-संतोष शर्मा
स्कूल के शौचालय
में जाने के बाद 10वीं कक्षा की छात्रा शम्पा कुंडू दौड़ती हुई क्लास रूम में लौटी
और भूत-भूत कहती हुई बेहोश होकर फर्श पर गिर गई। शम्पा की ऐसी डरी हुई हरकत देख
क्लास की अन्य छात्राएँ भी डर गर्इं। यह बात तुरंत क्लास टीचर को बताई गई। टीचर
क्लास रूम में पहुँचा। एक छात्रा ने शम्पा के चेहरे पर पानी के छींटे मारे और पंखे
से हवा दी। कुछ देर बाद शम्पा होश में आई और खामोश बड़ी-बड़ी आँखें कर देखने लगी।
टीचर
ने पूछा,
“शम्पा तुम यूँ भूत-भूत क्यों चीख रही थी?”
एक
बोतल से दो घूँट पानी पीने के बाद डरी-सहमी सी शम्पा ने धीमी आवाज में कहा, “स्कूल
के शौचालय में भूत है! एक लड़के का भूत है। मैंने अपनी आँखों से भूत देखा। वो मुझे
घूर रहा था!”
“देखो, भूत-प्रेत कुछ नहीं होता। तुम्हें वहम हुआ
होगा। शायद तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। तुम अभी घर जाकर आराम करो।” टीचर ने शम्पा को घर भेज दिया।
शम्पा
को स्कूल से जल्दी घर लौटते देख माँ ने पूछा, “स्कूल की इतनी जल्दी छुट्टी हो
गई?” जवाब दिए बिना ही शम्पा अपने कमरे में चली गई। काफी देर
बाद भी वह कमरे से बाहर नहीं निकली, तो माँ उसके कमरे में
गई। देखा शम्पा बिस्तर पर लेटी हुई थी।
बेटी
के सिर पर प्यार भरे हाथ रखकर माँ ने पूछा, “क्या हुआ, तू इतनी थकी हुई क्यों लग रही है? तेरी तबियत अचानक
बिगड़ी हुई क्यों लग रही है? स्कूल में कुछ गड़बड़ी हुई है क्या?”
इतने
सारे सवालों का उत्तर देने के बजाय शम्पा माँ से लिपट कर रोने लगी। यह देख माँ ने
पूछा, “अरे क्या हुआ, तू रो क्यों रही है?” आँखों के आँसू पोंछते हुए शम्पा ने कहा, “मैंने
स्कूल के शौचालय में एक लड़के का भूत देखा। वो मुझे घूर रहा था और अपनी ओर बुला रहा
था। मैं डर गई, मुझे अब भी डर लग रहा है।”
यह
सुनकर माँ बहुत घबरा गई। माँ ने कहा, “डरने की बात नहीं है बेटी। चल,
तुझे ओझा के पास ले जाती हूँ। वह झाड़-फूँक कर देगा।”
माँ
बेटी को इलाज के लिए अस्पताल या किसी डॉक्टर पास ले जाने की बजाय वासुदेवपुर गाँव
में रहने वाले ओझा दंपती शीतल बाग और शिखा बाग के घर पर ले गई। ओझा दंपति ने शम्पा
की कुछ देर तक झाड़-फूँक की। इसके बाद शीतल ओझा ने कहा, “मुझे
पहले से ही जिस बात का डर था वही हुआ। तुम्हारी किस्मत अच्छी थी। नहीं तो वह आज
तुम्हारी जान ज़रूर ले लेता।”
घबराई
हुई शम्पा की माँ ने पूछा,
“कौन मेरी बेटी की जान ले लेता? आपको किस बात
का डर था?”
“संजय सांतरा की अतृप्त आत्मा स्कूल में भटक रही है”, ओझा ने कहा, “संजय एक होनहार छात्र था। न जाने क्यों
उसने आत्महत्या कर ली। उसका स्कूल से बहुत लगाव था। मरने के बाद भी उसकी आत्मा को
मुक्ति नहीं मिली। नतीजा, संजय की अतृप्त आत्मा स्कूल में आज
भी भटक रही है।”
शीतल
ने आगे और कहा,
“अरूप मंडल नामक एक अन्य युवक की हादसे में मौत हो गई थी। संजय और
अरूप इन दोनों की अतृप्त आत्माएँ स्कूल में अब भी भटक रही हैं। इन दोनों के अलावा
भी और कई अतृप्त आत्माएँ भूत के रूप में स्कूल के आसपास, शौचालय
आदि में दिखती हैं। ये भटकती आत्माएँ स्कूल की किसी न किसी छात्रा को अपने वश में
लाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। और यही हुआ है। एक अतृप्त आत्मा ने शम्पा को काबू
कर लिया था। किन्तु किस्मत अच्छी थी कि वह तुम्हें क्षति नहीं पहुँचा पाया।”
ओझा
ने कहा, “मैंने शम्पा पर सवार भूत को भगा दिया है; लेकिन
चिंता तो स्कूल के अन्य छात्रों को लेकर हो रही है, क्योंकि
ये अतृप्त आत्माएँ आज नहीं तो कल किसी-न-किसी को अपना शिकार ज़रूर बनाएँगी।”
शम्पा
की माँ ने पूछा,
“क्या इससे मुक्ति का कोई उपाय नहीं है?”
शिखा
ओझा ने कहा,
“ऐसी आत्माओं से मुक्त करने के लिए मैंने स्कूल में तंत्र-मंत्र व
झाड़-फूँक करने की बात कही थी ; लेकिन किसी ने मेरी एक नहीं
सुनी और आज इसका खामियाजा स्कूली छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है।”
“मुझे डर है कि ये आत्माएँ किसी की जान न ले लें!” यह
कहते हुए ओझा ने माथे का पसीना पोंछा।
शम्पा
की बार्इं बाँह पर लाल धागे में पिरोकर एक तावीज बाँधते हुए शिखा ओझा ने कहा, “यह
तावीज अपने से दूर नहीं करना। भूत तुम्हारा अब कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा।”
शम्पा
को कुछ जड़ी बूटियाँ दीं और ओझा दंपती ने सुझाव दिया, “इसे गंगा जल के साथ
पीसकर पी लेना। तू ठीक हो जाएगी।”
दूसरे
दिन शम्पा स्कूल गई तो क्लास की सहपाठी पूछने लगी, “शम्पा, कल तुम्हें क्या हुआ था? तुम्हारी तबियत अभी ठीक है
न?”
इस
पर शम्पा ने बाग ओझा दंपती के यहाँ जाने की बात बताई और कहा, “स्कूल
के शौचालय में भूतों का डेरा बना हुआ है। स्कूल में एक नहीं, कई अतृप्त आत्माएँ मँडरा रही हैं। ये भूत हमें शिकार बनाना चाहते हैं। एक
भूत मुझ पर सवार हो गया था। ओझा ने झाड़-फूँक कर उसे भगा दिया।”
कुछ
ही देर में यह बात पूरे स्कूल में लगभग सभी छात्र-छात्राओं के कानों में पहुँच गई
कि स्कूल के शौचालय में भूत है!
इसके
बाद तो स्कूल में शौचालय जाने वाली छात्राएँ एक के बाद एक अजीबो-गरीब हरकत करने
लगी, भूत-भूत कहकर छात्राएँ बेहोश होने लगीं। देखते ही देखते लगभग दो दर्जन
छात्राओं की तबियत काफी बिगड़ गई। स्कूल में अफरा-तफरी फैल गई। शौचालय में भूत होने
की अफवाह स्कूल के आसपास के इलाकों में भी जंगल की आग की तरह फैल गई। छात्राओं के
परिजन भागते हुए स्कूल पहुँचने लगे। इलाज के लिए कई छात्राओं को स्थानीय अस्पताल
में भर्ती भी करवाना पड़ा।
यह
भुतही घटना पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा ज़िले के कोतुलपुर थाना अंतर्गत मिर्ज़ापुर
हाईस्कूल की है। स्कूल के कार्यवाहक प्रधान शिक्षक महानंद कुंडू ने कहा, “शौचालय
से लौटने के बाद कई छात्राओं की तबियत अचानक बिगड़ गई। दस-बारह छात्राएँ बेहोश भी
हो गर्इं। किसी के सीने में तो किसी के सिर में दर्द की भी शिकायत थी।”
घटना की सूचना मिलने पर कोतुलपुर ग्रामीण अस्पताल से एक मेडिकल टीम स्कूल पहुँची। कोतुलपुर ब्लॉक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक पलाश दास और मनोरोग विशेषज्ञ पृथा मुखोपाध्याय भी स्कूल पर पहुँचे। भुतही अफवाह के चलते अस्वस्थ हुई छात्राओं का प्राथमिक उपचार किया गया जबकि चिंताजनक हालत में कई छात्राओं को इलाज के लिए कोतुलपुर ग्रामीण अस्पताल में भर्ती कराया गया।
मनोरोग
विशेषज्ञ पृथा मुखोपाध्याय ने कहा, “ज़्यादातर छात्राएँ खाली पेट या
थोड़ा-सा कुछ खाकर स्कूल आती हैं, जिसके कारण वे शारीरिक रूप
से कमजोर होती हैं। ऐसी ही छात्राएँ भूत की अफवाह के कारण मानसिक रूप से अस्वस्थ
हुर्इं।
इस
स्कूल में छात्र-संख्या लगभग 800 है। अधिकतर छात्र-छात्राएँ स्कूल के आसपास
रायबागिनी,
झोड़ा मुराहाट, हजारपुकुर, जलजला, हरिहरचाका, हेयाबनी
गाँवों के गरीब परिवारों से हैं। ज़्यादातर अपने घरों से सुबह चूड़ा व मूड़ी खाकर आते
हैं और दोपहर को मध्याह्न भोजन योजना में मिलने वाले भोजन से किसी तरह से पेट भरा
करते हैं। स्कूल में ऐसी कई छात्राएँ हैं, जो शारीरिक रूप से
अस्वस्थ भी हैं, जिनका विभिन्न अस्पतालों में नियमित रूप से
इलाज भी चल रहा है।
मिर्ज़ापुर
हाईस्कूल के शौचालय में भूत की अफवाह के चलते इलाके में भुतहा आतंक सामूहिक
हिस्टीरिया की तरह फैल गया। अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया।
स्कूल में पढ़ाई-लिखाई खटाई में पड़ गई। शाम ढलने के बाद स्कूल से अजीबो-गरीब डरावनी
आवाज़ आने की भी बात सुनाई पड़ने लगी।
आसपास
गाँव में रहने वाले लोग कहने लगे, “जब ओझा ने पहले ही कहा था कि स्कूल में भूत
है, अतृप्त आत्माएँ भटक रही हैं, तब
स्कूल में तंत्र-मंत्र या झाड़-फूँक करने में क्या दिक्कत है। अगर वक्त रहते अतृप्त
आत्माओं को स्कूल से मुक्त नहीं किया गया तो बड़ी आफत आने का डर है।”
भूत
की अफवाह से उत्पन्न हालात से स्कूल प्रशासन चिंता में पड़ गया। इस समस्या से शीघ्र
स्कूल को मुक्त करने के लिए स्कूल के कार्यवाहक प्रधान शिक्षक महानंद कुंडू और
स्थानीय प्रशासन ने शिक्षकों और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ आपात बैठक की। बैठक
में काफी विचार-विमर्श के बाद फैसला लिया गया कि स्कूल में पैदा हुई भुतही समस्या
के समाधान के लिए भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ताओं को स्कूल में
बुलाया जाए। तब स्कूल की ओर से युक्तिवादी समिति के अध्यक्ष प्रबीर घोष से संपर्क
किया गया। एक पत्रकार के रूप में मैंने प्रबीर जी से संपर्क किया और उन्हें स्कूल
में फैली भुतही अफवाह के समाधान को लेकर विस्तार से बात की। प्रबीर जी ने कहा, “युक्तिवादी
समिति की बांकुड़ा जिला शाखा के रामकृष्ण चंद्र समेत कई कार्यकर्ताओं को मिर्ज़ापुर
हाईस्कूल का दौरा करने का निर्देश दिया गया है।”
बांकुड़ा
से युक्तिवादी समिति की ओर से एक टीम हाईस्कूल पहुँची। टीम में शामिल कार्यकर्ताओं
ने स्कूल के शौचालय समेत पूरे स्कूल का निरीक्षण किया। साथ ही भूत देखने वाली
छात्राओं,
उनके अभिभावकों, स्कूल के शिक्षकों और आसपास
गाँव के लोगों से बातें की। इसके बाद समिति की ओर से स्कूल परिसर में एक मंच बनाकर
अंधविश्वास विरोधी “अलौकिक नहीं, लौकिक” कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम
में स्कूल के शिक्षक,
कोतुलपुर थाना प्रभारी, कोतुलपुर के बीडीओ
गौतम बाग, मिर्ज़ापुर ग्राम पंचायत की प्रधान नमिता पाल और
सर्व शिक्षा मिशन के अधिकारी, स्कूली छात्र-छात्राएँ और
आसपास के गांवों के अनेक लोग भी उपस्थित हुए।
कार्यक्रम
मंच पर एक टेबल पर दूध से भरा हुआ काँच का एक गिलास और एक इंसानी खोपड़ी रखते हुए
एक तर्कवादी कार्यकर्ता ने कहा, “हमें सुनने को मिला है कि यह स्कूल भूतों
का डेरा बन गया है। यदि यहाँ वाकई में भूत है तो हम किसी एक भूत को इस मंच पर
बुलाकर उसे दूध पिलाएँगे।” अपने बाएँ हाथ में इंसानी खोपड़ी
को लेकर कुछ देर तक तंत्र-मंत्रनुमा कोई मंत्र पढ़ा। इसके बाद दूध से भरा हुआ गिलास
खोपड़ी के सामने लाया गया। आश्चर्य! गिलास का दूध धीरे-धीरे कम होता गया। देखने से
ऐसा लगा कि खोपड़ी में घुसे भूत ने दूध पी लिया हो!
इसके
बाद एक कार्यकर्ता ने कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा टेबल पर रखा। उसे माचिस की एक तीली
से जला दिया। फिर जलते हुए टुकड़े को अपनी हथेली पर रख लिया। इसके बाद उसे अपनी जीभ
पर रखा और आग को खा गया। एक कार्यकर्ता ने मुँह से एक घड़ा उठाकर दिखाया। इसी क्रम
में बिना माचिस के ही एक यज्ञ कुंड में आग लगा कर दिखाई गई।
एक
के बाद एक ‘चमत्कारी’ कारनामे देख उपस्थित छात्र-छात्राएँ और
लोग तालियाँ बजाने लगे। दर्शकों से पूछा गया, “आप में से कोई
यह बता सकता है कि गिलास का दूध कौन पी गया?” भीड़ में बैठे
एक छात्र ने कहा, “शौचालय में छिपा हुआ भूत आकर दूध पी गया!”
एक
छात्रा ने कहा,
“शायद आप लोग कोई जादूगर हो। आप लोगों के पास तंत्र-मंत्र या
भूत-प्रेत की शक्ति है।”
इस
पर चंद्र ने कहा,
“हम तर्कवादी हैं। हम तो चमत्कारी शक्ति का दावा करने वालों की पोल
खोला करते हैं। हमने ये कारनामे सिर्फ जादुई तरकीब से दिखाए हैं। हमारे पास कोई
तंत्र-मंत्र या भूत-प्रेत की शक्ति नहीं हैं। भूत-प्रेत सिर्फ, और सिर्फ, कल्पना और अंधविश्वास हैं।”
कार्यक्रम
देख रही एक छात्रा ने कहा,
“स्कूल के शौचालय में भूत है। शौचालय में उस भूत को देखकर सबसे पहले
शम्पा और फिर कई छात्राएँ अस्वस्थ हो गई थीं। गाँव के ओझा दंपती ने भी स्कूल में
भूत होने की बात कही है।”
इस
पर स्कूल के शौचालय में भूत देखने वाली छात्रा शम्पा को कार्यक्रम के मंच पर
बुलाकर तर्कवादियों ने पूछा, “आपने अपनी आँखों से भूत देखा था? क्या आपको लगता है कि वाकई में भूत-प्रेत होते हैं?”
छात्रा
ने कहा, “हाँ, मैंने अपनी आँखों से भूत को देखा था।”
“तब तो उस भूत की स्मार्ट फोन से फोटो खींची जा सकती है?”
यह
सुन वह इधर-उधर देखने लगी और अन्य छात्राएँ मुस्कराने लगीं। तर्कवादी ने समझाया, “धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार आत्मा का अर्थ चिन्ता, चेतना, चैतन्य या मन है। आज आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि मस्तिष्क की
स्नायु कोशिकाओं की क्रिया-प्रतिक्रिया का फल ही मन या चिंता है। मस्तिष्क की
कोशिकाओं के बिना चिंता, मन या आत्मा का अस्तित्व असंभव है।”
“शरीर की मौत के साथ ही मस्तिष्क की कोशिकाओं का भी अंत हो जाता है। ऐसे
में इन कोशिकाओं की क्रिया-प्रतिक्रिया भी बंद हो जाती है। यानी मन रूपी आत्मा की
भी मृत्यु हो जाती है। कुल मिलाकर शरीर की तरह आत्मा नष्ट हो जाती है। इसलिए
अतृप्त आत्माओं या भूतप्रेत का वजूद ही नहीं होता है।”
एक
छात्रा ने पूछा,
“यदि भूत-प्रेत नहीं है, तो शम्पा या अन्य
छात्राओं को भूत क्यों दिखाई दिया?”
जवाब
में तर्कवादी ने कहा,
“हमारी दादी-नानी हमें बचपन में भूत-प्रेत की कहानियाँ सुनाया करती
हैं। ये कहानियाँ हमारे बचपन के कच्चे मन-मस्तिष्क में इस कदर बैठ जाती हैं कि जब
हम पढ़-लिख कर बड़े हो जाते हैं, तो भी बचपन में सुनी हुर्इं
भूत-प्रेत की काल्पनिक कहानियाँ सच लगने लगती हैं। इसके अलावा, आजकल विभिन्न टीवी चैनलों पर भूत-प्रेत पर आधारित धारावाहिकों का प्रसारण
किया जाता है। इन धारावाहिकों का बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अंधविश्वासपूर्ण प्रभाव
पड़ता है।”
चंद्र
ने कहा, “भूत-प्रेत पर विश्वास करने के कारण शम्पा जब शौचालय में गई, तो उसे भूत जैसी किसी चीज का भ्रम हुआ। भ्रम के कारण उसे भूत जैसा कुछ
दिखाई दिया होगा; लेकिन जब उसे ओझा के पास ले जाया गया, तो ओझा ने भूत होने का दावा किया और इलाज के नाम पर झाड़-फूँक की। ओझा के
कहने पर शम्पा ने जब स्कूल के शौचालय में भूत होने की बात कही, तो वह अफवाह की तरह अन्य छात्राओं में फैल गई। इसके बाद से जब भी कोई
छात्रा शौचालय से लौटती है, तो वह भूत-भूत कहकर बेहोश हो
जाती है। नतीजा, स्कूल में भूत होने की अफवाह सामूहिक
हिस्टीरिया की तरह फैल गई हिस्टीरिया का काउंसलिंग द्वारा इलाज संभव है। भूत-प्रेत
देखना सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव या इंद्रिय जनित भ्रम के अलावा कुछ नहीं है। जब हमारी
इंद्रियाँ भ्रम की अवस्था में होती है, तब ऐसी घटनाएँ
व्यक्ति महसूस करता है। भूत शौचालय में नहीं, बल्कि मन में
अंधविशावास के रूप में बसा हुआ है।”
तर्कवादी
ने आगे कहा,
“स्कूल में भूत की अफवाह के कारण अस्वस्थ हुई अधिकतर छात्राएँ
ग्रामीण इलाकों की हैं। ये छात्राएँ ज़्यादातर गरीब, किसान
परिवार से हैं। कुछ लड़कियाँ शारीरिक कमज़ोरी, कुपोषण की शिकार
भी होती हैं। उनमें स्वास्थ्य आदि की जागरूकता की भी कमी होती है। ये लोग
भूत-प्रेत, झाड़-फूँक, ओझा आदि पर
विश्वास करते हैं। ऐसी स्थिति में जब कोई लड़की ऐसी कोई हरकत करती है, जिसका वैज्ञानिक कारण पता नहीं होने के कारण उनके माता-पिता उन्हें इलाज
के लिए ओझा के पास ले जाते हैं। मानसिक तनाव, दिमागी दबाव
आदि कारणों से लोग अकसर मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जिन्हें वे भूत-प्रेत अथवा जादू-टोने का असर समझ बैठते हैं। मनोरोग को
भूत-प्रेत का साया मानकर झाड़-फूँक के चक्कर में पड़ जाते हैं। मनोरोग भी अन्य
बीमारियों की तरह ही होता है, जिसका उचित काउंसलिंग और दवा
के ज़रिए आसानी से इलाज किया जा सकता है।”
युक्तिवादी
समिति के कार्यकर्ताओं ने कहा, “अब यदि कोई दावा करता है कि स्कूल में भूत
है, तो भूत दिखाने वालों को 50 लाख रुपये की चुनौती देता
हूँ।”
अंधविश्वास
से मुक्त होने के लिए वैज्ञानिक सोच को अपनाने की सलाह देते हुए तर्कवादी
कार्यकताओं ने कहा,
“किसी भी बीमारी का इलाज सरकारी अस्पताल में, डॉक्टर
के हाथों करवाना चाहिए। यदि किसी पर भूत बाधा होने जैसी समस्या हो तो ओझा के हाथों
झाड़-फूँक करवाने की बजाय उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाएँ। मनोचिकित्सा से आप पूर्ण
रूप से स्वस्थ हो जाएँगे।” आगे यह भी बताया गया, “भारतीय कानून में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तावीज, कवच, ग्रह रत्न, तंत्र-मंत्र,
झाड़-फूँक, चमत्कार, दैवी
औषधि आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का दावा तक करना
जुर्म है। तंत्र-मंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने
वाले ओझा, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल
की हवा तक खिलाई जा सकती है। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940
के तहत किसी भी बीमारी से छुटकारा दिलवाने के नाम पर दिए जाने वाले तावीज, कवच, झाड़-फूँक, मंत्र युक्त जल,
तंत्र-मंत्र आदि को औषधि के रूप में स्वीकार होगा। बिना लाइसेंस के
तावीज, कवच इत्यादि द्वारा बीमारी से छुटकारा नहीं मिलने पर
या मरीज़ की मृत्यु होने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के तहत दोषी को सज़ा
होगी। इस कानून का उल्लंघन करने वाले को 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास और 10 लाख
रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा, ड्रग्स एंड
मैजिक रेमेडीज़ (आबजक्शनेबल एडवर्टाइज़मेंट) एक्ट, 1954 के तहत
तंत्र-मंत्र, गंडे, तावीज आदि तरीकों
से चमत्कारिक रूप से बीमारियों के उपचार या निदान आदि दण्डनीय अपराध हैं।”
अंधविश्वास
विरोधी कार्यक्रम देखने के बाद छात्राओं ने कहा, “ओझा दंपती के कहने पर
हमारे में मन में भूत-प्रेत को लेकर जो डर पैदा हुआ था वह दूर हो गया है। अब आगे
यदि ऐसी भुतही घटना होती है तो हम उस पर ध्यान ही नहीं देंगे। यदि कोई छात्र या
छात्रा भूत के नाम पर अस्वस्थ हो जाता है तो उसे इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले
जाएँगे। भूत-प्रेत के नाम पर किसी भी अफवाह पर अब ध्यान नहीं देंगे।”
बीडीओ
गौतम बाग ने कहा,
“विज्ञान के इस युग में आज जहाँ लड़कियाँ भी चाँद पर पहुँच रही हैं,
शर्म की बात यह है कि ऐसी स्थिति में एक स्कूल में भुतही अफवाह को
दूर करने के लिए अंधविश्वास विरोधी कार्यक्रम भी करना पड़ रहा है। आप सभी को
भूत-प्रेत जैसी किसी भी अफवाह पर कान नहीं देना चाहिए। यदि ऐसी अफवाह फैलती है तो
उसके पीछे तर्कपूर्ण कारण का पता लगाना होगा आप लोगों को। तभी जाकर समस्या का
समाधान करना संभव होगा।”
प्रधान
शिक्षक महानंद कुंडू ने कहा, “युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ताओं ने स्कूल
में कार्यक्रम कर छात्राओं के मन से भूत का डर दूर किया है, इसके
लिए उन्हें धन्यवाद देना चाहूँगा।”
बता दें, तर्कवादी कार्यकर्ताओं ने स्कूल पहुँचने से पहले जब ओझा बाग दंपती से मुलाकात की थी तो ओझा ने बल देते हुए कहा था कि उसने ही छात्रा पर से भूत भगाने के लिए झाड़-फूँक की। स्कूल में भुतही अफवाह फैलाने के पीछे ओझा का धँधा जुड़ा हुआ था। ओझा चाहता था कि स्कूल में यदि भूत की अफवाह के कारण छात्र अस्वस्थ हो जाते हैं,
तो उन्हें इलाज के लिए उसके पास ले जाया जाएगा। उन्हें झाड़-फूँक करने और ताबीज़-कवच देने के बदले में उनके परिजनों से पैसा भी लूटा जाएगा। लेकिन युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ताओं ने स्कूल परिसर में अंधविश्वास विरोधी कार्यक्रम कर ओझा दंपती की सारी पोल खोल कर रख दी।युक्तिवादी
समिति की ओर से प्रधान शिक्षक महानंद कुंडू को सुझाव दिया गया, “ऐसी
डरावनी अफवाह फैलाने वाले ओझा और अन्य लोगों के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करें।”
तर्कवादियों
के सुझाव के बाद स्कूल प्रबंधन ने जिला प्रशासन को ओझा द्वारा फैलाई गई भूत की
अफवाह के बारे में अवगत कराया गया और कोतुलपुर थाने में ओझा शिखा बाग और शीतल बाग
के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज की गई। पुलिस ने आरोपी ओझा दंपती को उनके घर से
गिरफ्तार कर लिया। उन्हें विष्णुपुर महकमा अदालत में पेश किया गया। न्यायाधीश ने
उन्हें हिरासत में भेजने का निर्देश दे दिया। अभियुक्त ओझा दंपती के खिलाफ धारा
420 के तहत धोखाधड़ी और ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (आबजेक्शनेबल एडवर्टाइज़मेंट) एक्ट, 1954
की धारा 7 के तहत मामला दायर किया गया। पुलिस को जाँच में पता चला कि स्कूल में
भूत होने की अफवाह फैलाने के पीछे ओझा बाग दम्पती ही मुख्य आरोप है।
प्रधान शिक्षक महानंद
कुंडू ने बताया, “स्कूल के शौचालय में भूत की अफवाह फैलाने
वाले ओझा दंपती की गिरफ्तारी के बाद स्कूल में शिक्षण कार्य सामान्य हो गया है।
भूत के डर से मुक्त होकर छात्र-छात्राओं का स्कूल में आना भी शुरू हो गया है।”(स्रोत फीचर्स)
No comments:
Post a Comment