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Apr 15, 2018

रक्षक

रक्षक
-सत्या शर्मा कीर्ति
शिप्रा का रिजर्वेशन जिस बोगी में था उसमें लगभग लड़के ही लड़के भरे थे। टॉयलेट जाने के बहाने शिप्रा पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी। मन अनजाने भय से काँप-सा गया।
पहली बार अकेली सफर कर रही थी इसलिए पहले से ही घबराई हुई थीअतः खुद को सहज रखने के लिए  चुपचाप अपनी सीट पर मैगजीन निकाल कर पढ़ने लगी।
शायद किसी केम्प जा रहे नवयुवकों का झुंड जिनकी हँसी-मजाक, चुटकुले उसकी हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे।
शिप्रा के भय और घबराहट के बीच अनचाही सी रात धीरे - धीरे उतरने लगी।
सहसा सामने के सीट पर बैठे लड़के ने कहा –“हेलो! , मैं साकेत और आप?
भय से पीली पड़ चुकी शिप्रा ने कहा –“जी मैं----
“कोई बात नहीं नाम मतबताइए।वैसे कहाँ जा रहीं हैं आप?
शिप्रा ने धीरे से कहा –“इलाहबाद।
“क्या इलाहाबाद-?वो तो मेरा नानीघर है। इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगीं”-खुश होते हुए साकेत ने कहा।
और फिर इलाहाबाद की अनगिनत बातें बताता रहा कि उसके नाना जी काफी नामी व्यक्ति  हैं, उसके दोनों मामा सेना के उच्च अधिकारी हैंऔर ढेरों नई-पुरानी बातें।”
शिप्रा भी धीरे-धीरे सामान्य हो उसके बातों में रुचि लेती रही।
रात जैसे कुँवारी आई थीवैसे ही पवित्र कुँवारी गुजर गई।
सुबह शिप्रा ने कहा- “लीजिए मेरा पता रख  लीजिए। कभी नानीघर आइए तो जरूर मिलने आइएगा।”
'कौन सा नानीघर बहन? वो तो मैंने आपको डरते देखा तो झूठ-मूठ के रिश्ते गढ़ता रहा। मैं तो कभी इलाहबाद आया ही नहीं.”
“क्या--!” चौंक उठी शिप्रा।
“बहन ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे ही होते हैं कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ें। हम में ही तो पिता और भाई भी होते हैं.” कहकर प्यार से उसके सर पर हाथ रख मुस्कुरा उठा साकेत।
सम्पर्कः डी-2,सेकेण्डफ्लोर, महाराणा अपार्टमेन्ट, पी. पी. कम्पाउण्ड राँची-834001

2 comments:

Anita Manda said...

उम्दा!

Satya sharma said...

तहे दिल से आभारी हूँ आदरणीया मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए ।