- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
जीवन यात्रा के दौरान मनुष्य केवल दो ही स्थितियों से
गुजरता है - सुख या दुख। ये दोनों अंतस के भाव हैं। समय सदा एक सा नहीं गुजरता।
कभी कष्ट, कभी
खुशी, कभी
उतार, कभी
चढ़ाव आदि सब उसके अभिन्न अंग हैं। समय के साथ समय गुजरता भी रहता है और यह हमारे
मानस का द्योतक है कि हम उसे किस रूप में गृहण करते हैं। विद्वान लोग दुख में सुख
की अनुभूति कर लेते हैं,
जबकि मूर्ख या मूढ़मति सुख के पल में भी दुख के बीज बो देते हैं।
एक बार एक सुंदर,
धनाढ्य एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से सजी संवरी महिला ने अपने कौंसिलर से शिकायत की
कि वह जीवन में रिक्तता का अनुभव करती हैं। उसे अब सब कुछ अर्थहीन लगता है।
कौंसिलर ने एक अन्य स्त्री को बुलाकर पूछा कि उसे खुशी कैसे
प्राप्त हुई।
तब उस स्त्री ने अपनी कहानी सुनाई - मेरे पति की मृत्यु
अचानक हो गई और उसके तुरंत तीन माह बाद एक कार दुर्घटना में पुत्र भी चल बसा। कुछ
शेष नहीं रहा। मैं न तो सो पाती थी न खा पाती। न कभी मुस्कुराई। मैं इहलीला समाप्त
करने की भी सोचने लगी।
तभी एक दिन बिल्ली का छोटा सा बच्चा मेरे पीछे पीछे घर आ
गया। बाहर मौसम सर्द था। मुझे उस पर दया आ गई और घर के अंदर ले आई। उसे दूध दिया, जिस पीकर
उसने अपनी प्लेट जबान से साफ की। वह मेरे पैरों पर लेट गई। तब मैं पहली बार
मुस्कुराई। मुझे लगा जब वह बिल्ली का एक छोटा सा बच्चा मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट
लौटाने का कारण बन सकता है तो फिर और लोगों की सहायता के माध्यम से और कितनी
खुशियां मेरी प्रतिक्षा कर रही हैं। अगले दिन मैंने कुछ बिस्किट घर पर ही बनाए और
अस्पताल में भर्ती एक पड़ोसी के पास लेकर गई।
इस तरह हर दिन दूसरों के लिये कुछ अच्छा कर सकने का ध्येय
मुझे मिल गया। दूसरों को खुश देखकर मुझे खुशी मिलने लगी। आज कोई भी मुझ जैसा समय
पर सोने एवं खाने वाला खुश प्राणी नहीं
हैं।
यह सुनकर वह संभ्रात महिला भाव विभोर होकर रो उठी। उसके पास
संसार की हर खुशी खरीदने के लिये समुचित पैसा था केवल उन खुशियों को छोड़कर, जिन्हें वह
पैसे से नहीं खरीद सकती थी।
याद रखिये सुख पाने के लिये सुख देना जरूरी है। खुद में सुख
की खोज व्यर्थ हैं, वह
तो दूसरों के लिये कुछ अच्छा कर सकने से प्राप्त हो सकती है। खुद का सुख स्वार्थ
हैं। दूसरों का सुख परमार्थ है,
इसलिये तो कहा भी गया है –
चार शास्त्र छ: उपनिषद, बात मिली है दोय,
सुख दीन्हें सुख होत है, दुख दीने दुख होय।
सम्पर्क: 8/
सेक्टर-2, शांति
निकेतन (चेतक सेतु के पास),
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