-अरुण शेखर
पुस्तकः कबूतर का कैटवॉक, लेखिकाःसमीक्षा तेलंग
प्रकाशनः प्रभात प्रकाशन दिल्ली, मूल्यः 150/-
साहित्य की बहुत सी विधाएँ हैं जिसपर खूब लिखा जा रहा है कविता, कहानी, उपन्यास और व्यंग्य तो बराबर लिखे जा रहे हैं तथा छप भी खूब रहे हैं ; परंतु यात्रा वृतांत वह भी किस्सागोई के अंदाज में बहुत कम पढ़ने को मिलते हैं। अभी हाल ही में मैंने व्यंग्यकार समीक्षा तैलंग की एक पुस्तक पढ़ी ‘कबूतर का कैटवॉक ’ पुस्तक के आवरण के एक कोने में लिखा है किस्सागोई। तो पहले बात करते हैं पुस्तक के शीर्षक के विषय में, क्योंकि किसी भी कहानी या पुस्तक का शीर्षक भी महत्त्वपूर्ण होता है, उससे पुस्तक के मज़मून का पता चलता है जो आपके अंदर उसे पढ़ने का कौतूहल जागता है। इसके 3 शब्द हैं बल्कि चार एक हिंदी दो अंग्रेजी के कबूतर के अलावा कैटवॉक।
कैटवॉक आपने खूब सुना
होगा यह फैशन से जुड़ा शब्द है। यहाँ एक तो कबूतर और उसकी विरोधी कैट यानी बिल्ली है
और उसकी वॉक यानी चाल है कबूतर की चाल के अंदाज में। यहीं पर व्यंग्य है यानी लेखक ने अपने लेखों में भी इसे बरकरार रखा है। दूसरी बात जो महसूस हुई मुझे कि
कबूतर हो या कैट इन सबसे महत्त्वपूर्ण है वॉक, चाल, आप की गति और यह वॉक केवल धरती की नहीं है यह मानसिक है, रिश्तों की है, समय की है। इस वॉक के बहाने समीक्षा ने देश-विदेश के पशु-पक्षी, वातावरण, रिश्ते-नाते और दैनिक जीवन की सामान्य से सामान्य घटना को विशेष
बना दिया। जहाँ वह आबू धाबी के जीवन को आपके लिए प्रस्तुत करती
हैं वहीं भारतीय जीवन के रिश्तों को जस का तस परोस देती है, विशेष
बात यह
कि इस यात्रा में उनके
साथ कबूतर और बिल्लियों का खासा स्थान है । मज़े की बात है कि हर चित्रण में उनके व्यंग्य की छौंक लगती रहती
है। जैसे ‘भौ भौ कुत्ता आपका स्वागत करता है’ एक लेख है उसका एक अंश आपके लिए प्रस्तुत कर
रहा हूँ-
‘इन कुत्तों को आजकल घर की जगह बैंकों में होना चाहिए आम आदमी का पैसा तो बचेगा आजकल’ आगे वह लिखती हैं- ‘कुछ घर ऐसे भी होंगे जो इन बैंकों को लूट कर बने हैं उनकी सुरक्षा के लिए कुत्ते को रखना और पालना जरूरी है क्योंकि यह काम केवल वही कर सकते हैं।‘
आबू धाबी की यात्रा के दौरान मेरी शुक्रवार यात्रा दो में एक जगह लिखती हैं कि ‘कम से कम यहाँ का ओपन भ्रष्टाचार खुली आँखों से तो नहीं दिखता, अंदर की बातें कोई नहीं जानता, जानना चाहता भी नहीं ज्यादा अंदर घुसने की कोशिश में कहीं अंदर ही न कर दें। कानून कड़क हैं यहाँ। फिर भी जेल हैं, कोर्ट है, पुलिस है, वकील है मतलब अपराध तो होते ही हैं लेकिन ख़बर किसी को नहीं लगती, न उसके बारे में गॉसिप कर सकते हैं, न लिख सकते हैं और अखबारों में इस तरह की खबरें ढूँढते रह जाओगे। इसलिए कोई पड़ता नहीं इन बातों में। आसान जिंदगी को क्यों उलझाना! अरे भाई रहना है यहाँ...। नियम क़ायदे में रहेंगे तो ही रहने को मिलेगा। वरना देश के बाहर का रास्ता बहुतों को दिखा दिया जाता है।’
बहुत ही सुंदर है, आप सबने कबूतर देखे होंगे पर कैटवॉक करते हुये केवल यहीं पर मिलेंगे-‘कबूतर जब चलता है जब चलता है तो किसी सुंदरी या मॉडल से कम नहीं
लगता। गर्दन ऐसे मटकाता है,
जैसे कथक नृत्य कर रहा
हो। उसकी सुंदर नीली आँखें जैसे उसकी सुंदरता का बखान करते नहीं थकती। ‘वो पत्थरों में खुशियों के रंग समेटती हैं।’
प्रकृति प्रेमी समीक्षा किसी को भी लॉकडॉउन में रखने की पक्षधर नहीं हैं भले ही वह पालतू ही क्यों न हों। क्योंकि उन्होंने इस लॉकडॉउन को खूब अच्छी तरह महसूस किया है।
कहने का मतलब यह
की ‘कबूतर का कैटवॉक ’ एक पठनीय पुस्तक है, जिसमें कई जगहों की सैर है और इससे उपजा जीवन दर्शन है।
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