भक्ति रस में डूबा देश
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पल्लवी सक्सेना
भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेकता में एकता ही उसकी
पहचान है। भारत में रहने वाले सभी
भारतवासी या फिर वे जो भारत को, यहाँ की संस्कृति को, सभ्यता को
जानते हैं, पहचानते
हैं, उन्हें यह बात बताने की जरूरत ही नहीं कि कितना सुंदर
है हमारा भारत देश। यहाँ मुझे हिन्दी फिल्म 'फना' का एक गीत याद आ रहा है -
यहाँ हर कदम- कदम पर धरती बदले रंग,
यहाँ की बोली में रंगोली सात रंग,
धानी पगड़ी पहने मौसम है,
नीली चादर ताने अंबर है,
नदी सुनहरी, हरा समंदर,
है यह सजीला, देस रंगीला, रंगीला, देस मेरा रंगीला...
यह बात अलग है कि पिछले कुछ वर्षों में आतंकी हमलों के
कारण यहाँ की आन- बान और शानो- शौकत पर थोड़ी सी शंका की धूल गिरी है मगर इसका
गौरव आज भी वैसा ही है, जैसे पहले हुआ करता था। रही सुख और दु:ख की बात तो वह तो जीवन
चक्र की भांति सदा ही इंसान की जिंदगी में चलते ही रहता है। फिल्म दिलवाले
दुलहनिया ले जायेंगे का एक संवाद है- 'बड़े- बड़े शहरों में ऐसी छोटी- छोटी बातें
होती रहती हैं जिसे
मैंने बदल कर दिया है कि 'बड़े- बड़े देशों में ऐसी छोटी- छोटी
वारदातें होती रहती हैं क्योंकि जितना बड़ा परिवार हो उतनी ही ज्यादा बातें भी तो
होगी। जहाँ प्यार होगा वहाँ लड़ाई भी
होगी। ऐसा ही कुछ मस्त मिजाज का है अपना
भारत भी।
इतना कुछ घट जाने के बाद भी यहाँ हर एक त्योहार बड़ी
धूमधाम से मनाए जाते है। हर त्यौहार का अपना एक अलग ही रंग और अपना एक अलग ही मजा
होता है। देखा जाए तो यह पूरा महीना ही
त्योहारों से भरा हुआ होता है। तो क्यूँ
ना आप और हम भी सब कुछ भूलाकर, सारे गिले- शिकवे मिटा कर त्योहारों का
लुफ्त उठायें-
जैसा कि आप सब जानते हैं कि भारत में रक्षाबंधन के बाद
से ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। नवरात्र के नौ दिन सबसे पहले आता है।
अभी लिखते वक्त जैसे आँखों के सामने एक चलचित्र सा चल रहा है। चारो ओर माँ के नाम
का जयकारा। पूरा माहौल भक्ति रस में डूबा हुआ। जगह- जगह माँ की सुंदर मूर्तियों से
सुशोभित मनमोहक झांकियाँ, मेले, गाना- बजाना और जागरण। इन नौ दिनों में दुनिया अपना सारा दु:ख- दर्द
भूल कर सिर्फ माँ के भक्ति रस में भाव विभोर हो जाती है। जगह- जगह गरबा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया
जाता है। कितने आनंददायक होते हैं नवरात्र के ये दिन।
फिर आता है दशहरा यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व, इस दिन
माँ दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन भी किया जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन माँ
दुर्गा भगवान श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद देती हुई विसर्जन के माध्यम से
लुप्त हो जाती हैं और उसके बाद दशहरे का
पर्व शुरू होता है।
इस त्योहार के मौसम में इस साल यह अक्टूबर का महीना
महिलाओं के लिए भी रंगों भरा महीना ले कर आया है। जिसमें चाँद की महिमा लिये करवाचौथ
जिसे अखंड सुहाग का त्यौहार माना जाता है। इस दिन सभी सुहागिन औरतें अपने- अपने
पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का उपवास रखती हैं। चाँद देखने के बाद पति का
चेहरा देख कर व्रत खोलती हैं। पहले यह त्योहार इतनी धूम- धाम से नहीं मनाया जाता
था। मेरी मम्मी के अनुसार मेरी दादी ऐसा बताया करती थीं कि यह सब गृहस्थी की पूजा
है। जिसे पहले के जमाने में घर की औरतें आपस में मिल जुल कर ही कर लिया करती थी।
मगर अब फिल्म वालों की मेहरबानी से पतियों को भी इस व्रत के महत्त्व की जानकारी
मिल गई है। अब तो पति भी अपनी पत्नी के लिए यह व्रत करते देखे जा सकते हैं।
अब बारी आती है साल के सबसे बड़े हिन्दू पर्व की यानी
दीपावली की। हिंदुओं का सबसे बड़ा यह त्योहार हिन्दी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक
अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम अपने चौदह वर्ष का वनवास पूरा
करके अयोध्या लौट कर आये थे और लोगों ने दीप प्रज्वलित कर उनका स्वागत किया था।
लोग महीनों पहले से इस त्योहार के लिए तैयारियाँ करते हैं। बरसात के बाद आने के
कारण लोग घर की रँगाई करवाते हैं। जिससे सारे घर की साफ- सफाई अच्छी तरह हो जाती
है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जिसका घर जितना साफ सुथरा होगा उसके घर माँ लक्ष्मी
का आगमन उतनी जल्दी होगा। और इस अवसर पर तरह- तरह के पकवान भी बनाये जाते हैं।
दीपावली के दिन एक और रिवाज है दीपावली के दिन शाम को लक्ष्मी पूजन के बाद लोग एक
दूसरे के घर जलता हुआ दिया लेकर जाते हैं। ताकि किसी के भी घर दिये की रोशनी के
बिना अंधेरा ना रहे, है ना अच्छी परंपरा।
चूंकि मैं भोपाल की हूं अत: वहां मैंने इस परम्परा को देखा है। लोग एक
दूसरे से गले मिलते हैं, उपहार देते है, दीपावली की शुभकामनाएँ देते हैं, फटाखे
फोड़ते हैं। घर के लिए कोई नया सामान लेना
हो तो भी दीपावली के आने का इंतजार रहता है। दीपावली पाँच दिनों का उत्सव होता है
पहले धनतेरस, फिर
नरक चौदस और फिर लक्ष्मी पूजा, और इसके बाद गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट के
नाम से भी जाना जाता है इसके बाद पांचवे दिन भाई दूज। धनतेरस वाले दिन वैसे तो
सोना या चाँदी खरीदे जाने का रिवाज है, मगर आज कल की महँगाई के इस दौर में सबके लिए
यह सब संभव नहीं इसलिए हमारे समझदार बुजूर्गों ने सोने चाँदी के अलावा इस दिन कोई
भी नया समान खरीदने का चलन बना दिया। ताकि गरीब से गरीब इंसान भी इस दिन कुछ नया
समान लेकर यह त्योहार मना सके।
नरक चौदस को यमराज का दिन माना जाता है और उनसे तो सभी
को डर लगता है। इसलिए इस दिन को मनाना कोई नहीं भूलता... इस दिन आधी रात को मूँग
की दाल से बने पापड़ पर काली उड़द की दाल रख कर उस पर यम के नाम का चार बत्ती वाला
दिया जलाकर रास्ता शांत हो जाने के बाद बीच रास्ते में रख देते हैं, जब तक
दीपक शांत न हो जाए वहाँ खड़े रहकर प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही दिया शांत होता है, उस स्थान
पर पानी डाल कर बिना पीछे देखे घर में चले जाते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि
मरणोंपरांत जब यमदूत आपको लेकर जाते हैं तब उन चार बत्तियों वाले दिये की चारों
बत्तियाँ चार दिशाओं का प्रतीक होती हैं। यमदूत के साथ होते हुए भी आपको उस मार्ग
की चारों दिशाओं में उस दीपक की वजह से भरपूर रोशनी मिलती है। मगर सभी घरों में
ऐसा नहीं होता है। हर घर की अलग मान्यता होती है, जो मैंने अभी बताया वो मेरे अपने घर की
प्रथा है।
फिर आती है दीपावली यानी लक्ष्मी पूजा और अगली सुबह
गोवर्धन पूजा। इस त्योहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्त्व है। इस पर्व में
प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और
लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है । शास्त्रों में
बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी
लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान
करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं।
इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय
और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष
प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के
लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-
गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे और सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा
और इस दिन गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव
अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
इसके बाद आता है
भाई दूज। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों को
तिलक करती हैं और उनकी सुख समृद्धि की कामना करती हैं। साधारण तौर पर हिन्दू धर्म
में इस त्यौहार को मनाने का यही तरीका है। मगर कायस्थ समाज में इस त्योहार के मनाए
जाने का कुछ अलग रिवाज है। इस दिन वहां भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा की जाती है
और दूध में उंगली से पत्र लिखा जाता है। मान्यता यह है कि आपकी मनोकामनाओं का पत्र
देव लोक तक पहुँच जाता है।
पहले लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया लिखाया नहीं जाता
था। इसलिए इस पूजा में लड़कियों को शामिल
नहीं किया जाता है। किन्तु अब ऐसा नहीं है। बदलते वक्त ने लोगों की मानसिकता को
बदला है। आजकल लड़कियाँ पढ़ी- लिखी होती हंै इसलिए अब बहुत से घरों में लड़कियों
को भी इस पूजा में शामिल होने दिया जाता है। मैंने भी अपने घर यह पूजा
की है।
अब बारी आती है देवउठनी ग्यारस की। इसे बड़ी ग्यारस के
नाम से भी जाना जाता है। इस वक्त गन्ने की फसल आती है अत: रात को गन्ने से झोपड़ी
बना कर पूजा की जाती है। इस दिन से ही
शादी तय करने तथा घर बनाने जैसे शुभ कार्य करने की शुरूआत होती है। ऐसा माना जाता है कि ग्यारस से भगवान विष्णु
चार महीने बाद निंद्रा से जाग जाते है। भगवान के सोने के पीछे की
मान्यता के बारे में मेरे ससुर जी का कहना है कि पहले आवागमन के साधन कम
थे, लोग गाँव में रहते थे अत: बारिश में मौसम खराब होने के
कारण बहुत दिक्कते आती होंगी इसलिए देव सो
गए हैं तीन- चार माह के लिए शादी में रोक लगा दी
गई होगी। दीपावली के बाद मौसम ठंडा और सुहाना हो जाता है तो देवों को उठा
दिया और शादियों कि अनुमति दे दी गई।
अन्त में बस इतना ही कहना चाहूँगी कि त्यौहार हर बार सभी
के लिए खुशियाँ लेकर आये यह जरूरी नहीं, आज न जाने
कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए इन त्योहारों का कोई मोल ना बचा हो मगर चलते रहना
ही जिंदगी है जो रुक गया उसका सफर वहीं खत्म हो जाया करता है। इसलिए यदि हो सके तो
पुरानी बातों को भूल कर आगे बढऩे का प्रयास कीजिये अगर अपनों के जाने के गम ने
आपसे त्यौहार की ख़ुशी छीनी है तब भी आपके अपने कई और भी हंै,
जो आपको इन त्योहारों के खुशनुमा माहौल में खुश देखना चाहते
हैं। कुछ और नहीं तो अपनों की खुशी के लिए ही सही जिंदगी में दर्द और गम को भुलाकर
आगे बढिय़े क्योंकि...
'जीने वालों जीवन छुक- छुक गाड़ी का
है खेल,
कोई कहीं पर बिछड़
गया किसी का हो गया मेल' ....
सम्पर्क:
द्वारा: डॉ. एस.के. सक्सेना, 27/1 गीतांजलि कॉम्पलेक्स, गेट न. 3 भोपाल
(म.प्र.)
Email- pallavisaxena80@gmail.com
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