से जोड़ते हाइकु
डॉ. कुँवर दिनेश सिंह
पुस्तक: स्वप्न-स्वप्न-शृंखला (हाइकु संग्रह) ,
सम्पादक- रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,
डॉ. कविता
भट्ट
वर्ष: 2019,
पृष्ठ144,
मूल्य -300
रुपये; प्रकाशक: अयन प्रकाशन,
1/20 महरौली, दिल्ली-110030
हाइकु मूलतः जापान की एक पारम्परिक काव्य विधा है, जो स्वल्प
शब्दों में बहुत कुछ कह देती है। वास्तव में हाइकु का यही सौन्दर्य है कि यह अपने
सूक्ष्म रूप में गहन दार्शनिक विचार को समाहित किए रहता है। पिछले कुछ दशकों में
विश्व की कई भाषाओं में जापानी हाइकु का अनुवाद किया गया है और उन भाषाओं में इस
छन्द के प्रयोग भी किए गए हैं। अंग्रेज़ी में हाइकु के छंदोबद्ध तथा छन्दमुक्त
दोनों रूप देखे जा सकते हैं। उसी प्रकार हिन्दी में भी दोनों तरह के प्रयोग किए गए
हैं, परन्तु
वर्णिक छन्द के रूप में अधिक प्रयोग किया गया है। हिन्दी में छन्दानुशासन के साथ
तीन पंक्तियों में 5-7-5 के
वर्णक्रम में हाइकु सृजन किया गया है। नियमों की अनुपालना के साथ-साथ अच्छी हाइकु
रचना के लिए अत्यधिक अभ्यास एवं एकाग्रता अपेक्षित होती है।
विगत कुछ वर्षों में 'हिन्दी
हाइकु' ब्लॉग
तथा 'हाइकु
दर्पण' व 'अनुभूति' आदि ऑनलाइन
पत्रिकाओं सहित 'सरस्वती
सुमन', 'हिन्दी
चेतना', 'हरिगंधा', 'हाइफ़न', 'उदन्ती' तथा 'अभिनव
इमरोज़' इत्यादि पत्रिकाओं के हाइकु विशेषांकों के माध्यम से हिन्दी
में हाइकु के विविध प्रयोग देखने को मिलते हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ संकलन और आलोचना/समीक्षा ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं, जिनमें
हिन्दी हाइकु के स्वरूप का विशद अनुशीलन किया गया है।हाल ही में प्रकाशित संकलन
"स्वप्न-शृंखला’हिन्दी में समकालीन हाइकु कविता के स्तरीय हस्ताक्षरों का
संग्रह है। इस संकलन में प्रतिष्ठित एवं नवोदित हाइकुकारों की उत्कृष्ट रचनाओं की
प्रस्तुति के लिए संपादक-द्वय रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
और डॉ. कविता भट्ट साधुवाद के पात्र हैं। कुल तीस कवियों की हाइकु रचनाओं में
कथ्य, शिल्प
व शैली की विविधता इस संग्रह को रुचिकर बनाती है। प्रकृति के विभिन्न चित्रों सहित
मानव-जीवन के अनुभवों की अभिव्यक्ति हृदयग्राही है।
संग्रह की प्रथम रचनाकार डॉ. सुधा गुप्ता एक प्रतिष्ठित, सुपरिचित व
सशक्त हाइकुकार हैं,
जो बहुत-से नए कवियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके हाइकु में प्रकृति और
जीवनानुभूतियों का तारतम्य मर्मस्पर्शी है। चाहे पर्यावरण का चिंतन हो:
"लुप्त है वापी / खो गए सरोवर / ग़ायब हंस।" (पृ. 12) या
अनुत्तरित प्रेम की वेदना हो: "विधु ने छला / उछला तो सागर / स्पर्श न
मिला।" (पृ. 16)
या नारी विमर्श हो: "बिलख चलीं / पर्वतों की बेटियाँ / मायका छूटा।"
(पृ. 15) या
फिर मन की व्यथा हो: "गहरा राज़: / आकाश अकेला है / तारों के साथ।" (पृ.
18), डॉ.
सुधा गुप्ता की अभिव्यक्ति गहन प्रभाव रखती है।इस संग्रह के दूसरे सशक्त हस्ताक्षर, रामेश्वर
काम्बोज 'हिमांशु' के हाइकु
प्रणय की संयोग-वियोग की अनुभूतियों को बड़े प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं, जैसा कि इन
रचनाओं में आभासित है: "सिन्धु हो तुम / मैं तेरी ही तरंग, / जाऊँगी कहाँ?" (पृ. 19), "घना अँधेरा
/ सिर्फ़ एक रौशनी / नाम तुम्हारा।" (पृ. 23) तथा "चैन न पाया / सागर तर आया / तुझमें डूबा।"
(पृ. 25) संग्रह
में सम्मिलित अन्य चर्चित हाइकुकारों में डॉ. कुँवर दिनेश सिंह, डॉ. भावना
कुँअर, डॉ.
ज्योत्स्ना शर्मा, डॉ.
कविता भट्ट, कमला
निखुर्पा, सुदर्शन
रत्नाकर, कुमुद
बंसल, डॉ.
जेन्नी शबनम, डॉ.
हरदीप कौर संधू, कृष्णा
वर्मा, अनिता
ललित, पुष्पा
मेहरा, ज्योत्स्ना
प्रदीप, मंजूषा
मनतथाडॉ. पूर्वा शर्माके नामउल्लेखनीय हैं।
कुल मिलाकर,
144 पृष्ठों के इस संग्रह में हाइकु के विविध रंगों को संजोया
गया है। अधिकतर हाइकु पाठक को नूतन विचारों,
अर्थों व आशाओं के पुलिनों पर ले जाते हैं और नि:सन्देह एक 'स्वप्न-शृंखला '
से जोड़ते हैं। यह संकलन हाइकु-प्रेमियों तथा शोधार्थियों के लिए रोचक एवं स्तरीय सामग्री से भरा है।
सम्पर्कः # 3, सिसिल क्वार्टर्ज़, चौड़ा मैदान, शिमला: 171004 हिमाचल प्रदेश, ईमेल:kanwardineshsingh@gmail.com
मोबाइल: +91-94186-26090
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