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Jul 5, 2014

अपनी परंपराओं से फिर जुडऩा होगा

अपनी परंपराओं से

 फिर जुडऩा होगा

  - कृष्ण कुमार यादव


  मानव सभ्यता के आरंभ से ही प्रकृति के आगोश में पला और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सचेत रहा। पर जैसे-जैसे विकास के सोपानों को मानव पार करता गयाप्रकृति का दोहन व पर्यावरण से खिलवाड़ रोजमर्रा की चीज हो गई। ऐसे में आज समग्र विश्व में पर्यावरण असंतुलन चर्चा व चिंता का विषय बना हुआ है।जलवायु परिवर्तनभूस्खलनभूकंपबाढ़सूखा इत्यादि आपदाओं के कारण तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हो रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण सारी दुनिया आज पर्यावरण के बढ़ते खतरे से जूझ रही है। मनुष्य और पर्यावरण का सम्बन्ध काफी पुरानी और गहरा है। प्रकृति और पर्यावरणहम सभी को बहुत कुछ देते हैंपर बदले में कभी कुछ माँगते नहीं। पर इसके बावजूद हम रोज प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ किये जा रहे हैं और उनका ही शोषण करने लगते हैं। हमें हर किसी के बारे में सोचने की फुर्सत हैपर प्रकृति और पर्यावरण के बारे में नहीं। प्रकृति को हमने भोग की वस्तु समझ लिया है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि पर्यावरण के अस्तित्व पर जब खतरा आता है तो उसका खामियाजा मानव को ही भुगतना पड़ता है।
पर्यावरण असंतुलन के प्रति चेतना जाग्रत करने एवं धरती पर पर्यावरण को समृद्ध बनानेपर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को मानवीय रूप प्रदान करने हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में हर वर्ष 5 जून को 'विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य विभिन्न देशों के बीच पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना एवं पर्यावरण के प्रति राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक जागरूकता लाते हुए सभी को इसके प्रति सचेत व शिक्षित करना एवं पर्यावरण-संरक्षण के प्रति प्रेरित करना है। इस दिवस की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के द्वारा वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर आयोजित कांफ्रेंस में की गई थी। विश्व भर में इस दिन सतत् विकास की प्रक्रिया में आम लोगों को शामिल करने के मद्देनजर विश्व पर्यावरण दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैंजिनका मुख्य उद्देश्य विश्व समुदाय का ध्यान पर्यावरण और उससे जुड़ी राजनीति की ओर आकृष्ट करना होता है। 1972 में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का भी आरम्भ किया गया। गौरतलब है कि यह पहला ऐसा मौका थाजब विश्व पर्यावरण और उससे जुड़ी राजनीतिआर्थिक और सामाजिक समस्याओं पर इतने बड़े मंच पर चर्चा हुई थी। विश्व पर्यावरण दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से इस बात पर खास जोर दिया जाता है कि पर्यावरण और उससे जुड़े मुद्दों के प्रति आम धारणा बदलने में समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रतिवर्ष विभिन्न थीमों पर विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया जाता है।
बदलती जीवनशैलीउपभोग के तरीके एवं सीमित प्राकृतिक संसाधनों और पारस्थितिकी तंत्र पर बढऩे वाला दबाव - प्राकृतिक असंतुलन के ये सबसे बड़े कारण हैं। विकास की अंधी दौड़ में समाज पंरपराओं से कटता जा रहा है। एक समय हम नदियों को माँ समझते थे किंतु आज भावनाएँ बदल गई हैं। खुद के लाभ के लिए मानव पर्यावरण का दोहन कर रहा है। यहाँ तक कि प्रदूषण से कई जीवों का अस्तित्व संकट में है। हम नित धरती माँ को अनावृत्त किये जा रहे हैं। जिन वृक्षों को उनका आभूषण माना जाता हैउनका खात्मा किये जा रहे हैं। वृक्ष न सिर्फ हमारे पर्यावरण को शुद्ध करते हैंबल्कि जीवन के लिए उपयोगी प्राणवायु उपलब्ध कराते है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि पेड़-पौधों और वनस्पतियों के कारण ही हम जीवित हैं। वृक्ष शिव का काम भी करते हैंवे वायुमंडल की घातक जहरीली गैसों को स्वयं पी जाते हैं और हमें जीवन-वायु प्रदान करते है। सभी जानते हैं कि जिन देशों ने प्रकृति और पर्यावरण का अत्यधिक दुरुयोग व दोहन कियाउन्हें आपदाओं के रूप में प्रकृति का कोपभाजन भी बनना पड़ा। फिर भी विकास की इस अंधी दौड़ के पीछे धरती के संसाधनों का जमकर दोहन किये जा रहे हैं।
आबादी बढऩे से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा है और प्राकृतिक संसाधनों के स्त्रोत सीमित होने के कारण भविष्य को लेकर चिंताएँ बढ़ी हैं। इसके बावजूद हमने अंधाधुंध विकास की जगह वैकल्पिक समाधान को नहीं अपनाया है। टिकाऊ विकास की चुनौती आज भी हमारे सामने बनी हुई है। वैश्वीकरण की नव उदारवादी नीति ने हमारे सामने बहुत-सी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैंजिससे आर्थिक विकास के मॉडल लडख़ड़ाने लगे हैंं। खाद्य असुरक्षा ने न केवल गरीब देशोंबल्कि संपन्न देशों को भी परेशानी में डाल दिया है। जैव-विविधता से जुड़े संकटों ने भी आर्थिक विकास पर असर दिखाया है। आज हमारे सामने विकास बनाम पर्यावरण का मुद्दा है। हमारे लिए दोनों जरूरी हैंइसलिए समन्वित दृष्टिकोण के साथ विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना चाहिए। 
विकास व प्रगति के नाम पर जिस तरह से पर्यावरण को हानि पहुँचाई जा रही हैवह बेहद शर्मनाक है। हम जिस धरती की छाती पर बैठकर इस प्रगति व लम्बे-लम्बे विकास की बातें करते हैंउसी छाती को रोज घायल किये जा रहे हैं। हम कभी साँस लेना नहीं भूलतेपर स्वच्छ वायु के संवाहक वृक्षों को जरूर भूल गए हैं। यही कारण है कि नित नई-नई बीमारियाँ जन्म ले रही हैं। इन बीमारियों पर हम लाखों खर्च कर डालते हैंपर अपने पर्यावरण को स्वस्थ व स्वच्छ रखने के लिए पाई तक नहीं खर्च करते। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वनस्पतियों का सिर्फ रंग ही हरा नहीं होताउन्हीं से हमारा जीवन भी हरा-भरा है। हमारे जीवन-दर्शन में प्राचीन काल से इनकी व्यापक उपस्थिति दर्ज है। अथर्ववेद औषधीय दृष्टि से जड़ी-बूटियों की महत्ता के बहाने वनस्पतियों की अनिवार्यता को स्थापित करता है तो श्रीराम की कथा में वनों और वहाँ के जीवों के माध्यम से अद्भुत दर्शन निर्मित हुआ है। इसी तरह श्रीकृष्ण तो कदंब की डालों पर ही नहीं विराजतेबल्कि बांसुरी के रूप में वनस्पति की महत्ता बताते हैं। वट सावित्री की कथा से लेकर तमाम धार्मिक-सांस्कृतिक आख्यान तक हमें पर्यावरण-संरक्षण की शिक्षा देते हैं और हमारे भीतर इसकी एक दृढ़ मनोभूमि भी रचते चलते हैं।
भारतीय परम्परा में पेड़-पौधों को परमात्मा का प्रतीक मान कर उनकी पूजा का विधान बनाया गया है। वैदिक ऋचाओं में इनके महत्त्व को बताया गया है। शास्त्रों में पृथ्वीआकाशजलवनस्पति एवं औषधि को शांत रखने को कहा गया है। इसका आशय यह है कि इन्हें प्रदूषण से बचाया जाए। यदि ये सब संरक्षित व सुरक्षित होंगे तो निश्चित रूप से जीवन और जगत भी सुरक्षित व सुखी रह सकेगा। वृक्ष न सिर्फ धरती के आभूषण हैं बल्कि मानवीय जीवन का आधार भी हैं। वृक्ष हमें प्रत्यक्ष रूप से फल-फूलचाराकोयलादवातेल इमारती लकड़ी के साथ जलाने की लकड़ी इत्यादि प्रदान करते हैं। वृक्ष से हमें वायु शुद्धीकरणछायापशु प्रोटीनआक्सीजन के अलावा भी कुछ ऐसी चीजें मिलती हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए हमें लाखों रूपये खर्च करने पड़ते। एक सर्वे के अनुसार एक वृक्ष अपने जीवनकाल में जितनी वायु को शुद्ध करता है उतनी वायु को अप्राकृतिक रूप अर्थात मशीन से शुद्ध किया जाय तो लगभग 5 लाख रूपये खर्च करना पड़ेगा। इसी तरह वृक्ष छाया के रूप में 50 हजारपशु-प्रोटीन चारा के रूप में 20 हजारआक्सीजन के रूप में 2.5 लाखजल सुरक्षा चक्र के रूप में 5 लाख एवं भूमि सुरक्षा के रूप में 2.5 लाख के साथ हमारे स्वस्थ जीवन के लिए कुल 15 लाख 70 हजार रुपये का लाभ पहुँचाता है। पर आज का मानव इतना निष्ठुर हो चुका है कि वृक्षों के इतने उपयोगी होने के बाद भी थोड़े से स्वार्थ व लालच में उन्हें बेरहमी से काट डालता है। जरूरत है कि लोग इस मामले पर गम्भीरता से सोचें एवं संकल्प लें कि किसी भी शुभ अवसर पर वे वृक्षारोपण अवश्य करेंगे अन्यथा वृक्षों के साथ-साथ मानव-जीवन भी खतरे में पड़ जायेगा।
विश्व पर्यावरण दिवस पर लम्बे-लम्बे भाषणदफ्ती पर स्लोगन लेकर चलते बच्चे,पौधारोपण के कुछ सरकारी कार्यक्रम.... अखबारों में पर्यावरण दिवस को लेकर यही कुछ दिखेगा और फिर हम भूल जायेंगे। एक दिन बिटिया अक्षिता बता रही थी कि स्कूल में टीचर ने पर्यावरण असंतुलन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पहले जंगल होते थे तो खूब हरियाली होतीबारिश होती और सुन्दर लगता पर अब जल्दी बारिश भी नहीं होतीखूब गर्मी भी पड़ती है...लगता है भगवान जी नाराज हो गए हैं। इसलिए आज सभी लोग संकल्प लेंगे कि कभी भी किसी पेड़-पौधे को नुकसान नहीं पहुँचायेंगेपर्यावरण की रक्षा करेंगेअपने चारों तरफ खूब सारे पौधे लगायेंगे और उनकी नियमित देख-रेख भी करेंगे। अक्षिता के नन्हे मुँह से कही गई ये बातें मुझे देर तक झकझोरती रहीं। आखिर हम बच्चों में प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के संस्कार क्यों नहीं पैदा करते। मात्र स्लोगन लिखी तख्तियाँ पकड़ाने से पर्यावरण का उद्धार संभव नहीं है। इस ओर सभी को संजीदगी से सोचना होगा। निश्चितत: भारत समेत पूरे विश्व को इस दिवस को एक पवित्र अभियान से जोड़ते हुए न सिर्फ वृक्षारोपण की तरफ अग्रसर होना चाहिए बल्कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में भी प्रभावी कदम उठाने होंगे।
पर्यावरण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना ही नहीं हैबल्कि भूमि प्रदूषणवायु प्रदूषणजल प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। हम प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम दोहन करें और प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करें। हर इंसान को धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगीतभी पर्यावरण संतुलन की दिशा में कुछ ठोस किया जा सकता है। जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं वह पर्यावरण संतुलन के लिए खतरनाक है। पर्यावरण असंतुलन के कारण ही सुनामी और भंयकर आँधी-तूफान आते हैं। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा हैजिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। इनकी घटती संख्या पर्यावरण के लिए घातक है।
स्वच्छ पर्यावरण जीवन का आधार है और इसके बिना जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। पर्यावरण जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ हैइसीलिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे। वास्तव में देखा जाय तो पर्यावरण शुद्ध रहेगा तो आचरण भी शुद्ध रहेगा। लोग निरोगी होंगे और औसत आयु भी बढ़ेगी। दुर्भाग्यवश पृथ्वीपर्यावरणपेड़-पौधे हमारे लिए दिनचर्या नहीं अपितु पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर रह गए हैं। ऐसे में यदि मनुष्य ने अपनी दिनचर्या प्रकृति के अनुरूप नहीं बनाया और प्रदूषण इसी तरह बढ़ता रहा तो तमाम सभ्यताओं का अस्तित्व खत्म होने में देर नहीं लगेगी।

सम्पर्क: निदेशक डाक सेवाएँ इलाहाबाद परिक्षेत्र,  इलाहाबाद (उ. प्र.) 211001 मो. 08004928599                                                                                         

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