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Jun 6, 2020

कोरोना को क्या रोना


कोरोना को क्या रोना :
मेरे पुख्ता इरादे मेरी तकदीर बदल देंगे
- विजय जोशी
 (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)

जब होता भूकंप, शृंग हिलते हैं
ज्वालामुखियों के वक्ष फूट पड़ते हैं
पौराणिक कहते दुर्गा मचल रही है
आधुनिक कहते दुनिया बदल रही है
            कोरोना रूपी वर्तमान त्रासदी ने अनेक यक्ष प्रश्न खड़े कर दिये हैं हमारे सामने। एक सम्पूर्ण आत्म विश्लेषण का सुअवसर एवं छोटा सा विनम्र प्रयास आरंभ से अब तक का। पूरी बात चार विचार सूत्र पर आधारित है पहली प्रकृति और पुरुष, दूसरी सभ्यता की यात्रा उदयकाल से वर्तमान तक, तीसरा व्यक्तिगत विरासत तथा अंतिम आगत भविष्य की ओर एक नज़र एवं नज़रिया।
1-प्रकृति और पुरुष : परमात्मा उर्फ़ प्रकृति ने समस्त सुख, सुविधा का संसार जुटाकर एक सुनियोजित संतुलन के साथ मानव को धरती पर भेजा ताकि वह एक संरक्षक की भांति उसे और अधिक सजा- सँवार कर अगली पीढ़ी को सौंपकर विदा हो, किन्तु उसकी अपनी कृति ने ज्ञान में विज्ञान का सहारा लेकर प्रकृति के प्रभुत्व को ही चुनौती दे डाली। एक छोटी सी बानगी :
·         पुरुष द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइ आक्साइड (CO2) पेड़ पुन: प्राणवायु आक्सीजन (O2) में  परिवर्तित कर उसे लौटा देते हैं जीने के लिये। विडम्बना यह है कि उसकी हवस में जन में तो हो रही है अभिवृद्धि और पेड़ हो रहे हैं निरंतर बलिदान। 
·         इंजीनियरी के एक सिद्धान्त के अंतर्गत हर घूमने वाली वस्तु एक गतिशील संतुलन के आधार पर केंद्र से जुड़कर घूमती रहती है। धरती भी अपनी  धुरी पर पहाड़, खाई, जल, नदी समुद्र इत्यादि के भार संतुलन सहित निरंतर घूम रही है तथा सूर्य की परिक्रमा में भी रत है हजारों वर्षों से, परंतु अब प्रगति की दौड़ में बेदर्द भूगोल छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम जैसे भूकंप, अनियमित वर्षा आदि परिलक्षित होने लगे हैं।
·         एयर कंडीशनर द्वारा उत्सर्जित गैस से ओज़ोन लेयर में छेद से सब भिज्ञ ही हैं, जो वातावरणीय तापमान में अभिवृद्धि का एक कारक भी है।
·         कभी न नष्ट होने वाले प्लास्टिक से समुद्र तक पट गया है। वातावरण में प्रदूषण का दुष्परिणाम हमारे सामने है।
और जब अति हो जाती है है तो यही प्रकृति आदमी पुन:मूर्षको भव यानी उसकी औकात भी दिखा देती है यानी किसी प्रकृतिक आपदा से जैसे सुनामी, कोरोना आदि के रूप में। 
२-सभ्यता यात्रा में आमूल परिवर्तन: धरती पर सभ्यता का क्रमिक विकास हुआ है। जैसे जैसे पुरुष भिज्ञ होता चला गया ज्ञान और विज्ञान की सहायता से उसकी प्रगति यात्रा सुनिश्चित होती चली गई। सभ्यता के मामले में आमूल परिवर्तन को कुछ इस तरह बयान किया जा सकता है :
·         पाषाण युग जब आदमी सर्वथा अज्ञानी था।
·         कृषि युग खेती के प्रयोग का प्रादुर्भाव
·         औद्योगिक युग अगला कदम था उद्योग अर्थात विनिर्माण
·         सूचना प्रौद्योगिकी युग जिसका आविष्कार इंसान ने किया उत्पादकता में अभिवृद्धि हेतु।
            और अब दस्तक दे दी है अगला चरण होगा बुद्धिमत्ता युग जो हमारे उद्देश्य तथा दिशा चुनने की शक्ति का द्योतक है, साथ ही कालातीत प्राकृतिक नियमों एवं सिद्धांतों के अनुपालन का। गाजर और छड़ी कार्य प्रणाली के सर्वथा विपरित यानी जो कौशल से परिपूर्ण होगा वही होगा ड्राइविंगसीट पर अर्थात मालिक के बजाय सक्षम कर्मचारी।
३-व्यक्तिगत: समाज में अमूमन हर आदमी अपनी क्षमतानुसार सृजनात्मकता की विरासत छोड़कर जाना चाहता है, जिसकी प्राप्ति तथा लक्ष्य संधान हेतु हमें व्यक्ति के जीवन के दो भागों हार्डवेयरअर्थात आदत तथा साफ्टवेयर यानी भाव की प्रासंगिकता का अवलोकन आवश्यक है। 
·         आदत: व्यक्तिगत सृजन कला की सुनिश्चितता के अवयव होंगे
-         ज्ञान प्राप्ति
-         कौशल
-         दृष्टिकोण
-         याद रखिए इनमें दृष्टिकोण सबसे महत्त्वपूर्ण है। एक अंग्रेजी कहावत है It is your Attitude and not Aptitude, which takes you to Altitude अर्थात यह होता है दृष्टिकोण जो आपको शिखर पर ले जाता है न कि योग्यता। इस मामले में सबसे सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है टाटा ने जिसके चारों अक्षरों की प्राथमिकतानुसार विश्लेषण है विश्वास, दृष्टिकोण , प्रतिभा, योग्यता यही कारण है कि आज अमेरिका तक में टाटा रोवर का सर्वाधिक पसंद वाहनों की श्रेणी में शुमार है।
·         भावः आदत की  ठोस नींव पर खड़ी होती है भाव की इमारत, जिसमें समाहित हैं
-         हृदय प्रेम के लि: हृदय की संवेदनशीलता न केवल स्वयं के अपितु साथियों के सुख की भी कुंजी है।
-         मस्तिष्क सीखने के लि कार्य निष्पादन तब तक संभव नहीं जब तक कि ज्ञान का धरातल पुख्ता न हो और इसीलि ईश्वर ने मनुष्य को मस्तिष्क की सुविधा प्रदान की है।
-         शरीर निष्पादन के लि: शरीर समस्त सार का भौतिक पक्ष है क्योंकि इसके अभाव में तो सब कुछ निरर्थक ही है। सो इसका सफल संचालन में ही निहित है सफलता।
            कुल मिलकर इन्हीं मापदंडों पर सकारात्मकता के साथ जीवन में आगे बढ़ते हुए सृजन एवं तत्पश्चात सफलता के साथ विदाई उपरांत विरासत संभव है। अन्यथा कतई नहीं।
४-भविष्य का पूर्वानुमान: जैसा कि पहले वर्णित है यह युग परिवर्तन का दौर है जिसके अनुसार अब हमें स्वयं को ढालने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। कोसने या रोने से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि बुद्धिमत्ता बनेगी सबसे बड़ा आधार। महात्मा गाँधी ने कहा था-  जियो ऐसे जैसे कल मर जाना हो और सीखो ऐसे जैसे आजीवन धरती पर रहना हो। वैसे भी परिवर्तन प्रकृति का नियम है और जो चीज़ बदली नहीं जा सकती उसे स्वीकार करने में ही हमारी भलाई है। मैथिली शरण गुप्त तो कह ही चुके हैं-
यदि बाधाएँ मिलीं हमें तो उन बाधाओं के ही साथ
जिनसे बाधा बोध न हो वह सहनशक्ति भी आई हाथ
            सो जो परिदृश्य अभी धुँधला है वो उसके आगत समय में और निखरने की संभावना है जो इस प्रकार हो सकती है :
-         उद्योग: यह विभाजित होगा दो भागों में पहला मूल  और दूसरा अन्य
-         मूल गतिविधि में समाहित तीन मुख्य अंग हैं- डिज़ाइन, व्यावसायिक तथा विनिर्माण इनमें से सुविधा प्राप्ति की दशा में प्रथम दोनों कार्य का वर्क एट होम यानी किसी हद तक घर से निष्पादन संभव है केवल विनिर्माण को छोड़कर जिसके लिये कार्य स्थल पर जाना अनिवार्य है।
-         अन्यः इसके अंतर्गत आते हैं अन्य विभाग जैसे मानव संसाधन, वित्त इत्यादि जिनके लिए कार्य स्थल पर जाना सदा आवश्यक नहीं होगा।
            इस तरह कुल मिलाकर अब सबके कार्य स्थल पर जाने की ज़रूरत नहीं। उनसे लचीलेपन कार्य पद्धति के अनुसार काम लिया जा सकेगा।
·         शिक्षा प्रदायगी: कक्षा में बैठकर पढ़ने का दौर तुरंत समाप्त तो नहीं होगा, किन्तु शनै: शनै: अन्य मंच उभरने लगे हैं, जिसके तहत घर बैठकर भी गुरु से जुड़ना होना आरंभ हो गया है। स्कूल भी अब समय की माँग के अनुरूप स्मार्ट क्लास रूम से सुसज्जित हो गए हैं। इस दिशा में सबसे प्रथम प्रयास किया गया था सर्वप्रथम  आई. आई. टी., मुंबई द्वारा इंजीनियरी कालेजों में अपने दूरस्थ केंद्र स्थापित करने के साथ, जहाँ इंटरनेट के माध्यम से प्रोफेसर व्याख्यान के साथ ही स्क्रीन पर वार्तालाप हेतु उपलब्ध रहने लगे। वहीं से प्रश्नोत्तरी भी और परीक्षा भी। इस तरह मुंबई जाकर पढ़ाई तथा सर्टिफिकेट हासिल करने की झंझट की समाप्ति के साथ ही समय एवं व्यय की अद्भुत बचत। कोरोना दौर में अब देखिए कितनी सरलता से ऑनलान कक्षाएँ चलनी आरंभ हो गई हैं। आने वाला युग होगा नलाइन क्लास, ई बुक्स,डिजिटल लर्निंग,रिमोट सेंटर का युग। याद रखि इस दौर के बच्चे बहुत कुशाग्र हैं और अब गुरुजनों के लिए भी ज्ञान मार्ग पर निरंतर कदमताल होना अनिवार्य होगा। सफ़ेद बालों वाली अनुभवी उम्र की धमकी अब नहीं चल पाएगी।
·         सामाजिक जीवन : इसका सबसे बड़ा प्रभाव तो परिलक्षित होगा सामाजिक जीवन में। यह त्रासदी इतनी आसानी से विदा नहीं होगी; इसलि लोगों को अब सीखना होगा कोरोना के साथ ही जीना। अगर इसके सकारात्मक पक्ष का अवलोकन करें तो निम्नलिखित पहलू उभरते हैं :
-         आदमी को होना होगा अब से डिजिटल। बार बार हर जगह के चक्कर से मुक्ति। सरकारी आदमी की लेतलाली या रिश्वतखोरी भी तुरंत ज्ञात हो सकेगी नलाइन मंच पर।
-         स्वच्छता भारतीयों का सबसे कमजोर पहलू है, किन्तु अब जी पाने ले लि इसे आदत का अंग बनाना होगा।
-         सड़कों पर व्यर्थ के विचरण या आवारागर्दी के निजात 
-         अपनी योग्यता का विकास तथा घर से ही यथासंभव काम करने की आदत
-         प्रदूषण से मुक्ति यानी पर्यावरण से प्रेम
-         मितव्ययिता अर्थात व्यर्थ के व्यय से भी छुटकारा, क्योंकि अब पैसे के भोंडे प्रदर्शन और दिखावे की संभावना भी समाप्ति की ओर।
-         उपलब्धि के अभाव में व्यसनों से विरत। 
कुल मिलाकर ये आत्मनिरीक्षण के पल हैं। इतिहास से सीख लेकर अगला भूगोल गढ़ने के अवसर। हम धरती के संरक्षक हैं मालिक नहीं इस बात को समझना होगा। ऐसे अनेक दौर आए हैं और आते रहेंगे। हमें तो इनका सामना करना है पक्के इरादों के साथ। 
मेरे पुख्ता इरादे मेरी तकदीर बदल देंगे
मैं मोहताज नहीं हाथों में किस्मत की लकीरों का

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

5 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

कोरोना संकट के बहाने से मानवीय सभ्यता और संस्कृति की पड़ताल करता एक सुंदर आलेख।जोशी जी का कहना सत्य है कि-"येआत्मनिरीक्षण के पल हैं। इतिहास से सीख लेकर अगला भूगोल गढ़ने के अवसर। हम धरती के संरक्षक हैं मालिक नहीं इस बात को समझना होगा। ऐसे अनेक दौर आए हैं और आते रहेंगे। हमें तो इनका सामना करना है पक्के इरादों के साथ।"बधाई विजय जोशी जी।

विजय जोशी said...

आ. शिवजी, आप वास्तव में श्री के अधिनायक एवं पारखी हैं सो सार को साकार कर दिया अपनी टिप्पणी में. इस दौर में जब वाट्सेप जैसी मोह माया ने पढ़ने की अभिरुचि को निगल लिया है तब आप जैसे कद्रदान का मिलना दैवी संयोग ही कहलाएगा. सादर साभार आपका आभार

देवेन्द्र जोशी said...

सुन्दर आलेख! आत्मचिंतन तो हमेशा ही करते रहना चाहिए।

Unknown said...

वर्तमान कोरोना त्रासदी प्रारम्भिक तौर पर मानव की अति विकासवादी सोच और प्रकृति के नियमों के परे जाकर प्राकृतिक सिद्धांतों से खिलवाड़ करने का ही परिणाम प्रतीत होता है। "अति सर्वत्र वर्जयेत्" और भी प्रासंगिक हो जाता है। महोदय "गाजर और छड़ी कार्यप्रणाली " बारे में और जानने की अभिलाषा है।

Hemant Borkar said...

जोशी साहेब बहुत खूब वर्णन किया है आप ने। अप्रतीम।