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Dec 1, 2021

प्रेरक- संयम और अनुशासन का अनूठा प्रयोग


1972
में विकासात्मक मनोवैज्ञानिक वॉल्टर मिशेल ने बिना किसी सोच-विचार या प्रेरणा के अचानक ही एक ऐसा अनूठा प्रयोग किया जो मनोविज्ञान के क्षेत्र में पिछली शताब्दी का सबसे प्रसिद्ध प्रयोग बन गया।

मिशेल ने पाँच से दस वर्ष की अवस्था के कई बच्चों को एक कमरे में एकत्र किया और उन सभी को एक-एक चॉकलेट दी। फिर उन्होंने उन बच्चों से कहा कि वे थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहे हैं लेकिन उनके वापस आने तक जो बच्चा चॉकलेट नहीं खाएगा उसे वे लौटकर दो चॉकलेटें और देंगे।

कमरे के बाहर जाने के बाद उन्होंने छुप कर उन बच्चों की हरकतों का जायजा लिया। वे यह जानना चाहते थे कि क्या वे बच्चे और अधिक बड़े पुरस्कार के लिए अपने लालच पर नियंत्रण रख सकेंगे या वे अपने लालच के वशीभूत होकर किसी व्यक्ति द्वारा निगरानी नहीं किए जाने पर अपनी चॉकलेट खा लेंगे?

मिशेल ने यह देखा कि उस समूह के लगभग एक तिहाई बच्चों ने उनके कमरे से बाहर जाते ही फौरन अपनी चॉकलेट खा ली। दूसरे एक तिहाई बच्चों ने कुछ समय तक मिशेल के वापस आने का इंतजार किया लेकिन वे अपने लालच पर नियंत्रण नहीं रख सके और उन्होंने भी अपनी चॉकलेट खा ली। बाकी बचे रह गए लगभग एक तिहाई बच्चों ने पूरे 15 मिनट तक मिशेल के लौटने की प्रतीक्षा की। निस्संदेह उन छोटे बच्चों के लिए तो ये 15 मिनट अनंतकाल जितने लंबे थे क्योंकि चॉकलेट उनके हाथ में थी या उनके सामने रखी हुई थी फिर भी वे उसे खाने के लोभ पर काबू कर पाए।

उस दौर में मनोवैज्ञानिकों का यह मानना था कि संकल्प शक्ति प्रत्येक व्यक्ति में जन्मजात होती है और इसमें जीवन भर कोई परिवर्तन नहीं होता। लेकिन इस मामले ने यह साबित कर दिया कि संकल्प शक्ति किसी परिस्थिति या परीक्षण का परिणाम भी हो सकती है। इस प्रयोग के द्वारा मिशेल बच्चों की उम्र और संकल्प शक्ति के बीच का संबंध भी जांचना चाहते थे। वे यह जानना चाहते थे कि क्या अधिक उम्र के बच्चे अपने लालच पर नियंत्रण अधिक कुशलता से रख सकते हैं?

एक प्रकार से यह प्रयोग विकासात्मक मनोविज्ञान का अध्ययन था। यह उनके व्यक्तित्व का आकलन नहीं था, लेकिन इस प्रयोग ने यह दर्शा दिया कि जो बच्चे उम्र में अपेक्षाकृत बड़े थे वे अधिक देर तक अपने लोभ पर नियंत्रण रखने में सफल हो सके। मिशेल की यह रिसर्च अनेक जर्नलों में प्रकाशित हुई लेकिन समय के साथ लोगों ने इसे भुला। दिया इस प्रयोग के बाद मिशेल और बच्चे भी अपनी-अपनी राह पर चले गए। चॉकलेट का यह प्रयोग सफल तो था लेकिन लोगों ने इसे एक अनूठे प्रयोग से अधिक कुछ नहीं समझा।

लेकिन इस प्रयोग के 20 साल बाद मिशेल के मन में एक नया विचार आया और उन्होंने इस प्रयोग को दोबारा नई दृष्टि से देखा। फिर उनके निष्कर्षों ने मनोवैज्ञानिक जगत को हिलाकर रख दिया।

असल में इस प्रयोग में शामिल एक बच्ची मिशेल की ही पुत्री थी जो उस दौरान 5 साल की थी। इस प्रयोग में शामिल बाकी दूसरे बच्चे भी उसके ही स्कूल में और कई तो उसकी ही क्लास में पढ़ते थे और उसके दोस्त थे।

जैसे-जैसे साल गुजरते गए मिशेल की पुत्री और उसके सभी दोस्त भी बड़े होते गए और मिशेल ने इस बात का अनुभव किया कि वे बच्चे जिन्होंने प्रयोग में अपने लोभ पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं दिखाया था, वे अपनी पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ रहे थे और उनके अंक बहुत कम आते थे। दूसरी और वे बच्चे जिन्होंने अत्यधिक संयम का प्रदर्शन किया था और जो लालच के फेर में नहीं पड़े थे वे हमेशा अपने शिक्षकों की आँख का तारा बने रहे। उन्होंने अपनी क्लास में हमेशा टॉप किया और उन्हें बहुत ही प्रसिद्ध कॉलेजों में एडमिशन मिला।

जब मिशेल ने यह देखा तो उन्होंने और अधिक गहराई से उन बच्चों की ट्रैकिंग करने का निश्चित किया और यह देखने का प्रयास किया कि वे सभी बच्चे किस प्रकार के वयस्क व्यक्तियों के रूप में पनपे। मिशेल ने जो फॉलो-अप किया उसके परिणाम इतने चमत्कारिक थे कि उनका प्रयोग अभी भी एक प्रकार से जारी है और अत्यधिक प्रसिद्ध हो चुका है।

अपने लालच पर नियंत्रण करके संयम प्रदर्शित करने की उन बच्चों की क्षमता ने उन्हें आगे जाकर अकादमिक शिक्षा में अव्वल बनाया और वे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में सफल रहे। उन्हें सबसे अच्छी नौकरियाँ मिली। समाज में भी उनकी प्रतिष्ठा स्थापित हुई।

इस बीच दूसरे मनोवैज्ञानिकों ने भी इससे मिलते-जुलते प्रयोग किए और उन्होंने अपनी रिसर्च में यह पाया कि जो व्यक्ति अपने लालच पर नियंत्रण करके संयम धारण करते हैं वे दूसरों से औसतन अधिक स्वस्थ होते हैं और अकादमिक रूप से अधिक सफल होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन का आर्थिक पक्ष प्रबल होता है और सबसे अच्छी बात तो यह है कि वे जीवन के हर पैमाने पर खरे उतरते हैं। उनकी रिलेशनशिप्स अधिक स्थाई होते हैं और ऐसे व्यक्तियों को हताशा और निराशा का कम सामना करना पड़ता है।

इस प्रयोग ने यह भी दर्शाया कि मनोवैज्ञानिक लगभग एक शताब्दी तक व्यर्थ के मसलों में उलझे रहे। वास्तव में IQ की अवधारणा की उत्पत्ति ही इस उद्देश्य से हुई थी लेकिन उसमें घोर असफलता मिली और बुद्धि को जाँचने के लिए तैयार किए गए अन्य प्रयोग और उपाय भी दोषपूर्ण सिद्ध हुए। मिशेल इस मामले में बहुत सौभाग्यशाली रहे कि उनके हाथ अनायास ही एक कुंजी लग गई।

हमारी पीढ़ियाँ क्रमिक रूप से आत्मसम्मान को आत्मानुशासन पर वरीयता देती आई हैं। मुझे यह लगता है कि हम इस नीति की बड़ी कीमत चुका रहे हैं।

हम उस दौर में हैं जहाँ संकल्पशक्ति को समाज में अधिक महत्तवपूर्ण नहीं समझा जाता। आप अपने आसपास उन लोगों को देखिए जिनका वजन खतरनाक स्थिति तक पहुँच चुका है और ऐसा होने का बहुत बड़ा कारण यह है कि उनका स्वयं पर नियंत्रण नहीं है। हम लोगों का फोकस दिनोंदिन कम होता जा रहा है। हम किसी भी एक चीज पर ध्यान अधिक देर तक नहीं दे पाते। लोग स्वयं को विश्व का केंद्र मानने लगे हैं। उनमें नारसीसिज़्म, एंजाइटी, और डिप्रेशन जैसे मनोविकार पहले से कहीं अधिक देखे जा रहे हैं।

किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे मूल्यवान स्किल वे हैं जो आत्मानुशासन और स्वयं को स्वस्थ रखने से जुड़ी आदतों को विकसित करते हैं। यदि आप दूसरों से अधिक स्वस्थ होना चाहते हैं, अधिक सफल होना चाहते हैं, या अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण करना चाहते हैं तो केवल आत्मानुशासन ही इस मामले में आपकी सहायता कर सकता है।

स्वयं पर कठोर नियंत्रण और किसी भी प्रलोभन के आगे नहीं झुकना ही सबसे अच्छी नीति है। आलस के मारे पाँच मिनट अधिक सो लेने या स्वाद के वशीभूत होकर थोड़ी अधिक मिठाई खा लेने जैसे प्रलोभन बहुत छोटे उदाहरण हैं लेकिन जीवन पर व्यापक प्रभाव डालते हैं। (हिन्दी ज़ेन से)

3 comments:

सहज साहित्य said...

उत्तम लेख

Anima Das said...

अति प्रेरणात्मक लेख... 🌹🙏

http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

बढ़िया लेख