डिस्पोज़ेबल वस्तुओं से फैलता संक्रमण
प्लास्टिक के बर्तनों में खाद्य पदार्थ तो आम बात है। प्लास्टिक से निर्मित थैलियों, बर्तनों, कंटेनरों, बोतलों में औषधियाँ तक पैक की जाती हैं। यहाँ तक कि खून की बोतलें भी प्लास्टिक की बनी होती हैं। दावा किया जाता है कि यह प्लास्टिक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नियमों के अनुसार मेडिकल तौर से जीवाणुरहित है। किंतु चूक हर कहीं होती है।
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संयुक्त राष्ट्र एड्स विरोधी अभियान में एड्स से बचने के लिए जीवाणु मुक्त सुई का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। आजकल डॉक्टर इंजेक्शन लगाने के लिए डिस्पोज़ेबल सिरिंज का ही उपयोग करते हैं। सिरिंज प्लास्टिक की बनी होती है तथा सुई स्टेनलेस स्टील की बनी होती है। इसका दोबारा उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। एक व्यक्ति को लगाने के बाद इसे तोड़कर फेंक देना चाहिए। इससे संक्रमण नहीं फैलता।
दो-तीन दशक पहले सभी चीज़ें पुन: उपयोग की जाती थीं। परंतु आज कई ऐसी वस्तुएं पुन: उपयोग की जा रही हैं, जिन्हें दोबारा उपयोग नहीं करना चाहिए। वैसे तो आज हर प्रकार के डिस्पोज़ेबल उपलब्ध हैं। जैसे ग्लास, चम्मच, प्लेट, कप, दस्ताने, सिरिंज व सुई। दो दशक पहले इंजेक्शन लगाने के लिए बहुत सारे झंझट करने पड़ते थे। जैसे सिरिंज एवं सुई को उबालना, चिमटी से पकडऩा ताकि संक्रमण न हो। उस समय ये सिरिंज काँच की एवं सुई धातु की बनी होती थी। धीरे-धीरे जीवाणुरहित डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक सिरिंज एवं सुई का आगमन हुआ।
शुरुआती दौर में ये महंगी होने की वजह से बहुत कम उपयोग की जाती थीं। परंतु प्रतिस्पर्धा के चलते इनके दाम कम होने तथा चिकित्सक व मरीज़ दोनों के लिए सुविधाजनक होने से धड़ल्ले से उपयोग में लाई जाने लगी हैं। फिर इन डिस्पोज़ेबल वस्तुओं का दोबारा, तिबारा एवं निरंतर उपयोग होने लगा।
जैसा कि सभी जानते हैं, प्लास्टिक की चीज़ों को नष्ट करना आसान नहीं है। मगर इन सिरिंजों का भी पुन: चक्रण किया जाता है। कबाडिय़ों के भंडार से प्लास्टिक, लोहा, काँच, कागज़ आदि वस्तुएं विभिन्न कारखानों में पहुँच जाती हैं, जहाँ उनका पुन: चक्रण किया जाता है। लोहा आदि धातुओं को तो फिर से उच्च ताप पर पिघलाकर पुन: उपयोग किया जाता है, जिससे इनमें विषाणु के रहने की आशंका नगण्य ही होती है। लेकिन प्लास्टिक कूड़े को अल्प ताप पर पिघलाकर पुन: उपयोगी बनाया जाता है, जिसमें जीवाणुओं के मौजूद रहने का खतरा भरपूर रहता है। इससे अधिक ताप पर प्लास्टिक जल जाता है। जलकर प्लास्टिक भयंकर विषैली गैस में बदलता है जो वातावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। दूरदर्शन पर इन सिरिंजों तथा सुइयों के व्यापार पर एक कार्यक्रम में दिखाया गया था कि इन्हें खरीदकर फिर से पैक करके बेच दिया जाता है। यहीं से शुरुआत होती है इन डिस्पोज़ेबल वस्तुओं द्वारा आपको डिस्पोज़-ऑफ (नष्ट) करने की।
उबालकर जीवाणुमुक्त करने की प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन एवं वैज्ञानिक है। यह शताब्दियों से आज तक प्रचलित है तथा श्रेष्ठ है। इन काँच की सिरिंजों एवं धातु की सुइयों को मात्र कुछ मिनट उबाल लेने से ही ये पूर्णत: जीवाणु एवं विषाणु रहित हो जाती हैं। यहाँ तक कि जानलेवा एड्स वायरस एवं खतरनाक हेपेटाइटिस-बी वायरस भी इससे नष्ट हो जाते हैं। डिस्पोज़ेबल सिरिंज एवं सुई के साथ यह स्थिति नहीं होती। विशेषत: जब ये दोबारा उपयोग में लाई जाती हैं।
प्लास्टिक के बर्तनों में खाद्य पदार्थ तो आम बात है। प्लास्टिक से निर्मित थैलियों, बर्तनों, कंटेनरों, बोतलों में औषधियाँ तक पैक की जाती हैं। यहाँ तक कि खून की बोतलें भी प्लास्टिक की बनी होती हैं। दावा किया जाता है कि यह प्लास्टिक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नियमों के अनुसार मेडिकल तौर से जीवाणुरहित है। किंतु चूक हर कहीं होती है। अनेक मामलों में अधिकांश सप्लायर्स द्वारा इनमें प्रयोग किया जाने वाला प्लास्टिक भी पुन: चक्रित होता है।
सामान्यत: तो डिस्पोज़ेबल सिरिंज एवं सुई दोबारा उपयोग नहीं की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश की भी जाती है, तो उन्हें गामा किरणों के द्वारा पूर्णत: जीवाणुमुक्त करना चाहिए। इन प्लास्टिक सिरिंजों को उबालने पर प्लास्टिक पिघलता है तथा इन पर कई प्रकार के पदार्थ चिपक जाते हैं। यदि ये किसी संक्रामक रोगी के लिए इस्तेमाल की गई हों तो उसका संक्रमण दोबारा उपयोग के वक्त दूसरे मरीज़ में प्रवेश कर सकता है, जिसकी वजह से एड्स जैसी जानलेवा बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यह खतरा उन नशेडिय़ों में और भी अधिक हो गया है, जो इंजेक्शन द्वारा नशा लेते हैं तथा एक ही इंजेक्शन एवं सुई को कई व्यक्ति उपयोग में लाते हैं।
इन डिस्पोज़ेबल वस्तुओं से बीमारियों के फैलने का खतरा इसलिए भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि इन डिस्पोज़ेबल्स को डिस्पोज़ (नष्ट) करने का आसान तरीका उपलब्ध नहीं है और न ही इन्हें नष्ट करने के लिए चिकित्सक, नर्सिंग होम एवं स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। आज अधिकतर शासकीय एवं अशासकीय अस्पतालों में इन डिस्पोज़ेबल उपकरणों एवं अन्य संक्रामक पदार्थों जैसे टी.बी. मरीज़ का बलगम, उनके फेफड़ों से निकाला गया संक्रमित पानी, हैज़े के मरीज़ का मल एवं संक्रमित ड्रेसिंग नष्ट करने की कोई स्थाई व्यवस्था, जैसे इन्सीनरेटर (जिसमें यह सब उच्च तापमान पर नष्ट हो जाएँ) नहीं है। व्यवस्था है तो बस इतनी कि इन्हें या तो दूर फेंक दिया जाता है या फिर नाली में बहा दिया जाता है, जहाँ से ये नए संक्रमणों को जन्म देते हैं। कोई अति उत्साही हुआ, तो इन्हें जला देता है।
डिस्पोज़ेबल्स एवं संक्रमित वस्तुओं को नष्ट करने के लिए जल्दी ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो एड्स एवं हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों के द्वारा ये डिस्पोज़ेेबल पलटवार करेंगे। इन बीमारियों का फैलाव रोकने एवं डिस्पोज़ेेबल के बारे में कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
- डिस्पोज़ेबल सिरिंज एवं सुई का दोबारा उपयोग न करें। उपयोग के बाद इन्हें नष्ट कर दें।
- उबालकर किया गया स्टरलाइज़ेशन आज भी श्रेष्ठ है। इसी का उपयोग करें।
- प्रत्येक नर्सिंग होम या चिकित्सालय में इनको नष्ट करने के लिए इन्सीनरेटर या अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो।
- डिस्पोज़ेबल एक वरदान है, सुविधा है। इसका दुरुपयोग कर इसे अभिशाप न बनाएँ। (स्रोत फीचर्स)
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