मृत पड़ा है आलोक
मुझे फिर भी नहीं है शोक
मैं साहस का दीप
तिमिर तू देख
निशा की बेला में
नित मन की देहरी पे बालूँगी
हथियार नहीं डालूँगी
मृत पढ़ी है पुष्पलता
अरी झंझा तुझे क्या है पता
मेरे प्रश्वास की पाँखुरी पर
परितोष का पराग
तू जितना झकझोरेगी
अधरों से
उतना ही सौरभ
उछालूँगी
हथियार नहीं डालूँगी
मृत पड़ा सुरेन्द्र
मेरे जीवन- समर का केन्द्र
शत्रु के षडयंत्र से
फिर भी बाधित नहीं
मेरी पीठ पर बिंधे बाण
पौरुष के नहीं
ये नपुंसकता के हैं प्रमाण
लहूलुहान सत्य के लिए
जब तक संजीवनी नहीं पा लूँगी
हथियार नहीं डालूँगी!
आगरा, उत्तर प्रदेश
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