भौरें भी गा रहे
- मंजुल भटनागर
किरण
समेटे उजाले
आ
गए द्वार पाहुने
सतरंगी
चूनर है
कलियों
के हैं घाघरे
द्वार
उद्यान कलरव है
भौरें
भी गा रहे वाद्य रे
जाग
गई चारों दिशाएँ
जाग
गए मन फाग रे
जड़
चेतन प्रगट हुए
धूप
फैली शाख रे
गाँव की पगडण्डी आबाद
रहट
गिर्द बैल घूमे
दुनिया
घूमे घाम रे
भोर
तकती दूर से
रौशनी
भरी धूप- सी
सुख
दु:ख सा जीवन भी
आज
है आतप कल सबेरा
जग
की यही रीत
सब
गुने, मन जाग रे...
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