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May 22, 2013

महिमा महानदी और इंद्रावती की

महिमा महानदी और इंद्रावती की
- डॉ. परदेशीराम वर्मा
 राज्य निर्माण के बारहवें वर्ष में नया रायपुर में आयोजित राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ प्रदेश के नवनिर्मित मंत्रालय भवन का नामकरण सभ्यता और संस्कृति को सिंचित करने वाली जीवनदायिनी महानदी के नाम पर हुआ है। यह एक चिंतनशील एवं दूरगामी परिणामों के लिए विचारशील मुखिया डॉ. रमन सिंह का बेहद प्रभावशाली निर्णय है। उन्होंने 2009 में कहा था- स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा लिखित छत्तीसगढ़ वंदना सचमुच अद्भुत है। तब डॉ. रमन सिंह ने राज्योत्सव में उस गीत की प्रस्तुति का भी निर्देश भी दिया था। इस लोकप्रिय गीत की प्रस्तुति से राज्योत्सव की गरिमा बढ़ी।
इस बीच प्रदेश की नई राजधानी के रूप में आकार ले रहे नया रायपुर में नये मंत्रालय भवन के नामकरण के लिए भिन्न-भिन्न चिंतकों, समाजसेवियों ने अपना आग्रह भी रखा। लेकिन अंतत: संत कवि पवन दीवान तथा स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा सहित छत्तीसगढ़ के अन्य प्रतिभाशाली कवियों की कविताओं के केन्द्र में सदा प्रवाहमान महानदी की पावन धारा सभी आग्रहों को समेट ले गई। स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा ने छत्तीसगढ़ वंदना में महानदी और इन्द्रावती की स्तुति की है। उन्होंने इस कविता  का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है। उन्होंने 'माई मदरशीर्षक से अंग्रेजी में कविता लिखकर अपनी अपूर्व भाषा सिद्धि को तो प्रमाणित किया ही साथ ही वे यह भी रेखांकित कर गए कि वे इन दोनों नदियों को छत्तीसगढ़ की महिमा के अंतर्गत अंतरधारा भी मानते थे। इसीलिए उन्होंने महतारी छत्तीसगढ़ में लिखा है-
अरपा पइरी के धार महानदी हे अपार।
            इंद्रावती ह पखारय
            तोर पइंया, जय हो जय हो
            छत्तीसगढ़ मइंया।
वहीं उन्होंने अपनी एक दूसरी कविता में इन नदियों की वंदना कुछ इस तरह से की है-
            महानदी चित्रोत्पला गंगा
            सागर अस हे लहर तुरंगा,
            सुघर सिहावा अबड़ सुहावय,
            कोरा उदवत धार बोहावय।
            पानी नोहय बूंद ये गुरतुर,
            इंद्रावती के अमृत धारा,
            बस्तर फिलय न पावय पारा।
महानदी के उद्ग्म स्थल सिहावा का उल्लेख कवि ने किया है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर में विभाग प्रमुखों के लिए निर्मित भवन का नाम जिस पवित्र नदी इंद्रावती के नाम पर किया है, उसके संबंध में डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने बहुत पहले लिखा था-
  अंते कहां नहाये जाबो,
  गंगा जमुना इंहचे पाबो।
गंगा और जमुना में नहाने हम दूर क्यों जाये। जबकि महानदी और इंद्रवती गंगा और जमुना की तरह छत्तीसगढ़ की पावन धरती पर बहती है।
संत कवि पवन दीवान ने भी अपनी प्रभावी कविताओं में बार बार महानदी की महिमा का बखान किया है-
महानदी के पावन धारा,
हसदो का सुविशाल किनारा,
हरे भरे तेरे वृक्षों ने
निराश्रितों को दिया सहारा।
यह पवन दीवान की बेहद लोकप्रिय कविता 'जय जय छत्तीसगढ़ महतारी' की पंक्तियाँ है। संयोग ही है कि इन  दोनों श्रद्धेय कवियों ने छत्तीसगढ़ महतारी की स्तुति में जब भी लिखा तो इन प्रार्थना तुल्य कविताओं में महानदी और इंद्रावती के नाम से उनके द्वारा छत्तीसगढ़ की भावपूर्ण आरती उतारी गई। महानदी और इंद्रवती के नाम से छत्तीसगढ़ राज्य और शांति की ताकत के बल पर विकास और समृद्धि के लिए जूझता हुआ और आगे बढ़ता यह सिरमौर प्रदेश भी बनेगा। महानदी और इंद्रावती नदियों की तरह सतत अपनी महिमा का विस्तार छत्तीसगढ़ महतारी ने भी किया है। देश में यह अकेला प्रदेश है, जिसे महतारी कहकर सम्बोधित किया जाता है। संत पवन दीवान ने क्या खूब लिखा है...
 भारत माँ की प्यारी बेटी,
 सबकी बनी दुलारी,
 जय जय छत्तीसगढ़ महतारी।
महानदी सिहावा पर्वत से निकलती है। सिहावा ही वह स्थान है, जहाँ ऋषि श्रृंगी जी का आश्रम था। उनके आशीर्वाद से दशरथ जी तथा माता कौशल्या के आंगन में चार पुत्र खेले। छत्तीसगढ़ की बेटी भगवान श्री राम की माता कौशिल्या जी छत्तीसगढ़ की बेटी है। छत्तीसगढ़ के ऋषि श्रृंगी को यज्ञ सम्पन्न करने के लिए अयोध्या नरेश ने निवेदन किया। सिहावा से निकलने वाली महानदी, धमतरी राजिम चम्पारण्य से होकर माता कौशिल्या के जन्म स्थान आरंग को स्पर्श करती है। सिरपुर, शिवरीनारायण,चन्द्रपुरा, रायगढ़ होकर यह ओडि़शा में प्रवेश करती है।   
 भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने छह नवम्बर 2012 को नया रायपुर में आयोजित राज्योत्सव में दिए अपने प्रभावी भाषण में छत्तीसगढ़ की बेटी, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की माता कौशिल्याजी को नमन किया। जगतगुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपा नन्द जी महाराज तथा दिव्यचक्षुवान महापंडित श्री रामभद्राचार्य ने सदैव छत्तीसगढ़ की बेटी भगवान श्रीराम की जननी माता कौशल्या की वंदना करते हुए छत्तीसगढ़ की महत्ता को रेखांकित किया है। उसका यश गायन किया है। उन्होंने इस तरह हम सबको हमारे गौरवशाली इतिहास की दीक्षा दी है।
महानदी के किनारे स्थित आरंग में माता कौशल्या जन्मी। इस तरह मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने महानदी के नाम पर नए मंत्रालय भवन का नामकरण करके छत्तीसगढ़ की सुख-समृद्धि और सफलता के लिए माता कौशल्या से भी आशीर्वाद माँगा है। इसी तरह इन्द्रावती के नाम पर विभाग प्रमुखों के भवन का नामकरण करके राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के मूल निवासी आदिवासियों के अपूर्व योगदान एवं अनुकरणीय आचरण की महत्ता को हृदय से स्वीकारा है। इन दोनों नदियों में बेहद समानता भी है। इसलिए श्री पवन दीवान और स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने अपनी कई लोकप्रिय कविताओं में बार-बार इनका यशगान किया है। न केवल छत्तीसगढ़ के कवियों ने, बल्कि देश की अन्य भाषाओं के कवियों ने भी हमारी इन दोनों नदियों का स्तुति गायन किया है। अनेक मंत्रों, सूत्रों और श्लोकों में इन नंदियों का उल्लेख आता है। महानदी छत्तीसगढ़ और ओडि़शा को एक सूत्र में बाँधती है। दोनों का अभिसिंचन करती है। महानदी पर ही ओडि़शा में हीराकुण्ड बाँध है जिसका विश्व में अपना महत्व है। इधर हमारे छत्तीसगढ़ में इस नदी पर विशाल गंगरेल बाँध (रविशंकर सागर) ने हरित क्राँति का विस्तार किया है और लाखों किसानों के जीवन में खुशहाली का माध्यम बनी है।
महानदी के किनारे राजिम के ब्रम्हचर्य आश्रम के प्रमुख रहे प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजसेवी और साहित्यकार पं. सुन्दरलाल शर्मा ने कई बार राजिम से पैदल जगन्नाथपुरी की यात्रा की थी। उसी ब्रम्हचर्य आश्रम के सर्वराकार हैं प्रदेश के लोकप्रिय संत कवि पवन दीवान, जिन्होंने महानदी की स्तुति में लगातार कविताओं का सृजन किया। पैरी, सोन्ढूर और महानदी का संगम राजिम में उनके आश्रम के बहुत करीब स्थित कुलेश्वर मंदिर के पास होता है, जहाँ प्रतिवर्ष विराट मेला लगता है। राजिम मेला छत्तीसगढ़ में मेल-मिलाप की परम्परा का प्रमुख केन्द्र कहलाता है। विगत कुछ वर्षो में राज्य सरकार के सहयोग से वहाँ कुम्भ का भी सफल आयोजन हो रहा है। राजिम कुम्भ की सफलता के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल बधाई के पात्र है। प्रतिवर्ष इस राजिम मेले में साहित्य, धर्म, लोकमंच एवं समरत समाज के भिन्न-भिन्न अभिव्यक्ति माध्यमों का मेल देखते ही बनता है।
इसी तरह इन्द्रावती नदी की अपार महिमा को बस्तर में ही उसकी लम्बी यात्रा के संबंध में जानकर समझ सकते हैं। इन्द्रावती कालाहाँडी से निकलती है मगर बस्तर उसे कुछ तरह भा गया कि वहाँ 370 किलोमीटर की यात्रा के द्वारा की गयी यह छत्तीसगढ़ महतारी की विलक्षण परिक्रमा है।
महानदी 891 किलोमीटर लम्बी है। छत्तीसगढ़ में उसका बहाव 286 किलोमीटर है। यह एक प्रेरक लेकिन दुर्लभ संयोग है। छत्तीसगढ़ में जन्मी महानदी पर उड़ीसा में हीराकुण्ड बाँध बना और हीरों की धरती छत्तीसगढ़ में उड़ीसा के कालाहाँडी से निकली इन्द्रावती ने 370 किलोमीटर की यात्रा केवल अपने वनवासी बेटे-बेटियों के बस्तर में की। इन नदियों ने अपनी यात्रा और महिमा की कथा से छत्तीसगढ़ सहित देश और दुनिया को यही सिखाया है कि सबको समान मानकर ही महत्ता अर्जित की जा सकती है। शिवरीनारायण में श्रीराम की भक्तिन शबरी दाई ने तप किया तो चम्पारण्य में श्रीकृष्ण के परम भक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म हुआ। अष्टछाप के महाकवि सूरदास में दीनता त्यागकर वीरता का भाव जगाने वाले गुरु वल्लभाचार्य जी ने महानदी का जल पिया। माता कौशल्या ने कार्तिक स्नान के बाद छत्तीसगढ़ के माटी से बने दीयों से महानदी का वंदन कर उनसे आशीर्वाद लिया होगा। छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय जन-कवि स्वर्गीय भगवती सेन ने लिखा है ...
 महतारी कोरा बड़ सुघ्घर,
 कुधरी महानदी के उज्जर।
संत पवन दीवान ने भी महानदी की रेत में सोना मिलने का प्रमाण दिया है...
    चमचम चमचम सोना चमकय,
    महानदी के रेत मा
    थपड़ी देके हांस ले भइया,
    हरियर हरियर खेत मां।
छत्तीसगढ़ के पास सब कुछ है। देश में अव्वल कहलाने की सारी क्षमता है। उदगम से निकली नदियाँ बहुत दूर तक व्यवधानों से टकराती हैं, फिर अपना विस्तार करती है। विस्तार कुछ इस तरह कि उनमें जहाज चलते हैं और दुनिया भर की नेमते नदियाँ सौंपने लगती हैं। यह छत्तीसगढ़ भी अभी अपनी यात्रा पर निकला ही है। इसके सामने भी व्यवधान आते दिखे। नक्सल समस्या उनमें से एक है। नदी के नाम से राज्य सरकार के दो सबसे बड़े प्रशासनिक भवनों के नामकरण से यह भी ध्वनित होता है कि नदियों की तरह यह नया छत्तीसगढ़ प्रान्त भी अपने यात्रा-पथ पर आये व्यवधानों को सबक सिखाते हुए विकास की नित नई मंजिलों की ओर निरन्तर गतिमान रहेगा। दोनों भवनों के नामकरण में सुचिन्तन और व्यापक सोच को प्रदर्शित करने वालों को बधाई देते हुए इस प्रसंग में छत्तीसगढ़ के ही एक और लोकप्रिय कवि स्वर्गीय श्री कोदूराम दलित की पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं-
    रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।
    अत: सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।
    कायारूपी महल एक दिन ढह जाना है।
    किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।

संपर्क: एल.आई.जी.-18, आमदी नगर, हुडको
भिलाई नगर (छत्तीसगढ़)  मो. 9827993494

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