- डॉ. रत्ना वर्मा
धरती का स्वर्ग के नाम से प्रसिद्ध कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकवादियों ने निर्दोष पर्यटकों पर कायराना हमला करके भारत की आत्मा को एक बार पुनः झकझोर दिया है। हरी- भरी वादियों, बर्फ से ढके पहाड़ों और खूबसूरत झीलों वाले इस प्रदेश में 2019 के बाद पुनः पर्यटन को बढ़ावा मिला और लोग बड़ी संख्या में यहाँ पहुँचने लगे; परंतु दरिंदों को हमारी खुशियाँ रास नहीं आई। जैसे ही ये हरी भरी वादियाँ फिर से पहले की तरह गुलजार होने लगी थीं, लोग यहाँ खुशियाँ मनाने, खुशियाँ बाँटने फिर से इकट्ठा होंगे लगे थे कि यह भयावह घटना घट गई। छुट्टियाँ मनाने आए पर्यटकों का खून बहाकर आतंकवादियों ने फिर एक बार दहशत पैदा करने की कोशिश की है। उनका मकसद भी तो यही था कि कश्मीर फिर से थर्राने लगे और लोग डर से यहाँ आना बंद कर दें।
इसमें कोई दो मत नहीं कि पहलगाम में हुआ यह हमला एक सुनियोजित हमला था और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, कश्मीरियों का अमन-चैन और आम नागरिकों के मनोबल को तोड़कर कश्मीर की धरती पर अस्थिरता पैदा करने की एक नाकाम कोशिश थी। इस भयावह घटना ने प्रत्येक भारतीय के दिलों को आक्रोश और पीड़ा से भर दिया है, सबसे गंभीर बात धर्म पूछकर सिर्फ हिन्दुओं को अपनी बंदूक का निशाना बनाने वाली इस कायराना घटना ने सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आतंकवाद किस हद तक हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आज भी चुनौती बना हुआ है। मारे गए 28 निर्दोष पर्यटकों में से कोई किसी का पिता, किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति था। इन परिवारों का दुःख क्या हम सिर्फ अपनी संवेदनाएँ व्यक्त करके दूर कर सकते हैं, नहीं बिल्कुल नहीं, जवाबी कार्रवाई ही सही मायनों में उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
पूरा देश इस समय गुस्से से उबल रहा है। जायज है, जब बार-बार निर्दोष की जान जाती है, तो स्वाभाविक रूप से जनता के मन में रोष और क्षोभ उत्पन्न होता है; लेकिन इस गुस्से को संयमित रूप में व्यक्त करना भी जरूरी है, ताकि हम अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगा सकें। हमें यह ध्यान रखना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म या क्षेत्र नहीं होता। धर्म पूछकर मारना वर्ग विशेष को निशाना बनाना आपसी सौहार्द को नष्ट करने का घृणित उद्देश्य है। हमारी लड़ाई आतंक के इस जाल और उसको पनाह देने वालों के खिलाफ है, जिसका डटकर मुकाबला करना है और जीतना है।

जनरल विपिन रावत जैसे रणनीति कार भी यही मानते हैं कि आतंकवाद का मुकाबला ‘हार्ड पावर’ से करना चाहिए, ताकि अगली बार कोई इस तरह का दुस्साहस करने से पहले दस बार सोचे। वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कहते हैं आतंक का मुकाबला केवल रक्षात्मक तरीके से नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति से करना चाहिए। उनका दृष्टिकोण है कि जहाँ से खतरा उत्पन्न होता है, वहीं जाकर उसे खत्म करना चाहिए। वे इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि आतंकवाद को केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं मानना चाहिए; बल्कि इसे एक युद्ध जैसी चुनौती मानकर ही उसका जवाब देना चाहिए। रक्षा विश्लेषक मारूफ़ रज़ा भी मानते हैं कि भारत को ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाते हुए न केवल आतंकियों के खिलाफ; बल्कि उनके संरक्षकों के खिलाफ भी कठोर जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए। वे जोर देकर कहते हैं कि भारत को अपनी प्रतिक्रिया में सख्ती और स्पष्टता दिखानी चाहिए। दूसरी ओर रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि भारत को इतना कठोर और प्रभावी जवाब देना होगा कि अगली बार कोई हमला करने से पहले दस बार सोचे। वे मानते हैं कि भारत को केवल रक्षात्मक नहीं रहना चाहिए; बल्कि राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक दबाव के त्रिस्तरीय उपाय अपनाने चाहिए।
देश की सुरक्षा केवल सरकार और सेना की जिम्मेदारी नहीं है। हर नागरिक की भी यह जिम्मेदारी है कि वह नफरत और अफवाहों से दूर रहे और आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय एकता को मजबूत करें। यहाँ राजनीतिक खींच- तान और एक दूसरे पर दोषारोपण जैसी ओछी हरकतों से भी ऊपर उठकर एकजुटता का परिचय देते हुए देश हित को सर्वोपरि रखना होगा; क्योंकि आतंकी ताकतें इसी बात का फायदा उठाते हुए हमें आपस में बाँटना चाहती हैं। हमें उनकी इस साजिश को नाकाम करना होगा। अतः यह समय है जब संवेदना और गुस्सा, दोनों को संतुलित करते हुए हम एक ठोस रणनीति बनाएँ। हमारा संदेश साफ होना चाहिए: भारत आतंकवाद के सामने झुकेगा नहीं, न ही आतंकियों के संरक्षकों को बख्शेगा। हमारी नीतियाँ न्याय, दृढ़ता और मानवता पर आधारित होंगी, और हम हर हाल में अपने देशवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
फिलहाल तो सुरक्षा की दृष्टि से कश्मीर के अधिकतर पर्यटन स्थलों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है; परंतु जैसे ही स्थिति सामान्य होगी हम जल्द ही कश्मीर की वादियों की खूबसूरती का आनंद लेने बड़ी संख्या में पहुँचेंगे । यह गुनगुनाते हुए-
कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है, ये कश्मीर है... ये कश्मीर है...
मौसम बेमिसाल बेनजीर है... ये कश्मीर है... ये कश्मीर है...
2 comments:
श्रद्धेय रत्ना जी,
जिस पहलू को आपने छुआ है यकीन मानिए ऐसा लग रहा है की ईश्वर कोई अदृशय शक्ति दे और बाहर- भीतर ऐसा सफाया किया जाए की पुश्तें सोचे पैदा होने में !
अब जब कश्मीर में धीरे धीरे ज़िंदगी में शांति लौट रही थी और विश्वास पनपने लगा था ऐसे में पहलगाम की आतंकवादी द्वारा हत्याएं जितनी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हैं इनके पीछे झाँकती मानसिकता उतनी ही ज़हरीली है ! यह हमला घाटी को फिर से मुस्कुराते देखने की उम्मीद की हत्या भी है बल्कि यूँ कहें की यह कश्मीर में जेनोसाइड के अतीत की निरंरता है जिसने १९९० में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जातिये सफ़ाए को प्रेरित किया था !
राजनैतिक लोभ में जिस राज्य की नींव ही ग़लत बनायी गई हो उस राज्य में टेरेरिज्म को प्यार के गुलदस्ते से नहीं ठीक किया जा सकता
एक ठोस प्रहार चाहिए ही चाहिए !
सादर !
डॉ. दीपेंद्र कमथान
आदरणीया
बहुत गहन गम्भीर विषय को किया है कलमबद्ध। मामला बहुत पेचीदा है। कुल मिलाकर :
1) आतंकवादियों से मिले जुले कश्मीरियों ने भी सच कहें तो आवाज़ तब उठाई जब उनके पेट पर लात पड़ी। वरना वहां का पूर्व इतिहास तो पत्थरबाजों एवं आतंकवादियों के जनाजे में शामिल होने का रहा है।
2) दूसरी बात हमें बाहरी दुश्मनों की जरूरत ही नहीं। घर के अंदर ही बैठे हैं। खो गई कुर्सी के गम में पाकिस्तान से हाथ मिलाने से भी कोई गुरेज़ नहीं
-- युद्धों में कभी नहीं हारे हम डरते है छलचंदो से
-- हर बार पराजय पाई है अपने घर के जयचंदो से
3) कुल मिलाकर परिदृश्य भयावह है। देश को संभालने एवं जान की कुर्बानी देने की जिम्मेदारी शायद केवल सेना की है। बाकि सबका ख़ासकर बहुसंख्यक समुदाय का धरती पर अवतरण तो केवल मौजमस्ती के लिए हुआ है
काश सबको सन्मति दे सके भगवान। आपके साहस को प्रणाम सहित सादर
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