बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे।
मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी
शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर
आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि
बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। कुछ दिन हुए लखनऊ में एक सरकस-कंपनी आयी थी।
उसके पास शेर, भालू, चीता और कई तरह के
और भी जानवर थे। इनके सिवा एक बंदर मिट्ठू भी था। लड़कों के झुंड-के-झुंड रोज इन
जानवरों को देखने आया करते थे। मिट्ठू ही उन्हें सबसे अच्छा लगता। उन्हीं लड़कों
में गोपाल भी था। वह रोज आता और मिट्ठू के पास घंटों चुपचाप बैठा रहता। उसे शेर,
भालू, चीते आदि से कोई प्रेम न था। वह मिट्ठू
के लिए घर से चने, मटर, केले लाता और
खिलाता। मिट्ठू भी उससे इतना हिल गया था कि बगैर उसके खिलाए कुछ न खाता। इस तरह
दोनों में बड़ी दोस्ती हो गई।
एक दिन गोपाल ने सुना कि सर्कस कंपनी वहाँ से दूसरे शहर में जा रही
है। यह सुनकर उसे बड़ा रंज हुआ। वह रोता हुआ अपनी माँ के पास आया और बोला,
“अम्मा, मुझे एक अठन्नी दो, मैं जाकर मिट्ठू को खरीद लाऊँ। वह न जाने कहाँ चला जायेगा! फिर मैं उसे
कैसे देखूँगा ? वह भी मुझे न देखेगा तो रोयेगा।”
माँ ने समझाया, “बेटा, बंदर
किसी को प्यार नहीं करता। वह तो बड़ा शैतान होता है। यहाँ आकर सबको काटेगा,
मुफ्त में उलाहने सुनने पड़ेंगे।” लेकिन लड़के पर माँ के समझाने का
कोई असर न हुआ। वह रोने लगा। आखिर माँ ने मजबूर होकर उसे एक अठन्नी निकालकर दे दी।
अठन्नी पाकर गोपाल मारे खुशी के फूल उठा। उसने अठन्नी को मिट्टी से मलकर खूब
चमकाया, फिर मिट्ठू को खरीदने चला। लेकिन मिट्ठू वहाँ दिखाई
न दिया। गोपाल का दिल भर आया-मिट्ठू कहीं भाग तो नहीं गया ? मालिक
को अठन्नी दिखाकर गोपाल बोला, “क्यों साहब, मिट्ठू को मेरे हाथ बेचेंगे ?”
मालिक रोज उसे मिट्ठू से खेलते और खिलाते देखता था। हँसकर बोला,
“अबकी बार आऊँगा तो मिट्ठू को तुम्हें दे दूंगा।”
गोपाल निराश होकर चला आया और मिट्ठू को इधर-उधर ढूँढ़ने लगा। वह उसे
ढूंढ़ने में इतना मगन था कि उसे किसी बात की खबर न थी। उसे बिलकुल न मालूम हुआ कि
वह चीते के कठघरे के पास आ गया था। चीता भीतर चुपचाप लेटा था। गोपाल को कठघरे के
पास देखकर उसने पंजा बाहर निकाला और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा। गोपाल तो दूसरी
तरफ ताक रहा था। उसे क्या खबर थी कि चीते का पंजा उसके हाथ के पास पहुँच गया है!
करीब था कि चीता उसका हाथ पकड़कर खींच ले कि मिट्ठू न मालूम कहां से आकर उसके पंजे
पर कूद पड़ा और पंजे को दाँतों से काटने लगा। चीते ने दूसरा पंजा निकाला और उसे
ऐसा घायल कर दिया कि वह वहीं गिर पड़ा और जोर-जोर से चीखने लगा।
मिट्ठू की यह हालत देखकर गोपाल भी रोने लगा। दोनों का रोना सुनकर
लोग दौड़े, पर देखा कि मिट्ठू बेहोश पड़ा है और गोपाल रो रहा
है। मिट्ठू का घाव तुरंत धोया गया और मरहम लगाया गया। थोड़ी देर में उसे होश आ
गया। वह गोपाल की ओर प्यार की आँखों से देखने लगा, जैसे कह
रहा हो कि अब क्यों रोते हो? मैं तो अच्छा हो गया!
कई दिन मिट्ठू की मरहम-पट्टी होती रही और आखिर वह बिल्कुल अच्छा हो
गया। गोपाल अब रोज आता और उसे रोटियाँ खिलाता।
आखिर कंपनी के चलने का दिन आया। गोपाल बहुत रंजीदा था। वह मिट्ठू के
कठघरे के पास खड़ा आँसू-भरी आँखों से देख रहा था कि मालिक ने आकर कहा, “अगर तुम मिट्ठू को पा जाओ तो उसका क्या करोगे ?”
गोपाल ने कहा, “मैं उसे अपने साथ ले जाऊँगा,
उसके साथ-साथ खेलूँगा, उसे अपनी थाली में
खिलाऊँगा, और क्या!”
मालिक ने कहा, “अच्छी बात है, मैं बिना तुमसे अठन्नी लिए ही इसे तुम्हारे हाथ बेचता हूँ।” गोपाल को जैसे
कोई राज मिल गया। उसने मिट्ठू को गोद में उठा लिया, पर
मिट्ठू नीचे कूद पड़ा और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। दोनों खेलते-कूदते घर पहुँच
गये।
Dec 1, 2021
बाल कहानीः मिट्ठू
- मुंशी प्रेमचंद
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1 comment:
अच्छी कहानी
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