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Dec 1, 2021

अनकहीः प्रदूषण फैलाती गाड़ियाँ...

 

- डॉ.  रत्ना वर्मा

जाड़े का मौसम आते ही वायु- प्रदूषण को लेकर हो हल्ला शुरू हो जाता है। उद्योगों और गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ ठंड में प्रदूषण को दोगुना कर देता है। धरती पर बढ़ते प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया के पर्यावरणविद् कई दशकों से चिंताग्रस्त हैं और विकास के नाम पर हो रहे विनाश की ओर  लगातार ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। इस मौसम में यह प्रदूषण कई गुना बढ़ जाती है।  बढ़ती जनसंख्या के साथ बढ़ते वाहनों से होने वाले प्रदूषण ने महानगरों में साँस लेना दूभर कर दिया है।

सड़क परिवहन से होने वाले प्रदूषण को कम करने के अनेक उपायों के साथ-साथ पिछले कुछ समय से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चलन पर अधिक जोर दिया जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उपयोग से वायु- प्रदूषण को घटाने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर भी रोक लगाई जा सकती है। विभिन्न अध्ययनों में एक बात और सामने आई है कि अगर आरम्भिक तौर पर भारी गाड़ियों की बजाय सिर्फ़ छोटी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदल दिया जाए, तो लोगों की सेहत पर होने वाले खर्च में और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में लगभग दो गुनी कमी आ सकती है।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल अधिक से अधिक हो इस दिशा में भारत सरकार  ने भी अपने कदम बढ़ा दिए है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2030 तक 70 फीसदी कॉमर्शियल गाड़ियाँ, 40 प्रतिशत बस, और 80 प्रतिशत तक दो पहिया और तीन पहिया वाहन इलेक्ट्रिक हो चुके होंगे। इससे CO2 उत्सर्जन में लगभग 846 मिलियन टन की कमी आएगी। वहीं इन इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चलते लगभग 474 मिलियन टन तेल की बचत होगी।

फिर भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चलन को लेकर अहम सवाल यह उभरता है कि इन गाड़ियों को चार्जिंग के लिए बिजली की खपत जब बढ़ेगी, तब उसकी आपूर्ति किस प्रकार होगी? आम तौर पर लोगों में सबसे बड़ा सवाल बैटरी की लाइफ और सुरक्षा को लेकर होता है साथ ही यह भी कि क्या भारत की सड़कें इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चलने लायक है? और क्या पेट्रोल की तरह उतने ही चार्जिंग प्वाइंट उपलब्ध हो पाएँगे।

यद्यपि आज वाहन बनाने वाली बहुत सी निजी कम्पनियाँ अपने- अपने तरीके से बैटरी से चलने वाली गाड़ियों के फ़ायदों और उपयोग को लेकर विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम भी कर रही हैं, और कई गाड़ियाँ बाजार में आ चुकी हैं। जरूरत इनके ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार की है। ताकि लोग ज्यादा से ज़्यादा इसका इस्तेमाल करना आरंभ कर दें । उम्मीद की जानी चाहिए कि ये निजी कम्पनियाँ सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा ही नहीं देखेंगी, बल्कि देश-हित में प्रदूषण को कम करने की दिशा में भी काम करेंगी।

इस मामले में ब्रिटेन दुनिया का पहला देश होगा, जहाँ 10 साल बाद सिर्फ़ इलेक्ट्रिक कारें ही चलेंगी। वहाँ 2030 से पेट्रोल-डीजल वाली कारों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी जागी। पर्यावरण संरक्षण के तहत ब्रिटेन सरकार ने 10 सूत्रीय ‘ग्रीन इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन’ योजना लागू करने की घोषणा की है। 1.18 लाख करोड़ रुपये की इस योजना से ढाई लाख नई नौकरियाँ तो पैदा होंगी ही, साथ ही ब्रिटेन 2050 तक कार्बन उत्सर्जन से मुक्त भी हो जाएगा। योजना के अनुसार ब्रिटेन में 2025 तक सभी थर्मल पॉवर प्लांट भी बंद हो जाएँगे।

देखा जाए, तो  भारत में भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए बन रही योजनाएँ  भी बहुत अच्छी दिखाई दे रही हैं जैसे- दिल्ली सरकार की योजना हर तीन कि.मी. पर चार्जिंग स्टेशन बनाने और साथ ही साथ प्राइवेट चार्जिंग स्टेशन बनाने के लिए सब्सिडी देने की भी है। दिल्ली सरकार सब्सिडी के साथ-साथ सभी कैटेगरी में रोड टैक्स, रजिस्ट्रेशन फीस माफ जैसे फायदे देने पर भी विचार कर रही है। वहीं, ऊर्जा मंत्रालय ने 2023 तक चार्जिंग इन्फ्रा सेटअप योजना की घोषणा कर दी है।

तकनीकी तौर पर हम भले ही विकसित हो रहे हैं, लेकिन पर्यावरण को लेकर अब हमें संवेदनशीलता दिखानी होगी, ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी को एक प्रदूषण मुक्त वातावरण मिल सके। तेजी से बढ़ते वाहन प्रदूषण को देखते हुए जब दुनिया के दूसरे देश इलेक्ट्रिक वाहनों के चलन की ओर कदम बढ़ा रहे  हैं तो भारत को भी इस मामले में शीघ्रता से कदम बढ़ाना होगा ताकि हमारा देश भी प्रदूषण कम करने की दिशा में काम कर रहे देशों में अपना नाम अग्रणी रखे।

इस दिशा में पहले कदम के रूप में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक महत्त्वपूर्ण बात कही है कि अगले दो साल के अंदर एक इलेक्ट्रिक वाहन की लागत उतनी ही होगी जितनी कि आज पेट्रोल इंजन वाहन की है। वाहनों में इथेनॉल के इस्तेमाल को अन्य ईंधन की तुलना में लागत प्रभावी और प्रदूषण मुक्त विकल्प के रूप में उपयोग करने पर जोर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि आने वाले दिनों में फ्लेक्स-ईंधन इंजन अनिवार्य कर दिए जाएँगे। इस संदर्भ में  टोयोटो मोटर कॉरपोरेशन, सुजुकी और हुंदै मोटर इंडिया के शीर्ष अधिकारियों ने अपने वाहनों में फ्लेक्स-ईंधन इंजन पेश करने का आश्वासन भी दिया है। यह सब कितनी जल्दी हो पायेगा और इथेनॉल की आपूर्ति किस प्रकार हो पायेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन यदि ऐसा हो जाता है तो ईँधन से होने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में उठाया जाने वाला यह बहुत बड़ा कदम होगा।

परंतु यह भी सही है कि संसाधन मात्र या तकनीक बदल देने से समस्त वातावरण को शुद्ध नहीं किया जा सकता। इसके लिए प्रत्येक मनुष्य को अपनी जीवन- शैली में भी बदलाव लाना होगा। जब हम बढ़ते प्रदूषण की बात करते हैं तब सबसे ज़रूरी है कि हम अपने जीने का ढंग बदलें। जीवन को सहज सरल बना कर ही हम अपने वातावरण को जीने लायक बनाकर रख सकते हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या और उससे होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए,  बहुत नहीं तो इतना तो अवश्य कर सकते हैं कि जब तक बहुत ज़रूरी न हो, वाहनों का उपयोग न करें। बहुत अधिक दूरी तय न करना हो तो साइकिल का उपयोग करें। कार्यालय, स्कूल, कॉलेज, बाजार आदि दैनिक कार्य यदि आसपास हो तो बिना वाहन के जाने की आदत बनाए। ऐसा करके हम अपने वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के साथ अपनी सेहत को भी बेहतर बना सकते हैं।

तो आइए जाते हुए इस साल में हम सब मिलकर यह प्रार्थना करें कि अपने जीवन को थोड़ा सरल और सहज बनाएँगे, वातावरण शुद्ध रहे इस बात का ध्यान रखते हुए उतनी ही उपभोग की वस्तुओं का इस्तेमाल करेंगे, जितने की जरूरत है।

3 comments:

विजय जोशी said...

सही कहा आपने। प्रदूषण समाहित प्रगति विनाश का द्वार है। पर्यावरण की कीमत पर प्रगति विनाशकाले विपरीत बुद्धि की परिचायक है। पर कई बार मजबूरी ही नवीन सोच के साथ उभरती है, तो आशा करें कि हम कलियुग के कालिदास भी सुधरने का गंभीर प्रयास करेंगे। एक ज्वलंत विषय पर आलेख हेतु हार्दिक बधाई एवं साधुवाद। सादर

रत्ना वर्मा said...

शुक्रिया जोशी जी!🙏 बढ़ते प्रदूषण को लेकर यदि हम आज नहीं सुधरेंगे तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी इसलिए पहल तो करनी होगी...

Sudershan Ratnakar said...

सही कहा आपने। प्रगति के साथ प्रदूषण की समस्या भी गम्भीर रूप धारण कर रही है। पर्यावरण की शुद्धता के लिए प्रयास भी हमें ही करने होंगे। सुंदर विचार।