- सरोज बाला
ऐसे ही कश्मीरी महिलाओं के कान में पहने जाने
वाला आभूषण देझूर का भी अपना ही संस्कृतिक महत्त्व हैं। जिसे दुल्हन शादी समारोह में देव-गौण रस्म के समय धारण करती है।
डेझूर सभी आभूषणों की तरह एक आभूषण होता है पर यह आम आभूषण नहीं है। इसे विशेष रूप
से देव-गौण के समय पहनाया जाता है। देव- गौण का अपना एक सांस्कृतिक महत्त्व है।
देव-गौण के समय देवी देवताओं का आशीष प्राप्त के करने के लिए उनका आह्वान किया
जाता है। कश्मीरी पंडितों की शादी के
मुख्य तीन आधार होते हैं। मंज रात, देव-गौण और
लगन, जिसे देश के उत्तरी भाग के क्षेत्र की भाषा में मेहंदी रात- सांत और लगन फेरे कहा
जाता है।
देवगोऊन एकमात्र ऐसी परंपरा है जिसके बिना शादी
या यज्ञोपवीत समारोह पूरा नहीं होता। यह परंपरा आमतौर पर सात दिन तक चलते हैं ।
यदि सात दिनों के अंदर लगन या यज्ञोपवीत जैसे रीति- रिवाज पूरे नहीं हो पाते तो यह
रीति- रिवाज फिर से शुरू किए जाते हैं।
इस परंपरा के अनुसार दुल्हन को स्नान के लिए
भेजा जाता है । यह परंपरा पाँच कन्याओं के द्वारा संपन्न कराई जाती है। इन पाँच
महिलाओं को कुमारियों के रूप में जाना जाता है जिन्होंने हिंदू धर्म के अनुसार
सर्वोच्च मोक्ष प्राप्ति ग्रहण की हैं। वे पाँच महिलाएँ है.... मंदोदरी, अहल्या, द्रौपदी, तारा और सीता
हैं। इसी तरह इन्हें पाँच तत्त्व की संज्ञा दी गई हैं, जैसे
अग्नि, जल, आकाश, पृथ्वी और वायु।
घर के आसपास महिलाएँ गोल आकार बनाकर खड़ी हो जाती
हैं फिर दुल्हन को उनके बीच विशेष रूप से
बैठाया जाता है । तभी वह सुख समृद्धि की आशीष पाती हैं जो उसके भविष्य में काम आती
हैं । इस आशीष के बाद चार कुमारियाँ वस्त्र धारण के लिए कहती हैं। और उसी वस्त्र
को चारों कुमारियाँ अपनी स्थिति में खड़े होकर वस्त्र को अपनी ओर कोने से पकड़े रखती
हैं। पाँचवीं कन्या पाँच पदार्थ के मिश्रण को दुल्हन के सिर पर लगाती हैं। यह पाँच
पदार्थ हैं- चावल, घी, दही,चंदन और गुलाब। इस स्थिति में पाँचवी कुमारी धर्म, अर्थ,
काम, मोक्ष और ब्रहा तत्त्व का गठन करने वाली
कुमारी होती है। इसी मौके पर घर की बुजुर्ग महिलाएँ ऋग्वेद के मंत्रों को बोलती
हैं। जिसका अर्थ दूल्हा -दुल्हन को आशीष देना होता हैं।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार देव-गौण के समारोह
के बाद दुल्हन को नए वस्त्र पहनने के लिए दिए जाते हैं। यह वस्त्र उसके पिता के
ननिहाल से आते हैं। और उसके बाद दुल्हन को आभूषण पहनने के लिए दिए जाते हैं। और
साथ ही कुछ बरतन उपहार के रूप में दिए जाते हैं। यह आभूषण दुल्हन के पिता की बहन अर्थात फूफी या बुआ लाती है। नव
दुल्हन इन वस्त्रों को स्वीकृत करती है।
देझूर सोने की धातु से बनाया जाता है । इसका वजन
दूल्हे के माता- पिता की आर्थिक स्थिति पर निर्भर होता है । इसे देव-गौण के दिन दुल्हन की माँ द्वारा दुल्हन को
पहनाया जाता है । इसे सिर्फ सोने की चेन के साथ या फिर रंगीन धागों के साथ पहना जाता
है । जिसे कश्मीरी भाषा में सुलमा या तिल्ला कहा जाता है । सोने में ढला हुआ देझूर
हमेशा केंद्र में एक बिंदु के साथ षट्कोण अकार का होता है इसे शिव और शक्ति का
प्रतीक यंत्र कहा जाता है । यह यंत्र देझूर कान के ऊपरी हिस्से में छेद से पार
करके लटकाया जाता है । और नीचे लटकने वाले हिस्से को देझूर और साथ ही नीचे लटकने
वाले धागों के गुच्छे को इस चेन या धागे से सहारा मिला होता है। कभी रंगीन धागों
के हिस्से की जगह सोने का हिस्सा भी लटकाया जाता है । लगन समारोह के समय अताह और
अटहूर की सहायता से वधू को सुसराल पक्ष की ओर से पहनाया जाता है जब दुल्हन सारे
रीति- रिवाज के बाद ससुराल पहुँचती है। ससुराल वाले दुल्हन के कानों में पड़ा अताह
बदल कर सोने का अटूहर और अताह में बदल देते है । देझूर को समर्थन करने वाले लाग
धागे को हटा देते हैं।
अटहूर देझूर
का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। जिसका सामाजिक और पारंपरिक महत्त्व होता
है । जिसे बहनों, रिश्तों में बेटियों को,
परिवार की महिला सदस्य को और करीबी महिला को घर के मांगलिक कामों
में उपहार के रूप में भी दिया जाता है जो प्रेम और स्नेह का प्रतीक है जिसे
हमेशा पहले बाएँ कान में डाला जाता है। यह
महिलाओं के लिए मंगलसूत्र जैसा होता है ।
जिसे कान के ऊपरी हिस्से में अताह और अटहूर के साथ लटकाया जाता है। इसकी
लम्बाई कानों से लेकर महिला के वक्ष तक होती
है। जिसे कान के साथ अलग ही लटकाया जाता है।
कोई भी महिला पति की मृत्यु के बाद विधवा होने
पर मंगलसूत्र धारण नहीं कर सकती, पर इस बात का उल्लेख कही
भी नहीं मिलता कि विधवा होने के बाद भी देझूर नहीं उतार सकती । पति की मृत्यु के
बाद जिस महिला के कोई पुत्र/ संतान नहीं
है, वह महिला देझूर नहीं धारण कर सकती ।
देझूर दोनों कानों में विशेष प्रकार के आकार का
आभूषण होता है जिसके दाएँ बाएँ तरफ पिन शेड होती है बीच वाले भाग को कानों में किए
हुए छेद से निकालकर ऊपर से नीचे तक अताह और अटहूर की मदद से दोनों कानों में
लटकाया जाता है।
दोनों ही पिन शेड के दाईं- बाईं
ओर का धार्मिक महत्त्व है; क्योंकि माना जाता है कि देझूर में शिव -शक्ति का निवास होता है। और बीच
वाला हिस्सा यज्ञ शाला वेदी माना जाता है इसी यज्ञ शाला वेदी से किसी दुल्हन को घर
के पारिवारिक विषयों में और घरेलू मामलों में भाग लेने का मौका मिलता हैं ।
कश्मीरी
पंडितों की इस प्रवृत्ति का उल्लेख श्रीमान लवारंस की पुस्तक ‘द वेली ऑफ कश्मीर’ में भी मिलता है तभी कश्मीरी पंडित वफादार, भरोसेमंद मिलनसार और बुद्धिमान होते हैं । वे ईमानदार और उच्च कोटि के बुद्धिमान होते हैं । और यह
माँ के दूध पीने से ही संभव है, जिसने के पास देझूर जैसा शक्तिशाली यंत्र होता है जिसमें शिव
शक्ति की आशीष होती है।
देझूर
महिलाओं को चिर यौवन और सुंदर रखने वाला शक्तिशाली यंत्र माना जाता हैं। इस बात का
उल्लेख जोन रिग की किताब ‘सेक्स
इंपल्स’ में भी मिलता है।
सोने की धातु से बनने के बावजूद देझूर पुराने समय
में बेटियों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा करने वाला यंत्र माना जाता था, जो शादी के बाद कई महीनों तक खराब मौसम के कारण, रास्ते
बंद होने के कारण अपने माता पिता से मिल नहीं पाती थी । ऐसे समय में यह यंत्र माता
पिता के आशीष स्वरूप उन्हें सामाजिक सुरक्षा और
सुख समृद्धि का एहसास दिलाता था।
परंतु आज बदलते दौर में कश्मीरी पंडित महिलाएँ
अपने पुराने रीति- रिवाज संस्कार भूलती जा रही हैं। वे देझूर को धारण करने से मना
कर देती है, वे इससे जुड़े धार्मिक कार्यों में भाग लेने
से मना करती हैं । वे देझूर की पहनने के सही तरीके को भी नहीं मानती जो कि देवगोऊन
के समय किसी विशेष कारण के लिए पहनाया जाता है।
रचनाकार के बारे में - शिक्षा: बी.ए/बी.एड़/.स्टेनोग्राफी, प्रकाशित पुस्तकें : हिंदी काव्य संग्रह “ प्रकृति की गोद में”, : डोगरी कहानी संग्रह “ सोचै दी गैहराई”, हिंदी काव्य संग्रह “सुकून भरी
तन्हाई “, देश भर
की पत्रिकाओं में कविता, कहानी और लेखों का प्रकाशन। सम्पर्कः गाँव रिज्जू पो./आ. गोविंदसर, तहसील/ ज़िला कठुआ, पिन न. 184102, जम्मू कश्मीर, मोबाइलः 7051950294/ 7006677903,
Bhardwajsaroj46@gmail.com
4 comments:
beautifully elborated,deeply thrashed and commandingly explained. AMAZING INFORMATION ! WAH !
Highly informative and enjoyed it.I wonder who gave you the idea about writing this article about’dejur’.You are unique and deserve high appreciation.
देझुर के विषय में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार। बहुत सुंदर
सुदर्शन रत्नाकर
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