
कमीज से कम दाग क्यों?'
- मंजु मिश्रा
राजनीतिक परिदृश्य में भारत की बदली हुयी तस्वीर के बारे में यदि हम वैश्वीकरण के नजरिए से बात करें तो तस्वीर ख़ुशनुमा नजर आती है, हम गर्व के साथ हिमालय की तरह सिर ऊँचा करके खड़े हैं विश्व के सामने हमारी आवाज के खास मायने हैं, हमें कोई नकार नहीं सकता। स्वतंत्रता के बाद सफलताओं और विकास का जो लम्बा सफर तय किया है हमारे देश ने उसने हमारी एक अलग और मजबूत पहचान बनायी है दुनिया के सामने और आने वाले समय में बड़े और सशक्त काहे जाने वाले कई देशों को टक्कर देते हुये "Land of opportunities" बन कर उभरने की दावेदारी भी काफी प्रबल है जिस को कोई अनदेखा नहीं कर सकता।
लेकिन अगर घर की बात करें, कहने का मतलब यह कि देश के अंदरूनी हालातों की बात करें तो वे तो बद से बदतर ही होते जा रहे हैं। राजनीति भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बनकर रह गयी है। सब में जमकर होड़ लगी है 'मेरी कमीज पर तुम्हारी कमीज से कम दाग क्यों?' या 'हम बर्बरता में किसी से कम नहीं', या फिर 'भाई-भतीजा वाद'... हजारों करोड़ के घोटाले की बात तो आजकल ऐसे होती हैं मानो पान खा कर थूकने की बात हो रही हो। शासक वर्ग या तो अक्षम है या फिर कुनीतियों का शिकार है। पक्ष हो या विपक्ष सब अपनी अपनी झोली भरने में लगे हैं।
जिन संस्कारों और नैतिक मूल्यों के के लिए भारतीय संस्कृति जानी जाती रही है उनका आज कहीं पता नहीं है। मेरे विचार में ऐसा भी नहीं है कि हम पूरी तरह से विमुख हो गए हैं अपनी संस्कृति से लेकिन शायद समुचित समन्वय की कमी है। हमारी प्राथमिकताएँ थोड़ी स्वार्थपरक हो गयी हैं। उनको नए सिरे से गढऩा होगा। ऐसे में "Back to basics" की राह शायद हालातों को बदलने में सहायक हो। बच्चे के पैदा होने से लेकर उसके सक्षम नागरिक बनने तक के सफर को यदि भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों और सुसंस्कारों का खाद पानी मिले तो ही शायद एक ईमानदार, कर्मठ, दूसरों के बारे में सोचने वाली एवं पक्षपात की नीतियों से दूर एक ऐसी पौध का, एक ऐसी पीढ़ी का सृजन होगा जो हमारे सपनों के भारत का निर्माण कर सकेगी। जहाँ सब सबके लिए होंगे, सब सबका होगा, प्यार होगा, मान होगा और भाईचारा होगा। लेकिन उसके लिए हम सबको ख़ुद को संयमित करना होगा, और अपने लिए एक आचार संहिता तय करनी होगी। भ्रष्टाचार और स्वार्थ की दीमक को जड़ से दूर किये बिना कुछ नहीं होने वाला।
- कैलिफोर्निया, manjumishra@gmail.com
लेकिन अगर घर की बात करें, कहने का मतलब यह कि देश के अंदरूनी हालातों की बात करें तो वे तो बद से बदतर ही होते जा रहे हैं। राजनीति भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बनकर रह गयी है। सब में जमकर होड़ लगी है 'मेरी कमीज पर तुम्हारी कमीज से कम दाग क्यों?' या 'हम बर्बरता में किसी से कम नहीं', या फिर 'भाई-भतीजा वाद'... हजारों करोड़ के घोटाले की बात तो आजकल ऐसे होती हैं मानो पान खा कर थूकने की बात हो रही हो। शासक वर्ग या तो अक्षम है या फिर कुनीतियों का शिकार है। पक्ष हो या विपक्ष सब अपनी अपनी झोली भरने में लगे हैं।
जिन संस्कारों और नैतिक मूल्यों के के लिए भारतीय संस्कृति जानी जाती रही है उनका आज कहीं पता नहीं है। मेरे विचार में ऐसा भी नहीं है कि हम पूरी तरह से विमुख हो गए हैं अपनी संस्कृति से लेकिन शायद समुचित समन्वय की कमी है। हमारी प्राथमिकताएँ थोड़ी स्वार्थपरक हो गयी हैं। उनको नए सिरे से गढऩा होगा। ऐसे में "Back to basics" की राह शायद हालातों को बदलने में सहायक हो। बच्चे के पैदा होने से लेकर उसके सक्षम नागरिक बनने तक के सफर को यदि भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों और सुसंस्कारों का खाद पानी मिले तो ही शायद एक ईमानदार, कर्मठ, दूसरों के बारे में सोचने वाली एवं पक्षपात की नीतियों से दूर एक ऐसी पौध का, एक ऐसी पीढ़ी का सृजन होगा जो हमारे सपनों के भारत का निर्माण कर सकेगी। जहाँ सब सबके लिए होंगे, सब सबका होगा, प्यार होगा, मान होगा और भाईचारा होगा। लेकिन उसके लिए हम सबको ख़ुद को संयमित करना होगा, और अपने लिए एक आचार संहिता तय करनी होगी। भ्रष्टाचार और स्वार्थ की दीमक को जड़ से दूर किये बिना कुछ नहीं होने वाला।
- कैलिफोर्निया, manjumishra@gmail.com
4 comments:
मंजु मिश्रा जी ने अपने आलेख 'मेरी कमीज पर तुम्हारी कमीज़ से कम दाग़ क्यों' में कड़वी सच्चाई बयान की है। आज के युग में दागदार आदमी ही सिर उठाकर, नथुने फुलाकर बात कर रहा है । यही सबसे बड़ी विडम्बना है ।
सही विश्लेषण ... अपने स्वार्थ को कैसे छोड़ें लोग ?
aapka ek naya rup dikha aapke lekhan me aaj manushya bas svarth me hi lipt hai .............
aur garv se chalraha hai dusron ki chinta karne wala murkh samjha jata hai
rachana
मंजु जी का आलेख'मेरी कमीज..के द्वारा समाज के
नैतिक मूल्यों,के ह्रास का बखूबी विश्लेषण किया गया है।मनुष्य अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये ...अपना पेट हाउ,मै न जानू काउ",में लगा हुआ है।
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