एक पक्षी की डेढ़ हज़ार साल की संगीत परंपरा
मनुष्यों की संगीत परंपरा सदियों पुरानी है। मगर नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक दलदली गोरैया (Melospiza georgiana) नामक एक पक्षी ने अपने गीत को डेढ़ हज़ार सालों से सहेजकर रखा है और आज भी वही गीत गाते हैं।
यह निष्कर्ष लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय के रॉबर्ट लेकलान और उनके साथियों ने इन गौरैया के गीतों के विश्लेषण के आधार पर निकाला है। यह अध्ययन करने के लिए टीम ने उत्तर-पूर्वी यू.एस. के 6 घनी आबादी वाले स्थानों से 615 नर गौरैयों के गीत रिकॉर्ड किए। गौरतलब है कि गीत गाने का काम नर पक्षी ही करते हैं। इसके बाद प्रत्येक पक्षी के गीत का विश्लेषण किया गया।
गीतों के विश्लेषण से पता चला कि सारे नमूनों में कुल मिलाकर 160 अलग-अलग सिलेबल्स का उपयोग किया गया था। सारे दलदली गौरैया एक -सी धुन गाते हैं हालाँकि हर आबादी में एकाध अपवाद देखा गया। विश्लेषण के लिए एक सांख्यिकीय विधि का इस्तेमाल किया गया था। इसे बेशियन सनिन्कटन विधि कहते हैं। इसके साथ एक ऐसे मॉडल का उपयोग किया गया था जो यह पता लगता है कि किसी आबादी के गीतों में कितने सिलेबल्स का उपयोग हो रहा है। इसके आधार पर वैज्ञानिक यह गणना करने में कामयाब रहे कि प्रत्येक नर पक्षी का गाना समय के साथ कितना बदला है। उन्हें यह भी समझ में आया कि 1970 के दशक में किए गए एक अध्ययन और 2009 के गीतों के उनके नमूने में दो को छोड़कर शेष सिलेबल्स वही थे।
अध्ययन का सबसे रोचक नतीजा यह है कि सबसे पुराने गीत की औसत उम्र करीब 1500 वर्ष है। यानी ये पक्षी डेढ़ हज़ार सालों से वही गीत गा रहे हैं। वैज्ञानिकों को लगता है कि संभवत: यही स्थिति अन्य जंतुओं में भी पाई जाएगी। (स्रोत फीचर्स)
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