प्रकृति प्रदत्त नि:शुल्क पानी को बढ़ती जनसंख्या और मनुष्यों की लापरवाहियों ने सशुल्क बना दिया। नतीजों की परवाह किए बगैर, हम थोड़े से रुपये अदा करने के एवज में बेहिसाब पानी खर्च करते रहे हैं और आज नल में पानी नहीं है ... या नहीं आएगा सुनते ही हमारा दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। सोचने लगते हैं ...
ओह ! अब क्या होगा ?
फिर क्या, पूरा ध्यान और जद्दोजहद पानी को लेकर और पानी की कवायद शुरू। मौसम गर्मी का हुआ तो फिर क्या ही कहने। इस फ़िराक में कि कहीं से आ जाए पानी, सौ बार हम नल को टटोल आएँगे।
कल्पना कीजिए दो-तीन दिन पानी न आए, तो क्या माहौल होगा घरों में। घर के अंदर ही शीत युद्ध का माहौल-सा बन जाएगा। अशांत मन पानी की तलाश में और फिर पूरी दिनचर्या अस्त- व्यस्त।
लेकिन यह स्थिति बद से बदतर तब और हो जाएगी जब धरती का आँचल ही सूख जाएगा।
एक पल के लिए हम अन्न खाए बिना रहने की सोच सकते हैं, लेकिन बिना पानी के रहना, नहीं और यही अटल सत्य है।
इन सभी बातों का सार यही है कि हम मानव ‘जल के बिना’ की परिकल्पना भी नहीं कर सकते हैं, साथ ही पानी हमारे सामाजिक और आर्थिक प्रगति को प्रत्यक्ष रूप से भी प्रभावित करता है।
*रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून*
वर्षों पुराना यह दोहा मनुष्य के व्यवहार को लेकर कहा गया था; लेकिन आज यह सच साबित होता दिख रहा है, क्योंकि पानी की कमी, बर्बादी या किल्लत को लेकर व्यक्तिगत तौर पर किसी को कोई सरोकार नहीं। हम अक्सर लोगों से यह सुनने को मिलता है कि यह तो सरकार का काम है पानी मुहैया कराएँ। नहीं तो अपना अपना चापाकल ( बोर वेल ) खुदवाएँ।
क्या यह समस्या का समाधान है ?
क्या किसी ने सोचा कि अगर धरती ही सूख जाएगी तो चापाकल या सरकार कहाँ से पानी निकाल हम-आपको देंगें?
क्या हमने कभी यह सोचा कि धरती के अंदर पानी है भी कि नहीं ?
क्या इस साल बारिश हुई ?
अगर हाँ, तो क्या हमने बारिश के पानी को जमा किया ? ताकि अगले बरस बारिश न हो तो जमा किया हुआ पानी काम में आ सकें।
नहीं न,...क्योंकि इन सबको सोचने का जिम्मा हमने सरकारों पर जो छोड़ रखा है, कि निपट लेगी सरकार।
सोचा है किसी ने? कि सरकारें भी तभी कुछ कर सकती हैं जब धरती के अंदर पानी होगा।
हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं कि सूखी धरती पर रहने वालों का जीवन किस कदर बिखर जाएगा। इन विषयों और विवादों की गहराई में अगर हम जाएँ, तो पानी हमारे सामाजिक और आर्थिक प्रगति को क्यों और कैसे सीधे तौर पर प्रभावित करता है यह स्पष्ट ज्ञात होगा।
*पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा* ने बढ़ते जल संकट और पानी के भयावह स्थिति को देखते हुए एक समय में यह कहा था कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर लड़ा जाएगा, अतिशयोक्ति नहीं।
राज्यों के बीच नदी के पानी को लेकर लड़ाई भारत में बड़े अंतर राज्यीय जल विवादों के उदाहरणों से हम में से अधिकतर लोग अवगत हैं। चाहे वह कावेरी जल विवाद, रावी- व्यास नदी जल विवाद, नर्मदा नदी जल विवाद हो या कृष्णा नदी जल विवाद। नदियों के जल को लेकर राज्य और देशों में कलह। क्योंकि पानी तो हर हाल में हर किसी को चाहिए।
अगली बार शायद जल को लेकर ही विश्व युद्ध हो जाए। इसे भी नकारा नहीं जा सकता है। आज अनेकानेक कारणों से, चाहे वह महामारी से हो या युद्ध से अनगिनत लाशों की खबर सबने देखी और सुनी; लेकिन बहुत जल्द ही यह भी दिन देखने, सुनने को मिलेगा कि पानी के अकाल के चलते अनगिनत लोग मरे। सोचिए जब चारों ओर पानी के बिना लाशें ही लाशें नजर आएँगी।
उस वक्त इस देश का क्या होगा ?
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2030 तक देश में पानी का स्रोत ही खत्म हो जाएगा और सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं, बल्कि देश के ऐसे कई शहर होंगे जो 2030 तक ‘डे जीरो’ की कगार पर पहुँच जाएँगे।
‘डे जीरो’ का मतलब उस दिन से है जब किसी शहर के पास उपलब्ध पानी के स्रोत खत्म हो जाएँगे और वे पानी की आपूर्ति के लिए पूरी तरह अन्य साधनों पर निर्भर हो जाएँगे; क्योंकि दुनिया भर में जितना मीठा पानी मौजूद है, उसमें से भारत के पास सिर्फ 4 फीसदी ही पीने लायक पानी बचा है।
आपदा कोई भी हो परिणाम गंभीर रूप में सामने आती हैं, लेकिन दूसरे प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सूखे का प्रभाव अधिक गंभीर होता है। सूखे की स्थिति को हम जटिल और खतरनाक इसलिए भी कह सकते हैं कि यह सामाजिक और आर्थिक प्रगति को प्रभावित करने के साथ ही जीवन के लिए जटिल चुनौतियों को भी जन्म देती है।
मौसम संबंधी सूखा तब होता है, जब किसी क्षेत्र में शुष्क मौसम हावी होता है। हाइड्रोलॉजिकल सूखा तब होता है, जब कम पानी की आपूर्ति स्पष्ट हो जाती है, खासकर नदियों, जलाशयों और भूजल स्तरों में; आमतौर पर कई महीनों के मौसम संबंधी सूखे के बाद। कृषि सूखा तब होता है जब फसलें प्रभावित हो जाती हैं और सामाजिक आर्थिक सूखा विभिन्न वस्तुओं की आपूर्ति और मांग को सूखे से जोड़ता है।
मौसम संबंधी सूखा तेजी से शुरू और समाप्त हो सकता है, जबकि हाइड्रोलॉजिकल और अन्य प्रकार के सूखे को विकसित होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है। सूखे से होने वाली हानि सभी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले कुल नुकसान का लगभग 22 प्रतिशत है, जो कि बहुत गंभीर है।
पानी हमारे शरीर के बाहर के साथ- साथ अंदर के लिए भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। मात्र -
‘जल का दुरुपयोग न करें’
‘पानी बचाओ’
‘जल ही जीवन है ‘
‘जल है तो कल है’ आदि स्लोगन का नारा लगाने से पानी नहीं बचता है। रोजमर्रा की जिंदगी में अमल में भी लाना चाहिए। हमें केवल अपने अधिकारों के ही नहीं वरन् कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।
महात्मा गांधी ने कहा था कि अधिकार एवं कर्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू कहा है। पानी को बर्बाद होने से बचाना हमारा ही कर्तव्य है।
इस समय पानी के संरक्षण के लिए सर्वप्रथम वैज्ञानिक आविष्कार की नहीं बल्कि वैचारिक आविष्कारों की आवश्यकता है। कुछ जिम्मेवारी या कर्तव्य को हम अपने घरों में रहकर निभा सकते हैं।
पानी संरक्षण में अगर हर एक व्यक्ति अपनी भागीदारी निभाएँ, तो निःसंदेह धरती को सूखने से बचाया जा सकता है। कहावत कि बूँद-बूँद सागर भरता है। उसी तरह हर एक व्यक्ति की भागीदारी से हम धरती के अंदर पानी को सहेज कर रख सकते हैं और सूखने से बचा सकते हैं।
आज की पीढ़ी प्रकृति प्रदत्त पानी को बोतल में बंद बिकता देख रही हैं। पानी अगर बर्बाद होता रहा तो आने वाली पीढ़ी पता नहीं जल को किस रूप में देख पाएँगे।
क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को हरी-भरी धरती सौंपें।इसके लिए आज हमें जल का उपयोग बुद्धिमानी से करने के साथ कुछ छोटे- छोटे मगर महत्त्वपूर्ण बातों को अमल में लाना होगा।
अपने दैनिक जीवन में इसकी हम शुरुआत कर सकते हैं।
★पानी के संरक्षण में सबसे पहले पानी के अपव्यय को रोकने के लिए निम्नलिखित पर अंकुश लगाकर या कम करके कर सकते हैं :
★नल से पानी के रिसाव को बंद करें।
★नहाने के लिए शॉवर की जगह बकेट में पानी का इस्तेमाल करें।
★वॉश बेसिन में पानी धीरे चलाएँ या ब्रश करने के लिए मग में पानी लें।
★उपयोग में न होने पर नल को खुला न छोड़ें।
★घरेलू उपयोग से या किचन से निकला पानी का निष्कासन सीधे बगीचे में हो ऐसा इंतजाम करना चाहिए।
★वाहनों को साफ करने के लिए कम से कम पानी का इस्तेमाल करें।
★ लॉन या बगीचे में भी पानी का अपव्यय न होने दें।
उपर्युक्त सभी बातें हैं तो साधारण, लेकिन इन्हें अमल में लाकर हम असाधारण जल संकट से निजात पा सकते हैं।
★इसके अलावा वृहत् पैमाने पर अपने- अपने राज्यों में जल- संसाधन विभाग द्वारा कुएँ, तालाब या नहर खुदवाने के सुझाव तथा पुराने जर्जरीभूत जलस्रोत को दुरुस्त करने की कवायद कर सकते हैं।
★वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम घर- घर में तैयार किया जाए।
सरकार द्वारा पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगाई जाए।
★नए पेड़ उगाएँ ताकि वर्षा का जल इनके जड़ों में जमा होता रहें। पेड़ की गहरी जड़ें पानी को सोख नमी को बरकरार रखते हैं। धरती को सूखने नहीं देते।
★स्थानीय विद्यालयों में जल-संसाधन और संरक्षण के विषयों पर बच्चों को अवगत कराने तथा स्थानीय लोगों में जल संकट और बचाव के प्रति जागरूकता लाने के लिए अभियान या रैलियाँ निकालना।
★वैचारिक तथ्य यह है कि धरती हरी-भरी रहे इसका सारा दारोमदार बारिश पर टिका हुआ है। कलकल बहती नदियाँ भी तभी होंगी और हमारे नलों में पानी।
★ हम सबकी सामूहिक तौर पर यह जिम्मेदारी है कि धरती को सूखने से बचाने के लिए चिंतित होने के बजाय नियंत्रण और प्राकृतिक उपायों पर अमल करें और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएँ।
2 comments:
महत्वपूर्ण लेख ,बधाई
दीपाली जी धन्यवाद
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