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Apr 1, 2025

विज्ञानः बंद पड़ी रेल लाइन का ‘भूत’

 भूत-प्रेत के किस्से कहानियाँ काफी प्रचलित हैं। यकीन करें या ना करें, लेकिन ऐसे किस्से-कहानियाँ इतने

रोमांचक होते हैं कि हर जगह इनको सुनने-सुनाने वाले लोग मिल ही जाते हैं।

किसी भी आहट, हरकत, या मंजर को भूत की करामात मान लेने का हुनर और विश्वास दुनिया के सभी हिस्सों में होता है और ऐसे किस्से हर जगह मिल जाएँगे। इसी का एक उदाहरण है दक्षिण कैरोलिना के समरविले के जंगल में एक बंद पड़ी रेल लाइन पर अचानक कौंधने वाली चमक। 

इस इलाके के कुछ बड़े-बुज़ुर्ग इस चमक से जुड़ी एक भूतिया कहानी सुनाते हैं: कई साल से एक महिला रात के वक्त हाथ में लालटेन लिये अपने पति का सिर इस रेल लाइन पर तलाशने निकलती है। उसका पति कभी किसी समय इस रेल लाइन पर ट्रेन से कट गया था और इस घटना में उसका सिर धड़ से अलग हो गया था।

इस कहानी पर गौर करें, तो मन में कुछ ज़ाहिर से सवाल उठ सकते हैं। जैसे महिला को यदि सिर की ही तलाश है, तो वह रात में तलाशने क्यों निकलती है, दिन में क्यों नहीं जाती? दिन में तलाशे, तो सिर मिलने की संभावना अधिक होगी। 

इसी कहानी का एक दूसरा रूप भी सुनने को मिलता है: 1880 के दशक में जब यह रेल लाइन चालू थी, तब एक महिला रोज़ रात को हाथ में लालटेन लिए अपने ट्रेन कंडक्टर पति से मिलने और उसे खाना देने इस रेल ट्रेक पर आती थी। एक रात को वह आई; लेकिन ट्रेन नहीं आई, बस खबर आई कि ट्रेन पटरी से उतर गई है और उसका पति उसमें मारा गया। लेकिन उसे यकीन नहीं हुआ और इस विश्वास में कि उसका पति लौटकर आएगा, वह रात को यहाँ लालटेन लेकर उसका इंतज़ार करती है। 

कहानी के ऐसे कुछ और भी संस्करण सुनने को मिलते हैं; लेकिन जितने भी संस्करण आप सुनेंगे, उनमें एक चीज़ कॉमन है: रेल ट्रेक के पास लालटेन की रोशनी, या यूँ कहें लालटेन की लौ के समान प्रकाश की वलयाकार चमक। दरअसल, इन सभी कहानियों में (एकमात्र) यही वास्तविक अवलोकन है और लोगों द्वारा इसके विविध अनुभवों ने भूतिया कहानियों को जन्म दिया है।

इन कहानियों ने जब स्थानीय किस्सागोई से आगे बढ़कर किताबों और अखबारों की सुर्खियों में जगह बनाई तो यू.एस. जियोलॉजिकल सर्वे की भूकंपविज्ञानी सुज़ैन हफ का ध्यान इनकी ओर गया। और बारीकी से जब उन्होंने इनके विवरणों को पढ़ा , तो पाया कि यह कोई भूत-प्रेत का मामला नहीं बल्कि एक भूकंपीय घटना का संकेत है। 

जैसे लोगों ने कहा था कि उन्होंने अपनी कारें बेतहाशा हिलते हुए महसूस कीं, या अचानक घर के दरवाज़े हिलते हुए देखे। स्पष्ट तौर पर ये भूकंप के नतीजे थे। अलबत्ता, कुछ विवरण ऐसे थे जो सीधे तौर पर भूकंपीय घटना से जुड़े नहीं लगे रहे थे। जैसे, लोगों को शोर और फुसफुसाहट सुनाई देना। लेकिन हवा में टंगी वलयाकार रोशनी तो भूकंपीय घटना का परिणाम लग रही थी। 

दरअसल इस इलाके में किए उनके पूर्वकार्य के अनुभव कह रहे थे कि यह रोशनी भूकंपीय घटना का परिणाम है। 2023 में, हफ और उनके साथियों ने इन्हीं पटरियों पर फील्डवर्क करते समय देखा था कि इन पटरियों में एक अजीब सा खम (घुमाव) है; बिछे ट्रेक पर पटरियाँ जहाँ-तहाँ थोड़ा मुड़ गई हैं और सीधी की बजाय लहरदार बिछी हैं। कभी सीधी रहीं इन पटरियों के लहरदार हो जाने का कारण उन्होंने 1886 में चार्ल्सटन में 7.3 तीव्रता का भूकंप पाया था।

फिर, कई अन्य जगहों पर भूकंपीय रोशनी अनुभव भी की गई हैं, जैसे विलमिंगटन और कैरोलिनास में भी इसी तरह की रोशनी दिखने की सूचना मिली है। और ये विलमिंगटन, कैरोलिनास या दक्षिणी कैरोलिना में ही नहीं, बल्कि कहीं भी दिख सकती हैं। लेकिन इनका अध्ययन करना मुश्किल है; क्योंकि ये कब-कहाँ दिखेंगी इसका कोई ठिकाना नहीं; इसलिए भूकंप की रोशनी को कैमरों वगैरह में कैद करना थोड़ा मुश्किल है। और फिर अब इतने सालों बाद समरविले और ऐसे अन्य स्थान इतने भी सुनसान और अंधकार में डूबे नहीं रहे हैं कि पल भर को कौंधती रोशनी अच्छे से दिख जाए। 

जापान के एक वैज्ञानिक, युजी एनोमोटो ने इन भूकंपीय रोशनियों के निकलने का कारण तो बताया है। जब भूकंप आता है, तो कभी-कभी इसके साथ रेडॉन या मीथेन जैसी गैस निकलती हैं, और जब ये गैस ऑक्सीजन के संपर्क में आती हैं , तो जलने लगती हैं। नतीजतन चमक पैदा होती है।

लेकिन समरविले के मामले में हफ का ख्याल है कि यहाँ भूकंप के साथ रोशनी पैदा करने में रेडॉन या मीथेन जैसी गैसें नहीं बल्कि रेल की पटरियाँ भूमिका निभाती हैं। दरअसल साउथ कैरोलिना में अपने फील्डवर्क के दौरान उन्होंने देखा था कि ट्रेक के आसपास पुरानी पड़ चुकी पटरियों का ढेर पड़ा हुआ है। होता यह है कि जब रेल कंपनियाँ पुरानी पटरियों को बदलती हैं , तो प्राय: पुरानी पटरियों को वहाँ से हटाती ही नहीं हैं। इसलिए, ट्रेक के आसपास ढेर सारी स्टील की पटरियाँ पड़ी होती हैं। और थोड़ी हलचल या भूकंप से जब ये पटरियाँ आपस में रगड़ खाती हैं , तो इनसे चिंगारी निकलती है, जो लोगों ने अनुभव की। और कहानी बन गईं।

अपने इस विचार को हफ ने सिस्मोलॉजिकल रिसर्च लैटर्स में प्रकाशित किया है, और वे इस पर खुद व अन्य लोगों द्वारा आगे काम करने और भूकंपीय रोशनी को तफसील से समझने की उम्मीद करती हैं।

बहरहाल, जैसा कि हमने शुरूआत में कहा, हमारे यहाँ भी ऐसी ढेरों कहानियाँ मशहूर हैं। भानगढ़ के मशहूर किले को ही ले लें; किले में रात के वक्त सुनाई देने वाली आवाज़ें उसे भूतिया करार देती हैं। हफ के द्वारा किया गया यह अध्ययन और उसका परिणाम क्या हमारे यहाँ के वैज्ञानिकों को यह समझने के लिए प्रेरित कर सकता है कि खाली पड़े खंडहर में रात को किसी (‘प्राणी’ या ‘शय’) की गूंज/पुकार सुनाई देती है या माजरा कुछ और ही है? (स्रोत फीचर्स)

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