उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jun 1, 2025

उदंती.com, जून - 2025

 वर्ष - 17, अंक - 11

संबंधों की गहराई का हुनर

पेड़ों से सीखिए,

जड़ों में चोट लगने से

साखें सूख जाती हैं...


इस अंक में 

अनकहीः देश हित में एकजुट होने का समय - डॉ.  रत्ना वर्मा

पर्यावरणः गर्मी में भी घुट रही है दिल्ली की सांसें - पंकज चतुर्वेदी

संस्मरणः मिट्टी का मोह - शशि पाधा

कविताः रणभेरी - डॉ. सुरंगमा यादव

आलेखः परमाणु हथियार- सुरक्षा के लिए पाकिस्तान हुआ शरणागत - प्रमोद भार्गव

पर्यावरणः विरासत को संजोकर रखने वाला अनूठा गाँव पिपलांत्री - सुनील कुमार महला

दो कविताएँः 1. प्यारी लड़की, 2. तेइस के तजुर्बे - स्वाति बरनवाल

प्रदूषणः हमारे पास ई-कचरा प्रबंधन की क्षमता नहीं - कुमार सिद्धार्थ

स्मृति शेषः पर्यावरण कार्यकर्ता समाज सुधारक विमला बहुगुणा - भारत डोगरा

कहानीः आशा की दूसरी किरण - ज्योतिर्मयी  पन्त

व्यंग्यः बुरे फसे डींग हाँककर - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

कविताः गायब -  राजेश पाठक

दो लघुकथाः 1. शुद्ध जात,  2.फाँस - सुदर्शन रत्नाकर

कविताः नशे का अँधेरा भविष्य - डॉ. कविता भट्ट

लघुकथाः परिचय - प्रगति गुप्ता

साहित्य मंथनः साहित्य के सरोकार को बड़ा फलक देती ‘सोंढूर- डायरी’ - विनोद साव

कविताः ग्लोबल वार्मिंग - डॉ. शिप्रा मिश्रा

जीवन दर्शनः टॉम स्मिथ- संस्कार से सफलता - विजय जोशी  

अनकहीः देश हित में एकजुट होने का समय

 - डॉ.  रत्ना वर्मा

22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ज़रिए सेना ने आतंकी ठिकानों पर सटीक वार करके सफलता हासिल की और यह जता दिया कि वह आतंकवाद के समूल नाश के लिए प्रतिबद्ध है। यह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी; बल्कि एक संदेश था कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा। अभी हाल ही में गुजरात दौरे के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को आतंक की बीमारी से मुक्त करने के लिए वहाँ की आवाम और युवाओं को आगे आने के लिए कहा। उन्होंने चेतावनी भी दी कि सुख- चैन की जिंदगी जिओ, रोटी खाओ; वरना मेरी गोली तो है ही। 
 यह जवाब एक बाहरी शत्रु के लिए था; पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भीतरी लड़ाई भी देश  लड़ रहा है। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक स्तर ऐसे लोगों के बदसूरत चेहरे सामने आ रहे हैं, जो देश को भीतर से खोखला करने में लगे हुए हैं। भारत की राजनीति, तीखी बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप के दौर में घिर गई है।  ऐसे समय में जब भारत अपनी सीमाओं से परे जाकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है, तब अपने ही देश के भीतर राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता का संघर्ष हावी हो रहा है। यह कितने अफसोस की बात है कि जिस वक्त देश को एकजुट होकर अपने भीतर और बाहर के गद्दारों से निपटना चाहिए, उस समय पक्ष और विपक्ष के कुछ नेता अनाप- शनाप बयानबाजी पर उतर आए हैं। कुछ ने ‘पाकिस्तान की भाषा बोलने’ और ‘भारतीय सेना के पराक्रम पर सवाल उठाने’ का आरोप लगाया है। बहुत से भारतीय भी दुश्मनों के लिए जासूसी करके भारत को कलंकित कर रहे हैं। अब जासूसों की शक्ल भी बदल चुकी है। हथियारों की जगह कैमरे, रेडियो की जगह इंस्टाग्राम, और ब्लैकमेल की जगह हनी ट्रैप ने ले ली है।  यह सीधे तौर पर डिजिटल जासूसी है। कहने का तात्पर्य है कि लड़ाई कोई भी आसान नहीं  होती भीतर के दुश्मनों से भी चौक्न्ना रहना है और बाहरी दुश्मनों को तो ठिकाने लगाना ही है। 
 ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किए और पाकिस्तान की दोस्ती तो पूरी दुनिया ने देखी ही है। तुर्किए खुलकर आतंकवाद के समर्थक देश के साथ आकर खड़ा हो गया। यह वही तुर्किए हैं, जहाँ भूकम्प के विनाश के समय मानवीय आधार पर भारत ने सबसे पहले सहायता की। उसका प्रतिदान क्या दिया ? यही कि पाकिस्तान ने जिन ड्रोन्स से भारत पर हमला किया, वो भी तुर्किए ने ही पाक को खैरात में दिए थे। तुर्किए की इस हरकत के बाद भारत ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है; पर तुर्किए है कि अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। यही नहीं पाकिस्तान का साथ देने के बाद अब तुर्किए ने बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। पर यह भी सच है कि ऐसे देशों के साथ भारत कोई नरमी नहीं बरतेगा, यह स्पष्ट है।  चाणक्य ने ऐसे दुष्टों के लिए कहा है-
सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्पात्क्रूरतरः खलः।
मन्त्रौषधिवशः सर्पः खलः केन निवार्यते॥
सर्प भी क्रूर होता हैं और दुर्जन भी क्रूर होता हैं, किन्तु दुर्जन सर्प से भी अधिक क्रूर होता हैं। सर्प को तो मंत्र और औषधीय- जड़ी बूटियों से नियंत्रित किया जा सकता हैं, परन्तु दुर्जन किससे नियंत्रित हो सकता हैं?
दुर्जन को खत्म किया जाए, बस यही एकमात्र उपाय है। इन दुष्ट देशों पर दया दिखाना या विश्वास करना आत्मघात करने जैसा है।  भारत आतंकवाद के खात्मे के लिए दृढ़संकल्पित है, तभी तो भारत सरकार ने अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाते हुए आतंकवाद के मुद्दे पर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को एकजुट करके वैश्विक मंचों पर भेजा, ताकि भारत की नीति को मजबूत समर्थन मिल सके। इस प्रयास का उद्देश्य था कि दुनिया यह समझे कि आतंकवाद किसी भी देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता के खिलाफ एक वैश्विक खतरा है, जिसका मुकाबला एकजुट होकर ही किया जा सकता है। भारत की यह पहल न केवल अपनी सुरक्षा के लिए; बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
परंतु विडंबना यह है कि जब कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए संवेदनशील मुद्दों पर तीखी बयानबाज़ी कर रहे हैं, तो कुछ लोग देश के हितों को ताक पर रखकर जासूसी जैसे कृत्यों में लिप्त पाए जा रहे हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है, जो देश की एकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। 
आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत के सभी राजनीतिक दल और नागरिक एकजुट होकर राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानें। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। यदि हम अंदर से कमजोर होंगे, तो बाहरी शक्तियों को हमें कमजोर करने में देर नहीं लगेगी। सवाल यह है कि क्या भारत की सुरक्षा केवल सत्ताधारी दल की ज़िम्मेदारी है? क्या विपक्ष की भूमिका केवल आलोचना तक सीमित रहनी चाहिए? क्या यह समय नहीं कि भारत की सुरक्षा नीति एक गैर-राजनीतिक सहमति से संचालित हो? 
दुख होता है यह सोचकर कि हमारे वीर जवान  देश की रक्षा करते करते सरहद पर शहीद हो जाते हैं; लेकिन भीतर बैठे लोग अनर्गल बातें करके और जासूसी करके राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाते हैं।  शत्रुबोध से शून्य कुछ लोग इनको बचाने के लिए कानूनी तिकड़मों का आश्रय लेते हैं। अतः हमें अपनी आंतरिक और दलगत राजनीति की खींचतान से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के लिए एकजुट होना होगा।  
आज जब भारत वैश्विक मंच पर आतंकवाद के विरुद्ध नेतृत्व कर रहा है, तब हमें अपनी एकता और संकल्प शक्ति से यह सिद्ध करना होगा कि भारत केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया और समूची मानवता के लिए खड़ा है।  आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में हर भारतीय की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। एकजुटता, संकल्प और देशभक्ति यही भारत की सच्ची शक्ति है। देश का अहित करने वाले प्रेम की भाषा नहीं समझते। उनका एक ही उपचार है- उन्हें जड़ से समाप्त करना। चाणक्य भी यही कहते हैं- शठे शाठ्यम समाचरेत्-दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए।

पर्यावरणः गर्मी में भी घुट रही है दिल्ली की सांसें

  - पंकज चतुर्वेदी

पंजाब के सुदूर गाँव की रहने वाली इस युवती ने  हिन्दी में पी एचडी किया और दिल्ली के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान में काम मिल गया। होली गुजरी ही थी कि उसकी साँस घुटने लगी। फिर शरीर पर एलर्जी उभरने लगी। जब दवा भी माकूल असर नहीं दिखा पाई, तो डॉक्टर ने कह दिया कि  इस मौसम में दिल्ली में न रहो। अजब है दिल्ली, जाड़े में स्मॉग से दम घुटता है और साँस की बीमारी के लोगों को कह दिया जाता है कि दिल्ली छोड़ दो ।

गर्मी आई तो भी साँसों का संकट यथावत। अब बरसात होती ही कितने दिन की है ? बहादुरगढ़ से फरीदाबाद और गुरुग्राम से गाजियाबाद-नोएडा तक फैले दिल्ली एनसीआर में। कोई  पाँच करोड़ की आबादी पर बढ़ते तापमान के साथ  शुद्ध पेय जल के साथ साफ हवा की कमी और गहरा रही हैं ।

कैसी विडंबना है कि जो पेड़ पर्यावरण सुधारने के इरादे से सड़क किनारे और सार्वजनिक स्थानों में लगाए गए वे ही लोगों के दम घुटने का कारक बन रहे हैं। सिरस, गुलमोहर, सफेदा,  शिरीष, आम, नीम, मोलसरी जैसे कई ऐसे पेड़ दिल्ली में छाए हैं, जिनके परागण से साँस की बीमारी पर चर्चा कम ही होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार पराग कणों की ताकत उनके प्रोटीन और ग्लाइकॉल प्रोटीन में निहित होती है, जो मनुष्य के बलगम के साथ मिल कर करके अधिक जहरीले हो जाते हैं।

ये प्रोटीन जैसे ही हमारे खून में मिलते हैं, एक तरह की एलर्जी को जन्म देते हैं। एक बात और कि हवा में परागणों के प्रकार और धनत्व का पता लगाने की कोई तकनीक बनी नहीं है। वैसे तो परागणों के उपजने का महीना मार्च से मई मध्य तक है: लेकिन जैसे ही जून-जुलाई में हवा में नमी का स्तर बढ़ता है:  तो पराग और जहरीले हो जाते हैं। हमारे रक्त में अवशोषित हो जाते हैं, जिससे एलर्जी पैदा होती है। यह एलर्जी इंसान को साँस की गंभीर बीमारी की तरफ ले जाती है। चूंकि गर्मी में ओजेन लेयर और मध्यम आकार के धूल कणों का प्रकोप ज्यादा होता है, ऐसे में परागण के शिकार लोगों के फेंफड़े  ज्यादा क्षतिग्रस्त होते हैं। 

इस मौसम में  दिल्ली के लोगों को साँस लेने के लिए साफ हवा का दूसरा अदृश्य सबसे बड़ा दुश्मन हैं वाहनों की बढ़ती संख्या। हर वाहन के चलने से टायर घिसते ही हैं और इससे टायर की रबर, उसको बनाने में लगे  गोंदयुक्त रसायन आदि के 2.5 पी एम के कण निकलते हैं। सड़क गरम होती है, तो घिसाई अधिक होती है और ऐसे में हवा न चलने पर ये कण मानव के आवासीय ऊँचाई तक ही सीमित रह जाते हैं ।

इसमें तड़का लगता है वाहन के लिए अनिवार्य एलईएडी बेतरी से निकलने वाले  रासायनिक जहरीले धुएँ का। भले ही यह वायु प्रदूषण ठंड  के दिनों की तरह  प्रत्यक्ष दिख नही रहे हों:  लेकिन मानव शरीर  पर इसकी घातकता उतनी ही हैं। देश की राजधानी के गैस चैंबर बनने में 43 प्रतिशत जिम्मेदारी धूल-मिट्टी व हवा में उड़ते मध्यम आकार के धूल कणों की है। दिल्ली में हवा की सेहत को खराब करने में गाड़ियों से निकलने वाले धुएँ से 17 फीसदी, पैटकॉक जैसे पेट्रो-इंधन की 16 प्रतिशत भागीदारी है। इसके अलावा भी कई कारण हैं जैसे कूड़ा जलाना व परागण आदि।

इस बार गरम हवाएँ  या लू जल्दी चल रही हैं और ऐसी हवा एक से डेढ़ किलोमीटर तेज गति से बहती है: इसी लिए मिट्टी के कण और राजस्थान -पाकिस्तान के रास्ते आई  रेत लोगों को साँस लेने में बाधक बनती है। अरावली को नुकसान पहुँचने से  सीमा पार से आने वाली रेत अब दिल्ली की हवा और आसमान को धुंधला बनाती है।

जितनी गर्मी होती है, दिल्ली महानगर में उससे जूझने के लिए वाहन, घर दफ्तरों में एसी का प्रयोग बढ़ जाता है।  एसी चलते हैं हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस से जो कि पृथ्वी की ओज़ोन परत के लिए घातक है। यही नहीं,  इतने सारे वातानुकूलन संयत्र चलाने के लिए लगने वाली  बिजली उत्पादन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन ओजोन परत को भी प्रभावित कर सकता है।

समझना होगा कि वायुमंडल में ओजोन का स्तर 100 एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स होना चाहिए। लेकिन जाम से हलकान दिल्ली में यह आँकड़ा 190 तो सामान्य ही रहता है। वाहनों के धुएँ में बड़ी मात्रा में हाइड्रो कार्बन होते हैं और तापमान चालीस के पार होते ही यह हवा में मिलकर ओजोन का निर्माण करने लगते हैं। यह ओजोज इंसान के शरीर, दिल और दिमाग के लिए जानलेवा है। इसके साथ ही वाहनों के उत्सर्जन में 2.5 माइक्रो मीटर व्यास वाले पार्टिकल और गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड है, जिसके कारण फेंफड़े बेहद कमजोर  हो जाते हैं ।

आखिर इससे निबटा कैसे जाए ? एक तो अब दिल्ली की सजावट के लिए जहाँ भी  हरियाली लगाई जाए , उसके लिए पेड़ों की प्रजातियाँ चुनते समय जलवायु परिवर्तन- गर्मी और  परागण की समस्या को ध्यान रखा जाए।  फिर सड़कों पर कम वाहन  निकलें, जाम न हो, इसकी योजना बने और कड़ाई से लागू हो। पानी का छिड़काव  एक ऐसा तरीका है जिससे काफी कुछ गर्मी और और उससे उपज रहे साँसों के संकट से जूझा जा सकता है। लाखों की संख्या  में चल रहे एसी और  करोड़ों की संख्या के  पानी के आर ओ  से निकलने वाले जिस पानी को हम बेकार समझ कर नाली में बहा  देते हैं, उसके जल संचयन और छिड़काव में इस्तेमाल से इस महा समस्या को कम किया जा सकता हैं ।( indiaclimatechange से साभार)