मिरेकल वूमेन
मेक्सिको में कार्ला फ्लोर्स को 'मिरेकल वूमेन' कहकर पुकारा जाता है और इनकी तस्वीर देखकर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि क्यों इन्हें 'मिरेकल वूमेन' कहा जाता है।
मेक्सिको में कार्ला फ्लोर्स को 'मिरेकल वूमेन' कहकर पुकारा जाता है और इनकी तस्वीर देखकर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि क्यों इन्हें 'मिरेकल वूमेन' कहा जाता है।
इनके साथ घटित हुआ हादसा बेहद दर्दनाक था। तीन बच्चों की मां कार्ला सिनोलोआ के कलिआकन में सड़क पर स्ट्रीटफूड बेच रही थी। अचानक एक तेज धमाका हुआ और उनके मुंह से कुछ चीज काफी तेजी से टकराया। कार्ला को उस जगह काफी तेज जलन और दर्द महसूस हुआ। कुछ ही देर में कार्ला बेहोश हो गई। जब कार्ला को होश आया तो उन्होंने खुद को कलिआकन के एक अस्पताल में पाया। डॉक्टरों ने जब उसके चेहरे का एक्स- रे किया तो वे चकित रह गए कि चेहरे में एक जिंदा ग्रेनेड धंसा हुआ था, जो किसी भी वक्त फट सकता था। बमुश्किल सांस ले पा रही कार्ला के जबड़े के बीच फंसे हुए ग्रेनेड को निष्क्रिय किया गया। कई घण्टों की अथक मेहनत और सूझबूझ के बाद डॉक्टर कार्ला को बचाने में कामयाब हो गए। कार्ला ने अपने आधे से अधिक दांतों को खो दिया है, लेकिन उसे खुशी है कि वह जिंदा बच गई।
शांति का नोबेल तीन महिलाओं के नाम
प्रसन्नता की बात है कि इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से तीन महिलाओं के नाम घोषित किया गया है। तीनों महिलाओं को यह पुरस्कार महिलाओं की सुरक्षा और महिला अधिकारों के लिए उनके अहिंसक संघर्ष के लिए दिया जाएगा। इन तीनों महिलाओं में पहली हैं लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉन्सन सरलीफ जो लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित अफ्रीका की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने लाइबेरिया में शांति स्थापना में, आर्थिक एवं सामाजिक विकास को बढ़ावा देने में, और महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में योगदान दिया है।
दूसरी महिला हैं अफ्रीकी सामाजिक कार्यकर्ता लेमाह जीबोवी जिन्होंने लाइबेरिया में लम्बे समय से जारी लड़ाई के अंत के लिए तथा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए सभी जाति एवं धर्म की महिलाओं को संगठित एवं एकजुट किया।
और तीसरी हैं यमन की तवाक्कु ल करमान जिन्होंने यमन में लोकतंत्र एवं शांति तथा महिला अधिकारों के लिए संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
जेन गुरु जंगल की पथरीली ढलान पर अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे शिष्य का पैर फिसल गया और वह लुढ़कने लगा। वह ढलान के किनारे से खाई में गिर ही जाता लेकिन उसके हाथ में बाँस का एक छोटा वृक्ष आ गया और उसने उसे मजबूती से पकड़ लिया बाँस पूरी तरह से मुड़ गया लेकिन न तो जमीन से उखड़ा और न ही टूटा शिष्य ने उसे मजबूती से थाम रखा था और ढलान पर से गुरु ने भी मदद का हाथ बढ़ाया वह सकुशल पुन: मार्ग पर आ गया।
आगे बढ़ते समय गुरु ने शिष्य से पूछा 'तुमने देखा गिरते समय तुमने बाँस को पकड़ लिया था वह बांस पूरा मुड़ गया लेकिन फिर भी उसने तुम्हें सहारा दिया और तुम बच गए।'
'हाँ' शिष्य ने कहा।
गुरु ने बाँस के एक वृक्ष को पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और कहा 'बाँस की भांति बनो' फिर बाँस को छोड़ दिया और वह लचककर अपनी जगह लौट गया।
बलशाली हवाएं बाँसों के झुरमुट को पछाड़ती हैं लेकिन यह आगे- पीछे डोलता हुआ मजबूती से धरती में जमा रहता है और सूर्य की ओर बढ़ता है। वही इसका लक्ष्य है। वही इसकी गति है, इसमें ही उसकी मुक्ति है, तुम्हें भी जीवन में कई बार लगा होगा कि तुम अब टूटे तब टूटे ऐसे कई अवसर आये होंगे जब तुम्हें यह लगने लगा होगा कि अब तुम एक कदम भी आगे नहीं जा सकते अब जीना व्यर्थ है।
'जी ऐसा कई बार हुआ है।' शिष्य बोला
'ऐसा तुम्हें फिर कभी लगे तो इस बाँस की भांति पूरा झुक जाना, लेकिन टूटना नहीं। यह हर तनाव को झेल जाता है, बल्कि यह उसे स्वयं में अवशोषित कर लेता है और उसकी शक्ति का संचार करके पुन: अपनी मूल अवस्था पर लौट जाता है।'
जीवन को भी इतना ही लचीला होना चाहिए।
(www.hindizen.com से )
शांति का नोबेल तीन महिलाओं के नाम
प्रसन्नता की बात है कि इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से तीन महिलाओं के नाम घोषित किया गया है। तीनों महिलाओं को यह पुरस्कार महिलाओं की सुरक्षा और महिला अधिकारों के लिए उनके अहिंसक संघर्ष के लिए दिया जाएगा। इन तीनों महिलाओं में पहली हैं लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉन्सन सरलीफ जो लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित अफ्रीका की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने लाइबेरिया में शांति स्थापना में, आर्थिक एवं सामाजिक विकास को बढ़ावा देने में, और महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में योगदान दिया है।
दूसरी महिला हैं अफ्रीकी सामाजिक कार्यकर्ता लेमाह जीबोवी जिन्होंने लाइबेरिया में लम्बे समय से जारी लड़ाई के अंत के लिए तथा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए सभी जाति एवं धर्म की महिलाओं को संगठित एवं एकजुट किया।
और तीसरी हैं यमन की तवाक्कु ल करमान जिन्होंने यमन में लोकतंत्र एवं शांति तथा महिला अधिकारों के लिए संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
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बाँस की तरह लचीला बनोजेन गुरु जंगल की पथरीली ढलान पर अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे शिष्य का पैर फिसल गया और वह लुढ़कने लगा। वह ढलान के किनारे से खाई में गिर ही जाता लेकिन उसके हाथ में बाँस का एक छोटा वृक्ष आ गया और उसने उसे मजबूती से पकड़ लिया बाँस पूरी तरह से मुड़ गया लेकिन न तो जमीन से उखड़ा और न ही टूटा शिष्य ने उसे मजबूती से थाम रखा था और ढलान पर से गुरु ने भी मदद का हाथ बढ़ाया वह सकुशल पुन: मार्ग पर आ गया।
आगे बढ़ते समय गुरु ने शिष्य से पूछा 'तुमने देखा गिरते समय तुमने बाँस को पकड़ लिया था वह बांस पूरा मुड़ गया लेकिन फिर भी उसने तुम्हें सहारा दिया और तुम बच गए।'
'हाँ' शिष्य ने कहा।
गुरु ने बाँस के एक वृक्ष को पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और कहा 'बाँस की भांति बनो' फिर बाँस को छोड़ दिया और वह लचककर अपनी जगह लौट गया।
बलशाली हवाएं बाँसों के झुरमुट को पछाड़ती हैं लेकिन यह आगे- पीछे डोलता हुआ मजबूती से धरती में जमा रहता है और सूर्य की ओर बढ़ता है। वही इसका लक्ष्य है। वही इसकी गति है, इसमें ही उसकी मुक्ति है, तुम्हें भी जीवन में कई बार लगा होगा कि तुम अब टूटे तब टूटे ऐसे कई अवसर आये होंगे जब तुम्हें यह लगने लगा होगा कि अब तुम एक कदम भी आगे नहीं जा सकते अब जीना व्यर्थ है।
'जी ऐसा कई बार हुआ है।' शिष्य बोला
'ऐसा तुम्हें फिर कभी लगे तो इस बाँस की भांति पूरा झुक जाना, लेकिन टूटना नहीं। यह हर तनाव को झेल जाता है, बल्कि यह उसे स्वयं में अवशोषित कर लेता है और उसकी शक्ति का संचार करके पुन: अपनी मूल अवस्था पर लौट जाता है।'
जीवन को भी इतना ही लचीला होना चाहिए।
(www.hindizen.com से )
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