- संजय वर्मा
पहले
के ज़माने में पापड़ बनानाहर घर मे जारी था। पापड़ के आटे में नमक आदि का मिश्रण
अनुपात किसी बुज़ुर्ग महिला से पूछा जाता था। वहाँ उनकी सलाह को सम्मान भी दिया
जाता था। पापड़ के आटे को तेल लगाकर घन (लोहे के हथोड़े ) से पीटा जाता था।
आस-पड़ोस की महिलाएँ अपने-अपने घर से बेलन-पाटले लेकर आतीं व एक दूसरे को सहयोग
करने की भावना से हाथ बँटातीं। पापड़ बेलते समय दु:ख -सुख की बातें आपस मे बाँटा
करतीं, इसमें मन
की भावना व सहयोग को अच्छी तरह से समझा जाता था। पापड़ के लोए भी चखने हेतु बाँटे
जाते थे, बाद
में पापड़ भी खाने हेतु दिए जाते थे, किन्तु आजकल तो हर घर में पापड़ का बनना कम
होता जा रहा है। कौन मगज़मारी करे? घर में पापड़ बनाने की, लोग-बाग टी.वी. से ही
चिपके रहते हैं। आस-पड़ोस में कौन रहता है ,ये भी लोग ठीक तरीके से नहीं जानते।
भागदौड़ की व्यस्त ज़िन्दगी मे घरों मे साँझा प्रयासों के श्रम से
निर्मित पाक कलाएँ भी अपना अस्तित्व
धीरे-धीरे खोती जा रही हैं। रोजगार हेतु आज ‘अच्छों-अच्छों को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं’
की कहावत भी काफी मायने रख रही है; क्योंकि ‘पापड़ बेलना’ मेहनत का कार्य है।
अंधश्रद्धा
निर्मूलन संस्थाएँ अन्धविश्वास के उन्मूलन में लगी हुई उनका मानना है की
अन्धविश्वास के बल पर भोले-भाले लोगों को ठगने वाले यदि एक पापड़ भी अपनी अपनी
अन्धविश्वास की शक्ति से तोड़ के दिखला दें तो वे मान जाएँगे।
पहले
गाँव-देहातों मे टूरिंग टाकिज हुआ करते थे; जिनमें मध्यांतर के दौरान खाने-पीने
की चीजों में पापड़ भी बिकते थे। ड्राई पापड़, फ्राईपापड़ का भी उन लोगों में शौकिया तौर पर
अच्छा खासा चलन है; जो पेग पीते वक्त चखने में इसका इस्तमाल करते हैं। पापड़ों के
भी अपने तेवर व स्वाद होते हैं। चरका पापड़, मीठा पापड़, चने, मूँग, उड़द ,मक्का, चावल, आम के रस को सुखाकर पापड़, आदि कई पापड़ों की बिरादरी
है। अमिताभ बच्चन ने तो कच्चा पापड़ -पक्का पापड़ के तेज़ी से बोलने के नुस्खे को
काफी चर्चा में ला दिया था। लोग इसे सही उच्चारण से तेजी से बोलने में आज भी
गड़बड़ा जाते हैं। शादी
ब्याह के पहले घरों में पापड़ बनाये जाने का भी चलन था। शायद ये शादी ब्याह में सहयोग
हेतु आस-पड़ोस से सहयोग लेने हेतु चर्चा एक प्रयोग रहा हो। महँगाई के बढऩे से
जायकेदार पापड़ों की दूरियाँ भोजन में नहीं परोसे जाने से घट से गई हैं। पापड़ में
औषधीय गुण भी होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होते हैं। कुछ
महिलाएँ सब्जियाँ महँगी होने पर पापड़ की सब्जी बनाकर पति महोदय को पाक कला के
स्वाद चखा जाती हैं। उलेखनीय है की बेलन भी महिलाओं का अपनी बात मनवाने का अचूक
शस्त्र संकेत स्वरूप शुरू से ही रहा है।
भ्रष्टाचार, महँगाई को रोकने के
लिए कई वर्षो से लोगों को पापड़ बेलने पड़ रहे है। पापड़ को भी उम्मीद है कि कभी न
कभी तो ये महँगाई रुकेगी ही, भय है कहीं पापड़ आन्दोलन का हिस्सा न बन जाए।
लोग-बाग टी.वी पर सभी वस्तुएँ अपने-अपने हिसाब से विज्ञापनों के सहारे बेच ही रहे हैं।
बेचारा पापड़ अब न जाने कैसे वंचित हो गया टी .वी .से। पापड़ बनाने की नीति किसी
चाणक्य-नीति से कम नहीं है, किन्तु वास्तव में देखा जाए तो गाँव -शहरों के
घरों में पहले साँझा प्रयास से पापड़ बनाने का चलन कम सा हो गया है। महिला सशक्तीकरण
में भी साँझा प्रयास के कार्य काफी मायने रखते हैं। इसमें सशक्तीकरण को बल मिलता
है। आपस में विचारों के मिलने से समस्याओं के समाधान हेतु सहयोगात्मक भावनाएँ
प्रबल हो उठती हैं। हर घर में सहयोगात्मक भावनाएँ पुन: जाग्रत हों यही पापड़ से भी
हमारी विनती है। तो क्यों न शुरू करें पापड़ बनाना और खाना और दूसरों को भी
खिलाना। पापड़ जिंदाबाद।
सम्पर्क:
दृष्टि 125, शहीद
भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार (म.प्र.) 454446 Email-antriksh.sanjay@gmail.com
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