पिताजी चले गए
और हम पिताजी हो गए
अब बेटे जब हमसे
आँख मिलाते हैं
तो दीवार पर टँगे
पिताजी मुस्कराते हैं
कभी- कभी लगता है
वे, फ्रेम से बाहर आएँगे
और हमको समझाएँगे-
बेटा, जैसा करोगे, वैसा भरोगे
बेटे से कहो
रात बहुत हो गई है, सो जाये
कंप्यूटर बंद करें, बत्तियाँ बुझाए
बिल बहुत आता होगा
उसको समझाओ
न पहले हम समझे
न अब बेटा समझता है
लगता है इतिहास
पृष्ठ पलटता है।
सम्पर्कः 90 -91/1 यशोदा विहार चूना भट्टी, भोपाल म. प्र., मोबाइल 94069 25564
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