होली:
उल्लास एवं उमंग का उत्सव
- विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
शीत विदा होने लगी चली बसंत बयार
प्यार बाँटने आ गया होली का त्यौहार
रंगबिरंगी सतरंगी आभायुक्त होली पर्व जहाँ एक ओर अपनी अनोखी
उत्सवधर्मिता का प्रमाण है, वहीं दूसरी ओर पौराणिक
पृष्ठभूमि के मद्देनज़र प्रामाणिक त्यौहार भी, जिसे
यूँ बयान किया जा सकता है :
1) पौराणिक :
तीन प्रसंग में समाहित। पहला भक्त प्रहलाद को होलिका के माध्यम
से जीवित जला देने के हिरण्यकश्यपी प्रयास की असफलता। दूसरा प्रसंग दक्षिण से शिव
के संदर्भ में, जब कामदेव उनकी तपस्या भंग करने के
प्रयास में खुद काल के गाल में समाहित हो गए। संदेश स्पष्ट था की प्रेम के मार्ग
में वासना का कोई स्थान नहीं। अंतिम प्रसंग है कृष्ण एवं राधा के देह से परे अलौकिक
प्रेम का।
2) सांस्कृतिक : यह पर्व प्रतीक है असत्य पर सत्य, बुराई
पर अच्छाई, स्वार्थ पर शुचितापूर्ण निर्मल निस्वार्थ
प्रेम का। सुसभ्य सुसंस्कृत शैली के विकास का।
3) सामाजिक :
प्रतीक है सामाजिक समरसता, सद्भाव, सामंजस्य का। शत्रु को मित्र बनाने का। सम्बन्धों के रिविज़न,सुधार तथा पुनर्जीवन का। एक बात और होली टाईटल के माध्यम से हर एक के
लिये बगैर किसी दुर्भावना के अपनी सामाजिक छवि से साक्षात्कार व उसमें सुधार की
संभावना।
4) व्यक्तिगत :
शीत से ग्रीष्म का संधिकाल। वसंत के आगमन का राजदूत। रंगों में
रचा बसा पगा पर्व ऋतु परिवर्तन के अनुसार शरीर का अनुकूलता सहाय का सुअवसर।
होली के मेनेजमेंट मंत्र
1) सत्य की विजय :
सत्य को सिद्ध होने में विलंब स्वाभाविक है पर उसे समाप्त नहीं
किया जा सकता। अग्नि में होलिका का दहन और प्रहलाद के सुरक्षित निकल आने से यह
संदेश साफ।
2) धैर्य की धारणा :
प्रहलाद ने साबित कर दिया कि कर्म तथा कर्म के प्रति प्रतिबद्धता
सर्वोपरि है। सत्कर्म फलित होने में देरी मानव चरित्र के धैर्य कि परीक्षा के पल
हैं, जो उसे आंतरिक शक्ति प्रदान करते हैं।
3) उदारता का अवतरण :
जाति, धर्म, भाषा, रंग, रूप, उम्र से परे मिलजुलकर होली मनाने की परंपरा का निहितार्थ है जीवन
में उदारता का अवतरण तथा सामाजिक समरसता।
4) उत्सवधर्मिता :
रंग बिरंगी इंद्रधनुषी उत्सवधर्मिता का अभिप्राय ही है स्वस्थ
एवं सुलभ मनोरंजन। सामाजिक सामंजस्य तथा विभिन्न संप्रदायों के बीच कौमी एकता की
कड़ी।
5) वैमनस्य की विदाई :
पर्युषण पर्व कि क्षमावाणी के सदृश्य यह उत्सव आदमी को अवसर
प्रदान करता है अंत:करण से वैमनस्य कि विदाई का जो अंतस कि शुचिता तथा सेहत संवरण
के मार्ग को करता है प्रशस्त।
आज नहीं बरजेगा कोई मनचाही कर लो
होली है तो आज मित्र को पलकों पर धर लो
जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो
होली है तो आज शत्रु को बाँहों में भर लो
सम्पर्क:
8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास),
भोपाल-462023, मो. 09826042641,
E-mail- v.joshi415@gmail.com
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