कल मैंने आपको कुछ बंदरों की कहानी
पढ़वाई थी, जो कुँए में दिख रहे चंद्रमा को वास्तविक चंद्रमा समझकर उसे निकालने का
प्रयास करते हैं लेकिन पेड़ की डाली टूट जाने के कारण बेचारे कुँए में गिरकर मर
जाते हैं। कहानी का शीर्षक था 'मूर्ख बंदर और चंद्रमा’ । कहानी
का ऐसा शीर्षक निष्प्रयोजन ही दिया गया था। वस्तुत: किसी भी जीव को मूर्ख नहीं
कहना चाहिए। जिन जीवों जैसे गधा आदि को हम बहुधा मूर्ख कहते हैं वे मानव जाति के
बहुत काम आते हैं और हर प्रकार के कष्टों को सहकर भी मानवों के लिए अति उपयोगी
सिद्ध होते हैं!
बच्चों की कहानियों में आमतौर पर
विभिन्न जंतुओं के लिए 'चालाक लोमड़ी’ , 'धूर्त सियार’ , 'कपटी मगरमच्छ’ जैसी उपमाओं का प्रयोग किया जाता है
लेकिन इसका उद्देश्य केवल कहानी को बच्चों (और बड़ों) के लिए रोचक और बोधगम्य
बनाना होता है, किसी
जन्तु विशेष को अन्य जंतुओं से हीन दिखाना या उसका अपमान करना नहीं।
दो बंदर एक दिन घूमते-घूमते एक गाँव
के समीप पहुँच गए और उन्होंने वहाँ सुन्दर व मीठे प्रतीत होने वाले फलों से लदा
हुआ एक पेड़ देखा।
'इस पेड़ को देखो!’ एक बंदर ने दूसरे से चिल्लाकर कहा- 'ये फल
कितने सुंदर दिख रहे हैं। ये अवश्य ही बहुत स्वादिष्ट होंगे! चलो हम दोनों पेड़ पर
चढ़कर फल खाएँ’ ।
दूसरा बंदर बुद्धिमान था। उसने कुछ
सोचकर कहा- 'नहीं, नहीं। एक
पल के लिए सोचो। यह पेड़ गाँव के इतने समीप लगा है और इसके फल इतने सुंदर और पके
हुए हैं, लेकिन
यदि ये अच्छे फल होते तो गाँव वाले इन्हें ऐसे ही क्यों लगे रहने देते? लोगों ने
इन्हें अवश्य ही तोड़ लिया होता! लेकिन ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ
भी नहीं लगाया है। इन्हें मत खाओ। मुझे विश्वास है कि ये फल खाने लायक नहीं हैं’ ।
'कैसी बेकार की बातें कर रहे हो!’ पहले बंदर ने कहा- 'मुझे तो
इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो फल खाने के लिए पेड़ पर चढूँगा’ ।
'जैसी तुम्हारी इच्छा’ बुद्धिमान् बन्दर ने कहा- 'मैं खाने
के लिए कुछ और ढूँढता हूँ’ ।
पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा
और उसने जी भर के फल खाए; लेकिन वे फल उसका अंतिम भोजन बन गए क्योंकि फल स्वादिष्ट
तो थे ;परन्तु जहरीले थे। दूसरा बंदर जब कहीं और से खा-पी कर आया तो उसने पेड़ के
नीचे अपने मित्र को मरा हुआ पाया। उसे यह देखकर बहुत दु:ख हुआ लेकिन वह तो पहले ही
अपने मित्र को सावधान कर चुका था।
अच्छे विचार- बुरे विचार
'मुझे कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है. मैं हर समय
उन चीज़ों के बारे में सोचता रहता हूँ जिनका निषेध किया गया है। मेरे मन में उन
वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा होती रहती है जो वर्जित हैं। मैं उन कार्यों को
करने की योजनाएँ बनाते रहता हूँ जिन्हें करना मेरे हित में नहीं होगा। मैं क्या करूँ?’ - शिष्य ने गुरु से उद्विग्नतापूर्वक
पूछा।
गुरु ने शिष्य को पास ही गमले में
लगे एक पौधे को देखने के लिए कहा और पूछा कि वह क्या है। शिष्य के पास उत्तर नहीं
था।
'यह बैलाडोना का विषैला पौधा है। यदि तुम
इसकी पत्तियों को खा लो तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन इसे देखने मात्र से यह
तुम्हारा कुछ अहित नहीं कर सकता। उसी प्रकार, अधोगति को ले जाने वाले विचार तुम्हें तब तक
हानि नहीं पहुँचा सकते जब तक तुम उनमें वास्तविक रूप से प्रवृत्त न हो जाओ । (hindizen.com
से)
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