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Dec 18, 2012

विचार

अच्छी सोच
- राम अवतार सचान
जीवन का सिलसिला है जिसका आदि और अंत दोनों है, जी हाँ। सुख-दुख से भरा जीवन पूर्ण रूप से आपकी अपनी सोच पर टिका है उदाहरण के तौर पर लीजिए- आधा भरा गिलास किसी के लिए आधा खाली भी नजर आता है। जीवन किसी के लिए दुखों का अम्बार है तो किसी के लिए खुशियों का खजाना। कोई इस जीवन को सौभाग्य समझता है तो कोई दुर्भाग्य, किसी का जीवन शिकायतों से भरा है तो किसी का धन्यवाद से, किसी को मरने की जल्दी है तो किसी को जीवन काल छोटा लगता है। जबकि जीवन एक ही है, एक ही अवसर है परंतु फिर भी अलग-अलग सोच है और इसके भिन्न-भिन्न परिणाम हैं। सब कुछ हमारे नजरिए पर टिका है। तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में बहुत पहले लिखा है कि -
जिसकी रही भावना जैसी । प्रभु मूरत देखी तिन वैसी ॥
जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसे ही परिणाम मिलते भी हैं। इस संदर्भ में मैं तीन मजदूरों वाली एक कहानी सुनाना चाहता हूँ जो आपको पूर्ण रूप से संतुष्ट कर देगी-
तीन मजदूर पत्थर तोडऩे का एक ही काम कर रहे हैं जब एक से पूछा गया कि आप क्या कर रहे हो? तो उसने गुस्से में शिकायत भरी नजर उठाकर जवाब दिया कि आपको दिखाई नहीं दे रहा है क्या? अपनी किस्मत तोड़ रहा हूँ और ठीक यही प्रश्न दूसरे मजदूर से किया गया। उसके उत्तर में गुस्सा नहीं था, दर्द था, जुबाँ पर शिकायत नहीं पर आँखें नम थी, चेहरा उदास था, उसने उत्तर दिया कि पेट की आग बुझाने के लिए खाने का जुगाड़ कर रहा हूँ। जबकि यही प्रश्न तीसरे मजदूर से किया गया तो उसका उत्तर ही कुछ अलग था। न तो उसके लहजे में शिकायत थी, न तो दर्द था, आँखों में न गुस्सा था और न नमी। उसका उत्तर सुनकर सभी अचम्भित हो गए। उसके उत्तर में प्यार और एक सुख की अनुभूति थी। उसका उत्तर था- मैं इस काम में बहुत ही आनंदित हूँ मैं पूजा कर रहा हूँ। पत्थर, जिसे मैं तोड़ रहा हूँ, भगवान के मंदिर में लगने जा रहा है, मैं उसमें सहयोग दे रहा हूँ। मैं भाग्यशाली हूँ,  मैं आभारी परमात्मा का हूँ। उसने इस नेक काम के लिए मुझे अवसर दिया। ये शुभ कार्य हमारे हाथों द्वारा हो रहा है। उस मंदिर में भगवान विहार करेंगे। प्रभु ने मेरी सेवा स्वीकार कर मुझे कृतार्थ किया और मुझे इस काम में बहुत आनंद आ रहा है। सोचता हूँ पूरा जीवन प्रभु की सेवा में गुजरे।
 जीवन ऐसा ही है जो दृष्टिकोण के कारण ही सुख-दुख, लाभ-हानि, शुभ-अशुभ में बँट जाता है। सुख-दुख का कोई पैमाना नहीं है, सब सोच पर आधारित है। किसी के लिए कोई तारीख, दिन, महीना, साल अच्छा है तो किसी के लिए अशुभ हो जाता है। यह सोच और समझ केवल आपकी अपने नजरिए पर टिकी है। आप चाहे तो गिलास को पूरा देखें या आधा। सब आपकी सोच पर निर्भर है।
शेक्सपियर ने कहा है कि कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं होती। हमारा नजरिया ही इसे अच्छा या बुरा बनाता है। सचमुच आपकी सोच ही आप पर जादू की तरह काम करती है। किसी शायर ने कहा है 'घर में न मिले सुकून तो बाहर निकल कर देखो, जिंदगी बड़ी हसीन है केवल सोच बदलकर देखो।'
संपर्क:13/1, बलरामपुर हाउस, मम्फोर्डगंज, इलाहाबाद-211002,  मो.09628216646

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