सार्थक श्रम
नि:संदेह आपका श्रम अति- सार्थक है, यह उदंती के अंकों को देखकर लगता है। मुखपृष्ठ की नयनाभिराम छवि और विविधता लिए रचना सामग्री आपके चयन और सम्पादन की गवाही देती हैं । कभी- कभी गजले भी छापा कीजिए। बधाई
सम्पूर्ण पत्रिका
उदंती में साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा कहानी, कविता, व्यंग्य तथा लघुकथाओं के साथ जिस प्राथमिकता के साथ अन्य विषयों को भी स्थान दिया जाता है वह काबिले तारीफ है। खासकर पर्यावरण, पर्यटन, संस्कृति, कला आदि । साथ ही जीवन के ज्वलंत मुद्दों पर अनकही में जो सवाल उठाए जाते हैं वह पत्रिका को एक संम्पूर्ण पत्रिका बनाती है। नि:संदेह आपका प्रयास प्रशंसनीय है। कोटिश: बधाई।
उदंती अगस्त 2011 का अंक प्राप्त हुआ। मेरी रचना को जितनी खूबसूरत तरीके से पत्रिका में स्थान दिया उसके लिए धन्यवाद। मुझ जैसे नवोदित लेखक, जो अपने उम्र के आखिरी मुकाम में जीवन की पुस्तक में पढ़े गये पृष्ठों को अपनी कलम से कागज पर उतारता है उनको आपने अपनी महत्वपूर्ण पत्रिका में स्थान दिया इससे यह स्पष्ट है कि साहित्य में रचनात्मक प्रयास करने वालों को आप उदारता से प्रोत्साहित करती है।
पद्मश्री सम्मान और मूंगफल्ली
सम्मान मांगा नहीं जाता, दिया जाता है। इसके लिए अप्लाई करने से बड़ा अपमान भला और क्या हो सकता है? कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ना तो अप्लाई करेगा और ना कोई जुगाड़़ ही लगाएगा।
आज हम रामराज्य की सिर्फ बातें करते हैं पर सार्थक कदम नहीं उठाते। शहर की गंदगी के लिए नगर निगम को कोसने वाले हम अपने घर के कचरे नालियों और सड़कों पर डालते हैं। सच में अगर जनता जनार्दन आत्मचिंतन करें और आत्म सुधार करें तो शहर रोशन हो जाएगा। और तभी सच्ची दीवाली मनाई जाएगी।
यह मेरा आप समस्त नागरिकों को दीवाली की शुभकामना के साथ आग्रह है कि अपने आंगन के साथ अपने मन को भी रोशन करें और ईमानदारी, निष्ठा व मर्यादा से अपने नागरिक दायित्वों का निर्वहन करें। मीठे वचन की मिठाइयां लोगों में बांटे और सारे गिले शिकवे भूलाकर निष्ठापूर्वक मां लक्ष्मीजी की पूजा अर्चना करें। तभी दीवाली सार्थक होगी।
कृत्रिम दीप लडिय़ों की बनावटी रोशनी मन का अंधेरा ना मिटा पाई। तो फिर कैसी दीवाली?
नि:संदेह आपका श्रम अति- सार्थक है, यह उदंती के अंकों को देखकर लगता है। मुखपृष्ठ की नयनाभिराम छवि और विविधता लिए रचना सामग्री आपके चयन और सम्पादन की गवाही देती हैं । कभी- कभी गजले भी छापा कीजिए। बधाई
- मनोज अबोध, बिजनौर (उ।प्र.)
Email: manojabodh@gmail.com
Email: manojabodh@gmail.com
सम्पूर्ण पत्रिका
उदंती में साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा कहानी, कविता, व्यंग्य तथा लघुकथाओं के साथ जिस प्राथमिकता के साथ अन्य विषयों को भी स्थान दिया जाता है वह काबिले तारीफ है। खासकर पर्यावरण, पर्यटन, संस्कृति, कला आदि । साथ ही जीवन के ज्वलंत मुद्दों पर अनकही में जो सवाल उठाए जाते हैं वह पत्रिका को एक संम्पूर्ण पत्रिका बनाती है। नि:संदेह आपका प्रयास प्रशंसनीय है। कोटिश: बधाई।
- अत्माराम मोहंती, रांची
खूबसूरत प्रस्तुतिउदंती अगस्त 2011 का अंक प्राप्त हुआ। मेरी रचना को जितनी खूबसूरत तरीके से पत्रिका में स्थान दिया उसके लिए धन्यवाद। मुझ जैसे नवोदित लेखक, जो अपने उम्र के आखिरी मुकाम में जीवन की पुस्तक में पढ़े गये पृष्ठों को अपनी कलम से कागज पर उतारता है उनको आपने अपनी महत्वपूर्ण पत्रिका में स्थान दिया इससे यह स्पष्ट है कि साहित्य में रचनात्मक प्रयास करने वालों को आप उदारता से प्रोत्साहित करती है।
- राम अवतार साचान, इलाहाबाद
सम्मान मांगा नहीं जातापद्मश्री सम्मान और मूंगफल्ली
सम्मान मांगा नहीं जाता, दिया जाता है। इसके लिए अप्लाई करने से बड़ा अपमान भला और क्या हो सकता है? कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ना तो अप्लाई करेगा और ना कोई जुगाड़़ ही लगाएगा।
-हरिहर वैष्णव, कोंडागांव, बस्तर
Email : lakhijag@sancharnet.in
Email : lakhijag@sancharnet.in
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फिर कैसी रौशनी
व्यस्तताओं की डोरी में बंधे हम कहां से कहां निकल गए। वह पहले सा दशहरा, दीवाली सब कहां गई। आज लक्ष्मी के आगमन की खुशी का यह पर्व महज औपचारिकता या मजबूरी सा क्यों लगने लगा। क्यों दीवाली के नजदीक आते ही हमारी त्यौरियां चढ़ जाती है? हर्ष और उल्लास बनाए रखने की होड़ में गृहलक्ष्मी और गृहस्वामी के पसीने निकलने लगते हैं और महंगाई की फटकार जेब का दिवाला निकालने लगती है।
भगवान श्री राम को अयोध्या के राज्य सिंहासन पर विराजित होने की खुशी में यह पर्व मनाया गया।आज हम रामराज्य की सिर्फ बातें करते हैं पर सार्थक कदम नहीं उठाते। शहर की गंदगी के लिए नगर निगम को कोसने वाले हम अपने घर के कचरे नालियों और सड़कों पर डालते हैं। सच में अगर जनता जनार्दन आत्मचिंतन करें और आत्म सुधार करें तो शहर रोशन हो जाएगा। और तभी सच्ची दीवाली मनाई जाएगी।
यह मेरा आप समस्त नागरिकों को दीवाली की शुभकामना के साथ आग्रह है कि अपने आंगन के साथ अपने मन को भी रोशन करें और ईमानदारी, निष्ठा व मर्यादा से अपने नागरिक दायित्वों का निर्वहन करें। मीठे वचन की मिठाइयां लोगों में बांटे और सारे गिले शिकवे भूलाकर निष्ठापूर्वक मां लक्ष्मीजी की पूजा अर्चना करें। तभी दीवाली सार्थक होगी।
कृत्रिम दीप लडिय़ों की बनावटी रोशनी मन का अंधेरा ना मिटा पाई। तो फिर कैसी दीवाली?
- अनिल कुमार त्रिपाठी, दौंदेखुर्द, रायपुर (छ.ग.)
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