मलाल
-ओमम्प्रकाश क्षत्रिय
‘गाँव वाले लड़ने आ सकते हैं। लड़की को क्यों
मारा? क्या, तुम्हें मारने का अधिकार
है। पिताजी पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हैं। शर्म नहीं आती। एक छोटी लड़की का मारते
हुए।’
यही सोच कर मोहनलाल का सिर फटा जा रहा था।
‘क्या करे, गलती तो हो
गई। जो होगा देखा जाएगा,’ उन्होंने दिमाग को एक झटका दिया।
मगर, दिल कहाँ मानता है। वह अपनी तरह सोच रहा था।
‘उस मासूम को नहीं मारना चाहिए था। हाँ,
मगर मैं क्या करता ? मैंने कक्षा में अनुशासन
बनाए रखने के लिए उसे कई बार डाँटा- फटकारा था। वह मान हीं नहीं रही थी। उस के
देखादेखी दूसरे छात्र भी धमाल कर रहे थे। इसलिए मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा।’
‘क्या मारना जरूरी था। तूझे नहीं मालूम कि
मारना दण्डनीय अपराध है। इसके लिए तेरी नौकरी भी जा सकती है। तुझे सजा हो सकती
है।’
‘तो क्या करता? उसे
धमाल करने देता। कक्षा में शांति बनाए रखकर पढ़ाना जरूरी है। वह पढ़ नहीं रही थी।
दूसरे को भी पढ़ने नहीं दे रही थी। उसे पाँच बार समझाया। मत कर। मत कर। नहीं मानी
तो गुस्सा आ गया। बस गुस्से में एक धौल जमा दिया।’
‘उसे
बाद में पुचकार लेना था।’ ‘ कैसे पुचकार लेता। वह मार खाते
ही घर भाग गई थी। ‘
‘तब तो भुगतना पड़ेगा।’ यह सोचते हुए वह
विद्यालय पहुँच गया। मगर, जैसा उसने सोचा था वैसा कुछ नहीं
था। विद्यालय को ताला बंद करने के लिए ग्रामीण नहीं आए हुए थे। लड़की के पिताजी
कहीं नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने पुलिस रिपोर्ट की होती तो गाँव में खबर हो जाती।
ऐसी कोई खबर नहीं थी।
तभी लड़की दूर से आती दिखाई दी। उस की धड़कन बढ़ गई। लड़की ने
पास आते ही मोहनलाल के चरणस्पर्श करते हुए कहा, ’ सर
! आज तो मैं सभी काम करके लाई हूँ। अब तो नहीं मारोगे ना? ’ कहते
हुए उसने मोहन सर को हाँ में गर्दन हिलाते देखा और कक्षा में चली गई।
मगर, मोहनलाल की निगाहें कुछ खोजते हुए खिड़की
के बाहर चली गई। जहाँ कौवे से मार खाने के बाद पेड़ पर चहचहाती और उछलकूद करती
चिड़िया अपना नीड़ बना रही थी।
सम्पर्कः पोस्ट ऑफिस के पास ,
रतनगढ़ – 458226 (मप्र) जिला- नीमच
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मोतियाबिंद
-श्याम सुन्दर अग्रवाल
रात
को अचानक सात वर्षीय बबलू पता नहीं कैसे बेहोश हो गया। दस बज गए थे। नए शहर में
मिश्रा जी को डॉक्टरों के बारे में न जानकारी थी, न ही पास में पैसे। दो माह से तनख्वाह भी
तो नहीं मिली थी, पिछले दफ्तर ने सर्टिफिकेट जो नहीं भेजा
था।
श्रीमती
जी का तो बुरा हाल था,
मिश्रा जी भी घबरा गए। करें तो क्या करें। मोहल्ले में किसी से
मेलजोल भी नहीं बढ़ाया। वे बहुत ऊँचे पद पर नहीं थे, फिर
भी मोहल्ला उन्हें अपने स्तर का नहीं लगा। ट्रांसफर के बाद अच्छे मोहल्ले में मकान
मिला नहीं, सो मजबूरी में एक बार यहीं ले लिया। पिछले माह
ही पड़ोस का रामबिलास आया और बोला, ‘रिश्तेदार आए हैं,
गैस खत्म हो गई… सिलेंडर है? तो…।’ जान न पहचान,
कैसे दे देते सिलेंडर? जवाब दे दिया।
फिर ‘बेटी की शादी है’ के नाम पर बार-बार
कुछ-न-कुछ माँगने आते रहे। श्रीमती जी हर बार गोलमोल-सा जवाब देती रहीं।
मिश्रा
जी ने जल्दी में स्कूटर बाहर निकाला, मगर वह भी ऐन मौके पर जवाब दे गया। बहुत
कोशिश की लेकिन स्कूटर-टस-से-मस नहीं हुआ। ‘क्या बात हो गई, मिश्रा जी?’ अचानक रामविलास के बोल कानों में
पड़े।
उनकी
श्रीमती जी ने घबराहट में सारी स्थिति बयान की।
रामबिलास
ने जल्दी -से अपना स्कूटर निकाला। बबलू और मिश्राजी को पीछे बिठाया और अस्पताल की
ओर चल दिया। समय से उपचार होने से बबलू अगले दिन ही ठीक हो गया।
मिश्रा
जी व उनकी पत्नी रामबिलास से आँख नहीं मिला पा रहे थे, ‘हम तो आपके अपने
भी न थे, फिर भी आपने पैसे भी दिए और सारी रात अस्पताल
में भी रहे…।’
‘पड़ोसी भी अपने ही होते है…और अपने ऊपर से थोड़ा न गिरते हैं, जरूरतों के वक्त… और आँखों में मोतियाबिंद न हो, तो जल्दी पहचाने जाते हैं।’ रामबिलास ने मन ही बात कह ही दी।
मोबा-98885-36437
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