सबसे बेहतर ये साल रहे
- गिरीश पंकज
वो
जैसा भी था चला गया,
अब जो आए खुशहाल रहे,
बस
यही दुआ हम करते हैं, सबसे
बेहतर ये साल रहे।।
बदले
मन हर इक पापी का, ये
बलात्कार अब रुक जाए
क्यों
तने रहें हम अपनों से, ये
सर थोड़ा-सा झुक जाए
ये
दिल अपना घर पावन हो, क्यों
जीवन में जंजाल रहे
बस
यही दुआ हम करते हैं सबसे बेहतर ये साल रहे।।
न
धोखा दे कोई हमको, ना
झूठे वादे करें कभी
हम
सच की राह पे चलें सदा, जुल्मी
से क्यों कर डरें कभी,
सबके
हिस्से में हो थाली, हर
इक जन मालामाल रहे
बस
यही दुआ हम करते हैं, सबसे
बेहतर ये साल रहे।
जो
अपने सेवक हैं उनको, सेवा
का कुछ तो फन आए
उनके
जीवन में सच्चाई, थोड़ा-सा
अपनापन आए
ये
लोग रहें सच्चे मन से, क्यों
कर कोई नक्काल रहे
बस
यही दुआ हम करते हैं सबसे बेहतर ये साल रहे।
दुनिया
में प्रेम रहे जि़दा, नफ़रत
की कोई ना धारा हो,
ये
देश हमे प्यारा लेकिन सारा संसार हमारा हो
ही दुआ हम करते हैं सबसे बेहतर ये साल
रहे
हम
सही राह के राही हों, सबको
नव राह दिखाएँगे,
जो
भटक रहे है उन सबको, हम
बार-बार समझाएँगे।
जीवन
हो एक सीधा रस्ता, क्यों
अपनी टेढ़ी चाल रहे।
बस
यही दुआ हम करते हैं सबसे बेहतर ये साल
रहे।
सम्पर्क: संपादक, सद्भावना दर्पण (मासिक), 28 प्रथम तल, एकात्म परिसर, रजबंधा मैदान रायपुर.
छत्तीसगढ़. 492001
मो.
09425212720 पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली (2008-2012)छ: उपन्यास, बारह व्यंग्य संग्रह सहित बयालीस पुस्तके
प्रकाशित, Email-girishpankaj1@gmail.com
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