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Sep 3, 2021

आलेख- समाधान में समस्या तलाशते लोग


-डॉ. महेश परिमल

हम सब कोरोना काल के भीषण दौर से गुजरकर अब कुछ राहत की सांस ले रहे हैं। इस दौरान हम सबने मौत को अपने बेहद करीब से गुजरते देखा। बहुत से अपनों को खोया। मौत एक कड़वी सच्चाई है, इसके बाद भी हमने तमाम मौतों के लिए कहीं अव्यवस्था, कहीं डॉक्टर्स, कहीं नर्स तो कहीं वार्ड ब्वाय को दोषी माना। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग इसी जुगत में लगा रहा कि कहाँ-किसने लापरवाही की। कहाँ सरकार चूक गई, तो कहाँ व्यवस्था मात खा गई। इसके लिए हर किसी के पास शिकायत थी, तो सुझाव भी थे। सुझाव भले ही तर्कसंगत न हों, पर अपनी शिकायत को हर कोई वाजिब बता रहा है। कई लोगों को हर बात पर शिकायत होती है, काम चाहे अच्छा हो या बुरा। वास्तव में उनका काम समाधान में समस्या तलाशना होता है। समस्या के समाधान की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता। ऐसे में हम शिकायतमुक्त समाज की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

 

सच के कई चेहरे हमारे आसपास बिखरे होते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते; क्योंकि इस सच के सामने झूठ हमेशा अपने चमकदार व्यक्तित्व के कारण सच पर हावी होता है। इसलिए हम सच को सदैव अनदेखा ही करते रहते हैं। हमें हर बात पर कुछ न कुछ शिकायत होती ही है। आजकल लोग परस्पर बातचीत भी करते हैं, तो उनका लहजा शिकायती ही होता है। शिकायत करने वाले वे लोग होते हैं, जो सच को स्वीकार नहीं करते। जिन्हें सच स्वीकार्य नहीं, उन्हें जिंदगी भी स्वीकार्य नहीं होती। ऐसे लोग हमेशा असंतुष्ट रहते हैं, साथ ही एक नकारात्मक विचार पूरे समाज में फैलाते रहते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। ऐसे लोग कभी भी किसी भी सच को मानने के लिए तैयार ही नहीं होते।

 

लोगों को सदैव आज से शिकायत रहती है। मौसम, महँगाई, देश की राजनीति आदि पर लोग खूब बोलते हैं। धूप तेज हैं, बारिश बहुत हो रही है, बारिश ही नहीं हो रही है, महँगाई बढ़ गई है। यहाँ तक कि शहर में प्रदूषण बढ़ गया है। इस पर भी वे धाराप्रवाह अपनी बात रखते हैं। सारी बातों का सार एक ही होता है कि उन्हें शिकायत है। वे सच को स्वीकार नहीं करना चाहते। हमारे सामने जीवन के सदैव दो पहलू होते हैं। अच्छा भी बुरा भी। यदि हमारी सोच सकारात्मक है, तो हमें जो भी मौसम है, वह सुहाना ही लगेगा। तेज गर्मी है, तो हम यह सोचेंगे कि बहुत ही जल्द मौसम बदलेगा और बारिश की बूँदें हमारा स्वागत करने को आतुर होंगी। महँगाई बढ़ रही है, तो इसका आशय यह भी है कि देश तेजी से प्रगति कर रहा है। देश विकासशील से विकसित बन रहा है। पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही हैं, तो लोग भारत की तुलना पाकिस्तान से करते हैं, जहाँ पेट्रोल सस्ता है। पर भारत की तुलना ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश से नहीं करते, जहाँ पेट्रोल भारत से भी महँगा है। सस्ता पेट्रोल बेचने वाले पाकिस्तान की हालत किसी से छिपी नहीं है। वहीं ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल महँगा है, किंतु वहाँ आम लोगों के लिए काफी सुविधाएँ हैं। हमारे देश में भी आम आदमी के लिए सुविधाएँ बढ़ रही हैं, पर वे हमें दिखाई नहीं देती।

वास्तव में जो विकसित मस्तिष्क के नहीं हैं, नई सोच नहीं रखते, संकीर्णता के दायरे में बंधे रहते हैं, वे ही अपनों के बीच नकारात्मक ऊर्जा फैलाते हैं। सकारात्मक दृष्टि से परिपूर्ण लोग हर बात को तर्क से समझने की कोशिश करते हैं। वे मानते हैं कि हमें यदि विकास करना है, तो हमें विध्वंस को सहना होगा। खंडहर को नई इमारत बनाने के लिए पहले उसे तोड़ना होगा। खंडहर को बिना तोड़े उस स्थान पर नई इमारत कभी नहीं बनाई जा सकती। इस तरह की प्रगतिशील सोच ही इंसान को दूरद्रष्टा बनाती है। ऐसे लोग ही समाज को नई दृष्टि देते हैं। सच को आत्मसात् नहीं करने वाले स्वयं पीछे रहते हैं, बल्कि समाज को भी पीछे ले जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे लोगों का साथ हमें छोड़ देना चाहिए।

 

शिकायत या उपालंभ का भाव यह दर्शाता है, वे वर्तमान से संतुष्ट नहीं हैं। वर्तमान से जो संतुष्ट होते हैं, उन्हें सब-कुछ भला ही लगता है। आज कोरोना को लेकर शिकायत करने वाले कुछ समय बाद यही कहते मिलेंगे कि हमने कोरोना काल में न जाने कितने तरह की मुश्किलें झेलीं। तब वे अपनी मुश्किलें गिनाएँगे। उस समय उन्हें यही कोरोना काल अच्छा लगने लगेगा। भले ही आज उन्हें इसी कोरोना को लेकर बहुत-सी शिकायतें हों। आज जिस पर वे लानत भेज रहे हैं, कल उसी पर फख्र भी करेंगे।

सच को शक की नजरों से देखने वालों की दृष्टि संकुचित होती है। उनकी सोच की लहरें दूर तक नहीं जा पातीं। हर लहर उनके पास एक न एक शिकायत लेकर आती है। कुछ समय बाद उनके पास शिकायतों का अंबार लग जाता है। ऐसे में वे शिकायत से मुक्त कैसे रह पाएँगे? दूसरी ओर जो सदैव सकारात्मक विचारों को अपने पास रखते हैं, अपनी दृष्टि व्यापक रखते हैं, तर्क के साथ अपने विचारों को सामने रखते हैं। नाप-तौलकर बोलते हैं। दूसरों का सम्मान करते हैं। समस्या सुनने के लिए तैयार रहते हैं, समाधान की तरफ विशेष ध्यान देते हैं, ऐसे लोग समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। बेहतर समाज ऐसे लोगों से ही बनता है। जिन्हें हर बात पर शिकायत है, वे कभी संतुष्ट नहीं रह सकते। एक बेचैनी उन्हें सदैव घेरे रहती है। दूसरी ओर जो हर बात को स्वीकार कर लेते हैं, उनमें आत्मसंतुष्टि का भाव सदैव विद्यमान रहता है। उनके चेहरे की चमक ही बता देती है कि उनके विचार सकारात्मक हैं। लोग उनके पास आकर कुछ सीखकर ही जाते हैं। ऐसे लोग सदैव सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। स्वस्थ समाज ऐसे लोगों से ही बनता है। ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जाए, तो बहुत ही जल्द बन सकता है उपालंभ यानी शिकायतमुक्त समाज। इस समाज में रहकर हम भी गर्व का अनुभव करेंगे।


1 comment:

Sudershan Ratnakar said...

सच कहा। सकारात्मक सोच ही समाज को सही दिशा दे सकती है। बहुत बढ़िया आलेख। बधाई