कर और पूँछ उठा कर चलती थी। इसलिए यह तय हुआ कि इसका नाम क्वीनी रखा जाय।

क्वीनी शाकाहारी थी और हर मंगलवार वह पूरे दिन कुछ नहीं खाती थी। शुरू में उसके न खाने पर हम सभी परेशान हो जाते थे लेकिन फिर गौर करने पर पता चला कि ऐसा वह केवल मंगलवार के दिन करती थी। यह हमारे साथ - साथ हमारे परिचितों के लिए भी कौतुहल का विषय था। क्वीनी  पूरी जिंदगी ब्रह्मचारी बन कर रही, कभी किसी कुत्ते को उसने अपने पास नहीं आने दिया।

उन्ही दिनों गाँव से पत्र आया कि अमुक तारीख को मेरे दादा ससुर ( दादा जी ) आ रहे हैं।  सभी लोग ये जानकर परेशान हो गए क्योंकि उन्हें कुत्ते- बिल्लियों से बहुत चिढ़ थी। रोज नई योजनाएँ बनाई जाती और निरस्त कर दी जाती।

इन सबसे बेखबर क्वीनी हमारे साथ पहले की तरह ही खेलना चाहती थी मगर हम उसे उतना समय नहीं दे पा रहे थे। वह नाराज हो जाती थी और तब तक नही मानती थी जब तक उसकी पसंद का खाना उसे नहीं मिलता था।

आखिरकार नियत तिथि पर दादा जी आ गए। क्वीनी को शोर न मचाने की हिदायत देकर उसे आँगन के कोने में जंजीर से बाँध दिया गया था। चारपाई पर बैठ पानी पीते हुए दादाजी की नजर जैसे ही क्वीनी पर गई उनके माथे पर बल पड़ गए लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। क्वीनी चुपचाप सिर गर्दन में दबाये आँखें बंद करके पड़ी थी। बीच - बीच में आँख खोलकर स्थिति का जायज़ा लेती थी फिर आँख बंद कर लेती थी ।

रात को खाना खाने के पहले उन्होंने ससुर जी से कहा, ‘जब ले ही आये हो तो बाँध कर क्यों रखा है! खोलो उसको।

कुछ तो बात थी उसमें जो दो दिन में उसकी मनमोहक उछल कूद और शरारतों ने उसे दादा जी की प्यारी बना दिया।

एक बार दादा जी आम लेकर आये। मुझे देते हुए उन्होंने उन आमों को पानी में भिगो कर रखने के कहा। मैंने एक छोटी बाल्टी में उन आमों को भिगो कर रख दिया।

शाम को मेरी सासु जी ने कहा, ‘ये क्वीनी दबे पाँव आ रही है और फिर भाग कर छत पर चली जाती है थोड़ी देर बाद वापिस दबे पाँव आती है। देखकर आओ ये कर क्या रही है।

मैं और मेरी ननद छत पर गए तो देखकर हैरान रह गए। क्वीनी बड़ी सफाई से एक आम खा रही थी। वही कुछ गुठलियाँ और पड़ी थी जिनको देखकर लग ही नहीं रहा था कि इन पर कभी आम का गूदा भी था। बाद में ये बात सबको बताने पर किसी की भी हँसी नहीं रुकी। उसके बाद दादा जी जब भी आते उसके लिए अलग से आम लाते थे।

उम्र बढ़ने के साथ क्वीनी सुस्त और बीमार रहने लगी थी। डॉक्टर को दिखाने पर पता चला उसे ट्यूमर है जिसका ऑपरेशन करना पड़ेगा। डॉक्टर को जब उसकी उम्र चौदह साल पता चली तो उन्होंने बताया कि बहुत कम कुत्ते इतनी आयु तक जीवित रह पाते हैं।

ऑपरेशन वाले दिन हम सभी चिंतित थे। क्वीनी हम सभी को एकटक देख रही थी और अपने कमजोर पंजे को बार-बार हमारे पास ला रही थी। अपनी मूक आँखों से जैसे हमें सांत्वना दे रही थी कि चिंता मत करो।

ऑपरेशन सफल नहीं हो सका। उसका कमजोर शरीर ऑपरेशन नहीं झेल पाया। जिस लाल शॉल में लपेट कर हम उसे हॉस्पिटल लाये थे, उसी शॉल में लपेट कर आँसुओं  के साथ हम सभी ने उसे अंतिम विदाई दी इस वादे के साथ कि वह हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेगी।

1 comment:

Anonymous said...

रोचक रेखाचित्र । सुदर्शन रत्नाकर