1. मेट्रो लाइफ
महानगरीय जीवन शैली की चाल से चाल मिलाने की कोशिश में लगे, दोनों पति- पत्नी रात के नौ बजते- बजते, थके- हारे अपने -अपने ऑफिस से निकल पड़े। घंटे भर बाद, आलीशान बहुमंजिला इमारत के सामने पहुँचकर कार से उतरे और-
"हैलो डियर।"- एक दूसरे को देखकर फीकी मुस्कान के साथ पति ने कहा।
"हाय"- पत्नी ने भी थकी हुई आवाज में कहा।
"हैलो सर, .... योर डिनर पार्सल।"- फेमस फूड कंपनी के डिलीवरी ब्वाय ने पार्सल का पैकेट देते हुए कहा।
"ओके, थैंक्स।" - पति ने पार्सल लेकर कहा।
"हेव ऐ नाइस डिनर, सर एण्ड मैम।"- कहता हुआ बॉय चला गया।
रोज की तरह, ऑफिस से निकलते समय ही उन्होंने ऑॅनलाइन खाना आर्डर कर दिया। जो उनके घर पहुँचने के पहले ही डिलीवरी बाय लेकर खड़ा था।
लिफ्ट से, पच्चीसवे माले पर, पहुँचकर उन्होंने अपने फ्लैट का ताला खोला। पति वहीं ड्राइंग रूम में पड़े सोफे पर ढेर हो गया और टीवी ऑॅन कर लिया। पत्नी ने फ्रेश होकर, पार्सल का खाना प्लेट में निकालकर, पति को आवाज लगाई-"डियर,... डिनर इज रेडी।"
"ओके...डार्लिंग कमिंग।"- पति कहते हुए बाथरूम में फ्रेश होने घुस गया।
दोनों ने टीवी से नजरें हटाए बिना, जल्दी- जल्दी अपना खाना खत्म किया और अपनी- अपनी प्लेट्स को धोकर, जगह पर व्यवस्थित रख दी। बिस्तर पर अपनी- अपनी साइड पर लेटकर, मोबाइल पर दिन भर आईं, सोशल मीडिया की खबरों को देखने में मशगूल हो गए। व्हाट्सएप, इन्स्टा, फेसबुक पर आई पोस्टों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। साथ ही अपने फेवरेट सिलेब्रिटी, स्पोर्ट्स प्लेयर, दोस्तों और रिश्तेदारों की जन्मदिन, पार्टी, वेकेशन आदि की आई पोस्टों पर आधी रात तक लाइक और कमेंट कर, अपने आप को अपडेट किया। जब नींद से उनकी पलकें भारी होने लगी तो
" गुड नाइट डियर। " - कहकर दोनों, एक- दूसरे की तरफ पीठ कर सो गए।
2. प्रॉमिस
सुबह से वे कितनी बार फोन लगा चुके थे, पर फिर भी पोते से बात नहीं हो पा रही थी। अब तो धीरे-धीरे उनकी प्रसन्नता, उदासी में बदलने लगी थी। कितने उत्साह से सुबह पोते से बात करने फोन हाथ में लिया ही था कि "अरे! बावले हो गए हो क्या? जो इतनी सुबह- सुबह फोन लगाने बैठ गए। वो आपका गाँव नहीं, शहर है, वहाँ सभी लोग अभी सो रहे होंगे, परेशान हो जाएँगे, बाद में बात करना।"- पत्नी की बात सुनकर वे मन मसोसकर रह गए और फोन रख दिया।थोड़ी देर बाद फिर दोबारा फोन लगाया तो बहू ने बताया - "राहुल तो स्कूल चला गया जब आएगा तो बात करा दूँगी।"
पर इंतजार करते-करते शाम के चार बज गए, फोन नहीं आया, तो उन्होंने फिर फोन किया तो बहू ने बताया - "राहुल कोचिंग पढ़ने चला गया है, वहाँ से आएगा तब ही बात हो पाएगी।"
अब तो रात के आठ बज गए, पोता घर आ चुका होगा- सोचकर उन्होंने फिर फोन लगाया, पर इस बार बहू ने कहा- "बाबूजी वह स्पोर्ट्स क्लब से अभी तक नहीं आया है। पिछले महीने टेबिल टेनिस के स्टेट लेवल सिलेक्शन में एक स्टेप रह गया था। तो इस बार हम कोई गलती नहीं करना चाहते। आप परेशान न हों, आएगा तो मैं आपसे जरूर बात करा दूँगी।"
"अच्छा बहू! "- कहकर उन्होंने उदास होकर फोन रख दिया।
इंतजार करते- करते रात के बारह बज गए पर फोन न आया। एक आखरी बार, बात करने की गरज से उन्होंने हिचकते हुए फिर फोन लगा ही लिया, इस बार फोन बेटे ने उठाया-" क्या बात है? बाबूजी, इतनी रात गए फोन किया?"
"राहुल से बात करनी थी।"
"पर वह तो सो गया है।"
"अच्छा!. ...बेटा अगर न सोया हो, तो थोड़ा मेरी बात करा दे।"
" बाबूजी उसके शेड्यूल के हिसाब से वह सो गया है।"
" बेटा ...आज उसका जन्मदिन है, तो. ."
" हाँ बाबूजी जन्मदिन था, सुबह स्कूल चॉकलेट्स और गिफ्ट्स लेकर गया था, बच्चों के साथ मनाया होगा, आप कल बात कर लेना।"- सपाट शब्दों में बोलकर बेटे ने फोन रख दिया।
" दादाजी.... प्रॉमिस कीजिए मेरे बर्थडे पर सबसे पहले आप ही मुझे विश करेंगे।" - छुट्टियों में गाँव आए, पोते की बात याद कर उनका दिल जार- जार रो उठा।
शहर की पाश कॉलोनी के आलीशान गार्डन में, दो छोटे बच्चे खेलते हुए बोले,
"बच्चों को फ्रूट खाना सबसे अच्छा होता है।" पहले बच्चे ने कहा।
"नहीं, ग्रीन वेजिटेबल खाना अच्छा होता है।" दूसरे ने कहा।
" मेरी टीचर ने मुझे बताया है, फ्रूट खाने से ताकत आती है।" पहले ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
"मेरी मॉम कहती हैं, अगर मैं रोज ग्रीन वेजिटेबल खाऊँगा, तो कभी बीमार नहीं पड़ूँगा।"
दूसरे ने भी अपनी बात रखी। "फ्रूट खाना गुड होता है....."
"नहीं ग्रीन वेजिटेबल......।"
दोनों बच्चे अपनी बात पर अड़े थे, तथा कोई भी हार मानने तैयार न था।
"अये लड़के सुनो!" वही गार्डन में अपने पिता की सफाई में मदद कर रहे माली के छोटे बच्चे को बुलाते हुए कहा।
"जी।" माली का बेटा सकुचाते हुए पास आकर बोला।
"तुम बताओ फ्रूट खाना अच्छा है कि ग्रीन वेजिटेबल?" पहले बच्चे ने कहा।
कुछ देर तक सोचने के बाद, अपने दिमाग पर जोर देते हुए माली के बेटे ने कहा "रोटी! "
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सम्पर्कः भेड़ाघाट जबलपुर म. प्र.
2 comments:
संवेदना को झकझोरती मार्मिक लघुकथाएँ।अर्चना राय जी को बधाई।
मर्मस्पर्शी लघुकथाएँ। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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