उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Aug 25, 2011

वास्तविक स्वतंत्रता...

हम भारतीय हर साल 15 अगस्त के दिन स्वाधीनता दिवस का जश्न बड़े जोर- शोर से मनाते हैं और औपचारिकता निभा कर अपने स्वतंत्र होने पर गर्व करते हैं। पर वास्तव में देखें तो हमने इन 64 वर्षों में स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ को पहचाना ही नहीं है। एक परतंत्रता से मुक्त होकर हम न जाने कितनी नई परतंत्रताओं से घिरते चले जा रहे हैं, जो हमारे देश को विकसित करने के स्थान पर नीचे की ओर ही ढकेलते चले जा रही है। फिर चाहे वह मंहगाई का मुद्दा हो, चाहे गरीबी, बेकारी और अशिक्षा का हो या फिर इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चित भ्रष्टाचार का मुद्दा ही क्यों न हो। कायदे से देखा जाए तो इस अवसर विशेष पर हमें देश को कमजोर करने वाली इन सभी समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए ।
एक ऐसा ही मुद्दा पिछले दिनों उभर कर सामने अया है जिसे नया तो कतई नहीं कहा जा सकता पर स्वाधीनता के अवसर पर इस निरंतर बढ़ते जा रहे सामाजिक समस्या पर चर्चा करना, देश व समाज दोनों के हित में आवश्यक है- 2011 की जनगणना के अनुसार जो आकड़े सामने आएं हैं उसमें से एक देश में कन्याओं की लगातार घटती संख्या भी है। प्राप्त आंकड़ों की ओर नजर डालें तो प्रति हजार लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या घटकर 914 हो गई है। जबकि 2001 की जनगणना में यह संख्या 933 थी। आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब भारत में लड़कों और लड़कियों के बीच का अनुपात इतना ज्यादा गिरा है। हरियाणा और पंजाब के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लड़कियां पैदा ही नहीं हुईं हैं।
एक ओर तो जनगणना के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाओं में साक्षरता तो बढ़ी है, लेकिन इसके बिल्कुल विपरित कन्या भ्रूण हत्या या बेटियों के प्रति नफरत की भावना बढ़ती ही जा रही है। यह वास्तव में राष्ट्रीय शर्म की बात है। यह बात तो बिल्कुल उसी तरह हुई कि हम भारतीय गंगा नदी को अपनी मां की तरह पूजते तो हैं पर उसे नष्ट करने में किसी भी तरह पीछे नहीं है। इसी प्रकार कन्या भ्रूण हत्या करके हम समस्त मानवता की जड़ को ही खत्म करने पर तुले हैं।
इन सबका नतीजा यह है कि कन्या के लगातार घटते चले जाने के भयानक दुष्परिणाम कई राज्यों विशेषकर हरियाणा और राजस्थान में नजर आ रहे हैं। वहां अब विवाह के लिए लड़कियां ही नहीं मिल रही हैं और इसकी पूर्ति के लिए बंगलादेश और बंगाल से लड़कियां लाई जा रही हैं। लेकिन जो लड़कियां वहां गलती से पैदा हो भी जाती हैं, (अर्थात जो भ्रूण परीक्षण से बच जाती हैं) बड़े होने पर उनके माता- पिता उन्हें घर से बाहर इसलिए निकलने नहीं देते क्योंकि उन्हें डर होता है उनकी लड़की का कहीं अपहरण न हो जाए। इस प्रकार यहां की बेटियां कैदी बनकर रह जाती है, यह एक और भयानक सामाजिक समस्या को जन्म दे रही है।
आश्चर्य है कि लिंग अनुपात की असमानता कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अनेक कानूनों के बावजूद बढ़ती जा रही है। दरअसल हमारे देश में किसी समस्या के निदान के लिए कानून बनाने वाले हमारे कर्ता- धर्ता कागजों में कानून बनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि कागजी कानून किसी भी सामाजिक समस्या का हल नहीं है। भारत सरकार ने 17 साल पहले ही एक कानून पीसीपीएनडीटी कानून (प्री-कनसेप्शन ऐन्ड प्री-नेटल डायग्नॉस्टिक टेकनीक्स ऐक्ट) पारित किया था जिसके मुताबिक पैदा होने से पहले बच्चे का लिंग मालुम करना गैरकानूनी है। इस कानून में यह भी स्पष्ट निर्देश है कि भ्रूण परीक्षण करने वाली मशीन पंजीकृत हो जबकि देश भर के अधिकांश शहरों में बिना पंजीकरण के इन मशीनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। इतना ही नहीं गर्भवती महिला को यदि यह परीक्षण करवाना हो तो कानूनन उसे एक फार्म भरना अनिवार्य होता है, यदि इस फार्म में कुछ भी गलतियां पाई जाती हंै तो यह मान लिया जाता है कि संबंधित डॉक्टर ने लिंग का पता लगाने के लिए ही यह परीक्षण किया है। लेकिन जिस देश में यही नहीं पता कि कितनी मशीनें इस परीक्षण के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं वहां सही फार्म भरा जाना तो दूर की बात है फार्म भरे भी जाते होंगे इसमें भी संदेह है।
एक अनुमान के आधार पर पिछले 10 वर्षों में भारत में 80 लाख कन्या भ्रूण की हत्या कर दी गई है। कितने शर्म की बात है कि इतनी बड़ी संख्या में मानव हत्या हो रही है और किसी ने इस पर उंगली भी नहीं उठाई? क्या हम इतने निमर्म समाज है? जबकि प्रकृति का यह विधान है कि दुनिया भर में लिंग अनुपात में प्रति हजार लड़कों पर 950 लड़कियां पैदा होती हैं क्योंकि लड़कों में मृत्युदर ज्यादा है। लेकिन भारत में प्रति हजार लड़कों पर सिर्फ 890 लड़कियां पैदा होती हैं।
आज के ये प्राप्त आकड़े हमारे समाज में असंतुल पैदा कर भविष्य की एक गंभीर सामाजिक समस्या की ओर संकेत कर रही है। इससे अनेक प्रकार की कुरीतियां और बुराईयां जन्म ले रही हंै। समय रहते इसे रोकना आवश्यक है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बने कानून का पालन कड़ाई से हो इसके लिए एक ऐसी निगरानी समीति बनाए जो कन्या भ्रूण का परीक्षण करने वालों पर अंकुश लगाने में कारगर भूमिका निभाए। ताकि गैरकानूनी तरीके से भ्रूण परीक्षण कर कन्या को गर्भ में ही मार देने का जो व्यवसाय इन दिनों फल- फूल रहा है और समाज की जड़ों को खोखला करते चले जाने का जो काम खुले आम हो रहा है उसे रोका जा सके। इन सब प्रयासों के साथ ही साथ हमें जो सबसे कारगर और महत्वपूर्ण कदम उठाना होगा वह है शिक्षा के प्रचार- प्रसार का। क्योंकि अंधविश्वास, कुरीति, दहेज प्रथा तथा बेटी को बोझ मानने वाली जैसी हमारी अंध- परंपराओं का नाश शिक्षा रूपी हथियार के माध्यम से ही किया जा सकता है।
अंत में इतना ही कि हमारी वास्तविक स्वतंत्रता तभी मानी जाएगी जब हम लड़कियों को प्रकृति के विधान के अनुसार निर्धारित संख्या में जन्म लेने दें। जिस दिन ऐसा हो जाएगा उस दिन हम इस चर्चित कहावत को सिर्फ परंपरा का निर्वाह करने के लिए नहीं बल्कि चरितार्थ करते हुए गर्व से कहेंगे- यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र रमंते देवता।


- डॉ. रत्ना वर्मा

2 comments:

D.P. Mishra said...

VERY-VERY NICE........

Anonymous said...

Heart touch Words