- पंकज अवधिया
हरेली (हरियाली
अमावस्या) का पर्व वैसे तो पूरे
देश में मनाया जाता है पर छत्तीसगढ़ में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों के सामने नीम की शाखाएँ लगा देते है। यह मान्यता है कि नीम बुरी आत्माओं से रक्षा करता है। यह पीढिय़ों पुरानी परम्परा है पर पिछले कुछ सालों से इसे अन्ध-विश्वास बताने की मुहिम छेड़ दी गयी है। इसीलिये मैने इस विषय को विश्लेषण के लिये चुना है।
देश में मनाया जाता है पर छत्तीसगढ़ में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों के सामने नीम की शाखाएँ लगा देते है। यह मान्यता है कि नीम बुरी आत्माओं से रक्षा करता है। यह पीढिय़ों पुरानी परम्परा है पर पिछले कुछ सालों से इसे अन्ध-विश्वास बताने की मुहिम छेड़ दी गयी है। इसीलिये मैने इस विषय को विश्लेषण के लिये चुना है।
नीम का नाम लेते ही हमारे मन मे आदर का भाव आ जाता है
क्योंकि इसने पीढिय़ों से मानव जाति की सेवा की है और आगे भी करता रहेगा। आज नीम को
पूरी दुनिया में सम्मान से देखा जाता है। इसके रोगनाशक गुणों से हम सब परिचित हैं।
यह उन चुने हुये वृक्षों में से एक है जिनपर सभी चिकित्सा प्रणालियाँ विश्वास करती
हैं। पहली नजर में ही यह अजीब लगता है कि नीम को घर के सामने लगाना भला कैसे
अन्ध-विश्वास हो गया?
बरसात का मौसम यानि बीमारियों का मौसम। आज भी ग्रामीण
इलाकों में लोग बीमारी से बचने के लिये नीम की पत्तियाँ खाते हैं और इसे जलाकर
वातावरण को विषमुक्त करते है। नीम की शाखा को घर के सामने लगाना निश्चित ही आने
वाली हवा को रोगमुक्त करता है पर मैंने जो हरेली में नीम के इस अनूठे प्रयोग से
सीखा है वह आपको बताना चाहूँगा।
इस परम्परा ने वनस्पति वैज्ञानिक बनने से बहुत पहले ही
नीम के प्रति मेरे मन मे सम्मान भर दिया था। ऐसा हर वर्ष उन असंख्य बच्चों के साथ
होता है जो बड़ों के साये मे इस पर्व को मनाते हंै। पर्यावरण चेतना का जो पाठ घर
और समाज से मिलता है वह स्कूलों की किताबों से नहीं मिलता। हमारे समाज से बहुत से
वृक्ष जुड़े हुये हैं और यही कारण है कि वे अब भी बचे हुये हैं।
नीम के बहुत से वृक्ष हैं हमारे आस-पास हैं पर हम उनकी
देखभाल नहीं करते। हरेली में जब हम उनकी शाखाएँ एकत्र करते है तो उनकी कटाई-छटाई
हो जाती है और इस तरह साल-दर-साल वे बढ़कर हमें निरोग रख पाते हैं। यदि आप इस
परम्परा को अन्ध-विश्वास बताकर बन्द करवा देंगे तो अन्य हानियों के अलावा नीम के
वृक्षों की देखभाल भी बन्द हो जायेगी।
पिछले वर्ष मैं उड़ीसा की यात्रा कर रहा था। मेरे सामने
की सीट पर जाने-माने पुरातत्व विशेषज्ञ डाँ.सी.एस.गुप्ता बैठे थे। उन्होंने बताया
कि खुदाई में ऐसी विचित्र मूर्ति मिली है जिसमें आँखो के स्थान पर मछलियाँ बनी है।
उनका अनुमान था कि ये मूर्ति उस काल में हुयी किसी महामारी की प्रतीक है। मैंने
उन्हें बताया कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में हर बीमारी को राक्षस रूपी चित्र के
रूप मे दिखलाया गया है। वे प्रसन्न हुये और मुझसे उन ग्रंथों की जानकारी ली। पहले
जब विज्ञान ने तरक्की नहीं की थी और हम बैक्टीरिया जैसे शब्द नहीं जानते थे तब
इन्हीं चित्रों के माध्यम से बीमारियों का वर्णन होता रहा होगा। इन बीमारियों को
बुरी आत्मा के रूप मे भी बताया जाता था और सही मायने में ये बीमारियाँ किसी बुरी
आत्मा से कम नहीं जान पड़ती है। यदि आज हम बुरी आत्मा और बीमारी को एक जैसा मानें
और कहें कि नीम बीमारियों से रक्षा करता है तो यह परम्परा अचानक ही हमें सही लगने
लगेगी। मुझे लगता है कि नीम के इस प्रयोग को अन्ध-विश्वास कहना सही नहीं है।
हर वर्ष हरेली के दिन कई संस्थाओं के सदस्य गाँव-गाँव
घूमते है और आम लोगों की मान्यताओं व विश्वास को अन्ध-विश्वास बताते जाते हैं। एक
बार एक अभियान के दौरान एक बुजुर्ग मुझे कोने मे लेकर गये और कहा कि छत्तीसगढ़ की
मान्यताओं और विश्वासों को समझने के लिये एक पूरा जीवन गाँव मे बिताना जरूरी है।
मुझे उनकी बात जँची और इसने मुझे आत्मावलोकन के लिये प्रेरित किया।
1 comment:
Very apt and scientific... More appropriate for the current days..
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