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Apr 16, 2018

ऐसे स्कूल जहाँ बच्चे पढ़ाई को बोझ नहीं समझते

ऐसे स्कूल जहाँ बच्चे पढ़ाई को
 बोझ नहीं समझते
हमारे देश का एजुकेशनसिस्टम एक ढर्रे पर चलने लगा है, जहाँ बच्चों पर किताबों और उम्मीदों का बोझ लाद कर स्कूल भेजा जाता है और वे वहाँ से होमवर्क का बोझ लेकर थके मांदे घर वापस लौटते हैं। स्कूलों की फीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन पढऩे-पढ़ाने के तरीके में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। इससे मुख्यधारा शिक्षा-व्यवस्था के प्रति लोगों में गहरा असंतोष बढ़ रहा है। ऐसा लगता है कि स्कूलों ने बच्चों को किताबों और क्लासरूम के बीच में फँसाकर रख दिया है, जहाँ नया सीखने-सिखाने की जगह ही नहीं बची। इसी सिस्टम के विकल्प में देश में वैकल्पिक स्कूली शिक्षा का जन्म हो रहा है। ऐसे स्कूल आमतौर पर शिक्षण के पारम्परिक तरीकों से हटकर बच्चों को अलग तरीके से सिखाने के साथ-साथ नए तरीके से सोचने का भी मौका देते हैं।
वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था भारत में नई नहीं है। पहले भी गुरुकुल, वैदिक जैसे स्कूल हुआ करते थे, जहाँ पर किताबी ज्ञान की बजाय समाज और प्रकृति के सहारे सीखने-सिखाने का काम होता था। ऐसे माहौल में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की भी शिक्षा दी जाती थी। ऐसी शिक्षा बच्चों को तर्कसंगत सोच की ओर प्रोत्साहित करती थी।
हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम एक ढर्रे पर चलने लगा है, जहाँ बच्चों पर किताबों और उम्मीदों का बोझ लाद कर स्कूल भेजा जाता है और वे वहाँ से होमवर्क का बोझ लेकर थके-माँदे घर लौटते हैं। स्कूलों की फीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन पढ़ने-पढ़ाने के तरीके में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। औपनिवेशिक युग के बाद हमारा सारा ध्यान अंग्रेजी शिक्षा पर हो गया और हमने बच्चों को एक दायरे में बाँधकर रख दिया। अब बच्चों से सिर्फ ये उम्मीद की जाती है, कि वे किसी भी हाल में सिर्फ अच्छे नंबर हासिल करें। उसके लिए चाहे जो करना पड़ जाए। शायद यही वजह है, कि भारत के कई राज्यों में परीक्षाओं में नकल की समस्या पैदा हो गई।
नंबरों के बोझ के चलते न जाने कितने बच्चे हर साल अपनी जान दे बैठते हैं और हम हमारी शिक्षा व्यवस्था को दोष देते हैं। आइए हम आपको रूबरू करवाते हैं कुछ ऐसे स्कूलों से जहाँ बच्चों को पारम्परिक तरीके से हटकर नये वैकल्पिक माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है...
ईशा होम स्कूल, कोयंबटूर
तमिलनाडु के कोयंबटूर के पास वेल्लियानगिरी पहाडिय़ों के बीच एकदम शांत वातावरण में स्थित इस स्कूल की स्थापना सदगुरू ने 2005 में की थी। इस स्कूल का मेन फोकस इस दर्शन पर होता है कि बच्चों के दिमाग को न केवल तेज और उन्हें सक्षम बनाया जाये बल्कि उनमें किसी भी चीज को गहराई से समझने और समावेशी ज्ञान की ताकत दी जाये। ईशा स्कूल में बच्चों को परीक्षा के दबाव से मुक्त रखा जाता है। इस स्कूल के साथ होम इसलिए जुड़ा है, क्योंकि ये स्कूल और घर का मिश्रण है। जहाँ बच्चों को किताबी ज्ञान के परे मानव स्वभाव के हिसाब से शिक्षा दी जाती है।
सेकमोल, लद्दाख
द स्टूडेंट एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) की स्थापना उन युवा लद्दाखियों ने की थी, जिन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान तमाम तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लद्दाख के कई शिक्षित युवाओं ने देखा कि छात्र मॉडर्न एजुकेशन के दबाव में आकर सांस्कृतिक विरासत से दूर होते जा रहे हैं। इसलिए 1988 में सरकारी स्कूलों में सुधार के वास्ते इस संगठन की स्थापना की गई थी। अब यहाँ विडियो और रेडियो के माध्यम से पढ़ाई होती है। इस स्कूल की बिल्डिंग में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। यहाँ ग्रामीण बच्चों को अंग्रेजी के दबाव से मुक्त किया गया और खुद का पाठ्यक्रम तैयार किया गया। पहले जहाँ बच्चों को समझाने के लिए छड़ी का इस्तेमाल किया जाता था वहीं अब यहां बच्चों को प्यार से समझाने के साथ ही उनकी खुशी का भी ध्यान रखा जाता है।
ऋषि वैली स्कूल, आँध्र प्रदेश
इस स्कूल में सिलेबस के परंपरागत विषयों के अलावा पर्यावरण, कला और संगीत और एथलेटिक्स जैसी चीजों पर भी खास ध्यान दिया जाता है। दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में इस स्कूल की स्थापना की थी। कृष्णमूर्ति की शिक्षाएँ इस स्कूल का मूल आधार हैं। जहाँ पढ़ाई से ज्यादा एक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। ये स्कूल प्राचीन ऋषिकोंडा पहाड़ी के बीच बसा हुआ है जहां कभी ऋषि मुनि तप किया करते थे।
शिबूमि स्कूल, बेंगलुरू
शिबूमि स्कूल भी जिद्दू कृष्णमूर्ति के दर्शन पर आधारित है। जहाँ बच्चों को पढ़ाई के साथ पूरी आजादी दी जाती है। यहाँ उनके पास अच्छा-खासा वक्त होता है, कि वे क्लास के अलावा खुद के बारे में सोच सकें, खुद को जान सकें। साउथ बेंगलुरु में सोमनहल्ली गाँव में बसे इस स्कूल में रहने की सुविधा तो नहीं है, लेकिन कुछ ही दिनों में यहाँ हॉस्टल भी बनाए जाने का प्लान है।
सह्याद्रि स्कूल, पुणे
सह्याद्रि स्कूल समुद्र तल से 770 मीटर की ऊँचाई से तिवई हिल पर स्थित है। यहाँ बच्चों को आपसी कॉम्पिटिशन पर ध्यान देने के बजाय उन्हें साथ मिलकर काम करना सिखाया जाता है। छात्र अध्यापकों के साथ अच्छा टाइम बिता सकें, इसलिए कक्षाएँ छोटी रखी गई हैं। प्रेम, दयाभाव, आपसी सम्मान जैसी चीजें सीखनी हों, तो ये स्कूल बेस्ट है।
मिरंबिका, फ्री प्रोग्रेस स्कूल, नई दिल्ली
यह स्कूल श्री अरविंद घोष की फिलॉस्फी पर चलता है। अरविंद आश्रम में ही ये स्कूल संचालित होता है। स्कूल इस फिलॉस्फी पर चलता है कि हर व्यक्ति आपके जीवन में कुछ सिखाने के उद्देश्य से आता है। इसलिए हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए और यही स्कूल की भावना भी है। यहाँ देशभर के अध्यापकों को भी ट्रेनिंग दी जाती है। मीरांबिका स्कूल में रिसर्च करने के लिए एक अलग से विभाग बनाया गया है।
अभय स्कूल, हैदराबाद
अभय स्कूल की स्थापना जून 2002 में हैदराबाद के रंगारेड्डी जिले में हुई थी। ये स्कूल वाल्ड़ोर्फ के अध्यापन से प्रेरित हैं जहाँ बाल विकास के तीन प्रमुख चरणों के दौरान उम्र के हिसाब से साइंस, आर्ट्स और ह्यूमैनिटी विषयों को पढ़ाया जाता है। स्कूल का मानना है, कि रटने वाली तकनीक की तुलना में दिल और दिमाग से सिखाया जाना ज्यादा प्रभावी होता है।
द हेरिटेज स्कूल, गुडग़ांव, रोहिणी और वसंत कुंज
हेरिटेज स्कूल एक्स्पेरिमेंटल लर्निंग में यकीन रखता है। यहाँ बच्चे बिना रोक टोक अपनी मर्जी से जो मन आता है पढ़ते हैं। स्कूल का मानना है कि जब बच्चे किसी मुश्किल में फँसेंगे और खुद से उसका समाधान करने की कोशिश करेंगे तो उनका दिमाग और तेजी से विकसित होगा। सीखने की प्रक्रिया को इस स्कूल ने काफी मजेदार बना दिया है। इसीलिए यहाँ बच्चों में गजब की क्रिएटिविटी देखी जा सकती है।
मैरुडैम फार्म स्कूल
मैरुडैम फार्म स्कूल को 2009 में दुनिया के अलग-अलग कल्चर और सोशल बैकग्राउंड के छात्रों और अध्यापकों ने स्थापित किया था। यहाँ का पाठ्यक्रम तमिल और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को बराबर महत्त्व देता है। यहाँ बच्चों को पर्यावरण के प्रति प्रेम पैदा करने में खास ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा ऑर्गैनिक फार्मिंग और पेड़ पौधों की देखभाल करना भी सिखाया जाता है। आर्ट, क्राफ्ट और स्पोर्ट्स जैसी चीजों में यहाँ के स्टूडेंट्स अव्वल हैं। स्कूल का मकसद है, कि बच्चे हमारे समाज और पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील बनें।
सेंटर फॉर लर्निंग, बेंगलुरु
इस अनोखे स्कूल में प्रयोग के माध्यम से बच्चों को सिखाने का प्रयास किया जाता है। सुबह सात बजे कैंपस में पक्षियों की चहचहाहट दिन की शुरुआत होती है। सारे बच्चों को मॉर्निंग वॉक पर भेजा जाता है। फिर वहाँ से आने के बाद टीचर और स्टूडेंट्स मिलकर सुबह का नाश्ता तैयार करते हैं। यहाँ टीचर-स्टूडेंट एक ही हॉस्टल में रहते हैं। सब मिलकर सारे काम निपटाते हैं। फिर असेंबली के लिए सब इकट्ठे होते हैं। जिसके बाद क्लासेज शुरू होती हैं। कुल मिलाकर बच्चों की खुशी का यहाँ खास ध्यान रखा जाता है।
द स्कूल,KFI, चेन्नई
ये स्कूल चेन्नई के सबसे पुराने और सबसे ज्यादा पॉपुलर स्कूलों में से एक है। 1973 में कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ने स्कूल की स्थापना की थी, बाद में ये थियोसोफिकल सोसाइटी के दामोदर गार्डन में शिफ्ट हो गया। स्कूल के छात्र और टीचर्स जे. कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं पर बल देते हैं। ये स्कूल ISC बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। (साभार- hindi.yourstory.com)

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