लूट सके तो लूट
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु’
छूट के मौके पर दुकान का कचरा निकल जाता था। धीरे- धीरे छूट की गरिमा पीछे छूटती गई। इसका स्थान अब लूट ऑफर ने ले लिया है। आप घर से निकलते ही लुटने या लूटने के लिए तैयार रहें। आप 'लुटने या लूटने’ में से कौन-सा खेल खेलेंगे, यह आपकी औकात पर
निर्भर होगा।
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नेता जब दौरे पर आते हैं, उस समय उनका खाना- पीना, गाड़ी का डीजल- पेट्रोल आदि सभी मातहतों के जिम्मे होता है। मंत्री के पी.ए. से लेकर चपरासी तक भूखे बाघ जैसे नजर आते हैं। अधिकारी की स्थिति उनके सामने 'दयनीय विधवा’ जैसी नजर आती है। जहाँ लूट का फंडा नहीं होता, वहाँ अधिकारियों को रो-झींककर अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। चाय- पानी का खर्चा न मिलने पर अमले का चपरासी भी छोटे या मझोले अफसरों को खा जाने वाली नजर से देखता है। आजकल चारों तरफ का वातावरण लूट की छूट के लिए उपयुक्त नजर आता है।
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ट्रकवालों को पुलिसवाले दुह रहे हैं तो पुलिसवालों को स्टिंग ऑपरेशन वाले चूस रहे हैं। वफादार सिपाही दिनभर लूटकर शाम तक सबको प्रसाद पहुँचा रहे हैं, बदले में खुद भी कुछ पा रहे हैं। रेहड़ी वालों से वसूली, फुटपाथ पर दुकान लगाने की वसूली। किसान को नीतिनिर्धारक लूट रहे हैं। जिन्हें फसल लूटने का मौका नहीं मिल पाया था, वे खाद ही लूट रहे हैं। न किसान खाद डालेंगे न फसल ठीक- ठाक होगी। जितनी महँगाई उतनी लूट। एक दिन तो सबको मरना है। कोई खाकर मरे या भूख से- हैं दोनों बराबर। दूध में यूरिया, घी में चर्बी सभी ताकत देने वाले तत्व हैं। कम्पनियों को खुश कीजिए। उनका प्रोडक्ट जनता को खिलाइए। कोई मरे तो मरने दीजिए। बदले में कुछ न कुछ जरूर लीजिए। जो मिलावट करेगा, बहुत कुछ पाएगा। फँस गया तो बहुत कम गँवाएगा। मेहनत- मजदूरी करने वालों से लूट, जीने वालों से लूट, मरने वालों से लूट। अस्पताल में लूट, श्मशान में भी लूट। ईश्वर की तरह लूट सर्वव्यापक है। अगर आप परमात्मा को मानते हैं तो पीछे मत रहिए और इस पवित्र कीर्तन में शामिल हो जाइए, भवसागर तर जाइए। कुछ नहीं कर सकते तो बाबा जी बन जाइए। मठाधीश कहलाइए, जो मूर्ख नहीं बन सकते, उन्हें ईश्वर से डराइए। लूट मचाइए।
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पुल बने तो लूटिए, पुल टूटे तो लूटिए, सड़क बने तब भी लूटिए। सड़क के गड्ढे भरने से पहले अपने पेट का गड्ढा भरने की सोचिए। उस गड्ढे में कोई गिर जाएगा तो सरकार निकाल लेगी। सड़क का गड्ढा आज भर दोगे तो तुम्हारे पेट का गड्ढा खाली रह जाएगा। इसमें तुम्हारे घर का कोई भी सदस्य गिर जाएगा। गिर गया तो निकल नहीं पाएगा। अत: छाती मत कूटिए, जमकर लूटिए। कुत्ता पाए तो सवा मन खाए , नहीं तो दिया ही चाटकर रह जाए। दिया चाटनेवाला मत बनिए, दीमक बनिए, जो मिले उसे चाट जाइए। देश बड़ी बेसब्री से तुम्हारा इन्तजार कर रहा है। हे शूरवीर! जाग जाइए और सिर पर कफन बाँधकर निकल पडि़ए। किसी भी दल का झण्डा उठाइए। जो भी सामने आए उस पर डण्डा चलाइए। जिसके पास कुछ नहीं, उसको भी लूटिए। आम आदमी को आम की तरह चूसिए। इस नई छूट में अगर चूक जाओगे तो उम्र भर पछताओगे।
आम आदमी के पास आम नहीं हैं, सिर्फ नमक रोटी बची है, उसे भी लूटिए। अनाज गोदामों में सडऩे दीजिए। जनता को भूखे रहने का अभ्यास कराइए। आज के हालात में जो कम खाएगा, वह गम खाएगा। अरबों की लूट मचाइए। ऊपर तक सबका हिस्सा पहुँचाइए। लम्बी तानकर सोइए। देश के बर्बाद होने की फिक्र में दुबलाने की जरूरत नहीं। अंग्रेजों ने लूटा, देश का क्या बिगड़ा? अपने लूटेंगे तो देश को भी बुरा नहीं लगेगा। कुछ सिरफिरे लूट का विरोध करेंगे, उनसे होशियार रहिए। उनको धोखे से कूटिए, डराइए- धमकाइए, झूठे मुकदमें ठोंकिए। आज अगर आपकी इस लूट पर खतरा है तो देश के ऊपर खतरा बताइए, लेकिन मेरे भाई मत चूकिए, ईमानदारी की बात करने वालों को किसी भी तरह फँसाइए, लेकिन लूट का विरोध करने से उनको जरूर रोकिए, क्योंकि लूटतन्त्र का यही मौलिक अधिकार है।
संपर्क: फ्लैट नम्बर-76, (दिल्ली सरकार आवासीय परिसर), रोहिणी सेक्टर-11 नई दिल्ली-110085 मो. 09313727493, Email- rdkamboj@gmail.com
1 comment:
हिमांशु भैया जी,
बहुत ज़बरदस्त व्यंग्य रचना! कमाल की प्रस्तुति!
बहुत-बहुत बधाई आपको!
~सादर
अनिता
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