- श्याम सुन्दर अग्रवाल
1.कर्ज़
आशुतोष और मैं दोनों सहकर्मी थे।
दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र के दफ्तर में नियुक्ति थी। छोटा-सा नगर था। सुविधाएँ बहुत
कम थीं। इतनी दूर कि नियुक्ति को विभाग में सजा के तौर पर ही देखा जाता था।
खाना हम दोनों में से किसी को भी
पकाना नहीं आता था। इसलिए हमने दफ्तर के पास ही एक चाय वाले को हमारे लिए खाना
बनाने के लिए मना लिया था। सुबह नाश्ता हम अपने कमरे में ही कर लेते; लेकिन दोपहर
और रात्रि के खाने के लिए चाय वाले के पास ही जाना पड़ता।
चाय वाले ने पी.सी.ओ. भी लगा रखा था।
आसपास के लोग उसके पी.सी.ओ पर आकर फोन कर लेते थे। रात को जब भोजन करने जाते तो
मैं भी वहीं से कभी-कभार घर फोन कर लेता। लेकिन आशुतोष हर रात घर पर फोन करता।
मैंने कई बार उससे पूछा भी कि वह रोज घर पर ऐसी क्या बात करता है? लेकिन वह
बात टाल जाता। वह खाना खाने से पहले फोन जरूर करता।
मैं एक बात बराबर नोट कर रहा था कि
आशुतोष नाश्ते व दोपहर के खाने के वक्त सुस्त- सा दिखता लेकिन रात का खाना वह
खुलकर खाता।
एक रात पी.सी.ओ का फोन खराब था। फोन
खराब देख आशुतोष बेचैन हो गया। उसने भोजन भी अनमने होकर ही किया। कमरे में वापस
जाते वक्त मैंने कहा, 'आशु यार, कुछ तो है जो तुम मुझसे छिपा रहे हो? क्या तुम
मुझे अपना मित्र नहीं मानते?’
'नहीं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं। बात तो बहुत छोटी-सी है, छुपाने
लायक भी कुछ नहीं है।
'फिर तुम बताते क्यों नहीं कि तुम रोज घर पर
क्या बात करते हो?’
'बात तो कुछ नहीं यार! बस एक कर्ज़ है; जिसे
उतारने का प्रयास करता रहता हूँ।‘
'कैसा कर्ज़?’
'माँ का कर्ज़ है?’
'माँ का कर्ज़! यार माँ का भी कोई कर्ज़ होता
है?’
'हाँ, मुझ पर तो माँ का ही कर्ज़ है बचपन से माँ जब
तक मुझे खाना नहीं खिला देती थी, खुद खाना नहीं खाती थी। जब से मैं कमाने लगा
हूँ, मैंने
भी नियम बना लिया कि पहले माँ भोजन करेगी ,फिर मैं । बस इसलिए ही फोन कर माँ से
पूछ लेता हूँ कि उसने भोजन कर लिया या नहीं। वह 'हाँ’ कह
देती है तो खाना स्वाद लगता है।‘
मैंने देखा आशुतोष की आँखें नम हो गई
थीं।
2.असली मुज़रिम

बात बड़े अधिकारियों तक पहुँची।
आनन-फानन में कुछ पुलिस वालों को सस्पैंड कर दिया गया। मंत्री को प्रेस के सामने
आकर घटना पर दु:ख व्यक्त करना पड़ा। उच्चस्तरीय जाँच की बात भी कहनी पड़ी।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने ऊपर से मिली
लानत को थानेदार तक पहुँचा दिया।
'तुमसे कितनी बार कहा कि ऐसी शर्मनाक स्थिति
पैदा न होने दिया करो। मंत्री जी ने आज मुझे क्या-क्या नहीं कहा। सरकार और पुलिस
की कितनी बदनामी हुई है।‘
'सॉरी सर! समझाता तो बहुत हूँ, पर गुस्से
में या फिर किसी खास आदमी के कहने पर कर बैठते हैं सिपाही कुछ गलत।‘
'मुझे पता है खास हालात में ऐसा हो जाता है।
पर कितनी बार कहा है कि कुशल अपराधियों की तरह अपराध का कोई सबूत न छोड़ो। अब ये
वीडियो सामने न आया होता तो मुकरना कितना आसान हो जाता। पहले तो मैंने घटना से साफ
इंकार कर ही दिया था।‘
'ऐसी स्थिति के लिए ये वीडियो वाले ही
जिम्मेदार हैं सर,
नहीं तो’
'हाँ, इस असली मुजरिम को ढूँढ़ो और ऐसी सज़ा दो कि
आगे से कोई ऐसा करने से पहले सौ बार सोचे।‘ अधिकारी
ने दृढ़ता से कहा।
3.टूटी ट्रे

सत्तर वर्ष की उम्र में अब इतनी
फुर्ती तो थी नहीं कि बहू के देखने से पहले, किसी तरह ट्रे और चाय के कपों को छिपा लेते।
बहू उनके सामने आ खड़ी हुई थी, 'बाबू जी, क्या बात
आज दो कप चाय?’
'नहीं बेटी, चाय तो एक ही कप बनाई थी, उसे ही दो
कपों में डाल लिया।‘ गले से
डरी हुई- सी आवाज़ निकली।
'और बाबू जी, यह टूटी हुई ट्रे! आप इसे बार-बार प्रयोग न
करें, इसलिए
यह तो मैंने डस्ट-बिन में डाल दी थी, वहाँ से भी निकाल ली आपने।‘
'वो क्या है कि बेटी’ उनसे कुछ कहते नहीं बना। फिर थोड़ा
रुक कर बोले, 'मैंने
इसे साबुन लगा कर धो लिया था।‘
अचानक पता नहीं क्या हुआ कि बहू का
स्वर कुछ नर्म हो गया, 'बाबू जी, इस टूटी हुई ट्रे में क्या खास है, मुझे भी
तो पता चले’ ।
सिर झुकाए बैठे ही किशोर चंद जी बोले, 'बेटी, यह ट्रे
तुम्हारी सास को बहुत पसंद थी; इसलिए हम सदा इसी ट्रे का प्रयोग करते थे।
दोनों शूगर के मरीज थे। पर लाजवंती को फीकी चाय स्वाद नहीं लगती थी। उसकी चाय
थोड़ी चीनी वाली होती। इस ट्रे के दोनो तरफ फूल बने हैं, एक तरफ
बड़ा, दूसरी
ओर छोटा। हममें से चाय कोई भी बनाता, लाजवंती का कप बड़े फूल की ओर रखा जाता ,ताकि
पहचान रहे’
'मगर आज ये दो कप?’
'आज हमारी शादी की सालगिरह है बेटी। इस बड़े
फूल की ओर रखे आधा कप चाय में चीनी डाल कर लाया हूँ , लग रहा था
जैसे वह सामने बैठी पूछ रही है 'चाय में चीनी डाल कर लाये हो न?’ कहते हुए किशोर चंद जी का गला भर
आया।
थोड़ी देर कमरे में खामोशी छाई रही। फिर किशोर चंद जी ने चाय के कपों को ट्रे
में से उठा कर मेज पर रख दिया। फिर ट्रे उठाकर बहू की ओर बढ़ाते हुए कहा, 'ले, बेटी, इसे
डस्ट-बिन में डाल दे, टूटी हुई ट्रे घर में अच्छी नहीं लगती।‘
बहू से ट्रे पकड़ी नहीं गई। उसने
ससुर की ओर देखा। वृद्ध आँखों से अश्रु बह रहे थे।
संपर्क: 575, गली नं-5, प्रतापसिंह
नगर, कोटकपूरा-151204 (पंजाब)
फोन नं. 01635-222517
No comments:
Post a Comment