क्या प्रजातंत्र अन्य
प्राणियों में भी होता है?
-डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
देश और
दुनिया में चुनाव होते ही रहते हैं। इन चुनाओं ने दुनिया को और खुद हमारे
राजनीतिज्ञों को दिखा दिया है कि हम प्रजातंत्र को गंभीरता से लेते हैं। और हम
सबको इस बात से भी प्रसन्नता है कि अब विश्व के कई देशों और म्याँमार में लोगों को
प्रजातंत्र का एहसास करने का मौका मिला है।
क्या
प्रजातंत्र इंसानों का आविष्कार है जिसका विचार होमो सेपिएन्स ने ही किया है और
क्या सिर्फ हम ही इसका अभ्यास करते हैं? क्या अन्य प्राणी समाजों में भी ऐसी प्रथाएँ पाई जाती हैं और क्या इस
तरह के व्यवहार का जैव विकास में कोई प्रमाण मिलता है? इस मामले में सामाजिक जीव
विज्ञान न सिर्फ कई अजूबे पेश करता है बल्कि हमें कई सबक भी सिखाता है।
मधुमक्खियों और कॉकरोचों में इस तरह के व्यवहार को देखकर लगता है कि हमें थोड़ा
विनम्र होकर इन्हें सराहने की जरूरत है।
बैंगलोर
के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रोफेसर राघवेंद्र गडग्कर मशहूर 'यूसोश्यॉलॉजिस्ट’ हैं और ततैयों और
मधुमक्खियों के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। यूसोश्यॉलॉजिस्ट उन वैज्ञानिकों को
कहते हैं, जो ऐसे जंतुओं का अध्ययन करते हैं जिनमें सामाजिक संगठन पाया जाता है।
उन्होंने हाल ही हमें बताया कि ततैयों और मधुमक्खियों की बस्ती कैसे खुद को संगठित
करती हैं और अपने संसाधनों का यथेष्ट उपयोग करती हैं। वे बताते हैं कि हालाँकि इन
बस्तियों में एक रानी होती है और मजदूर होते हैं मगर इनमें एकछत्र राज्य जैसी कोई
बात नहीं होती। रानी यह फतवा जारी नहीं करती कि बस्ती को क्या करना चाहिए। दरअसल, उसे रानी कहना एक
मानवकेंद्रित नजरिया है क्योंकि पूरे जीवन भर वह सिर्फ अंडे देती है और शेष सदस्य
उसके नखरे उठाते हैं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwsgt08xKoMaGFu-2YvZDMZZNbI3iTC_jfNi8ci64LXSnE8Prul-Z588MklvYcQ5CvkLnSiZSTwyYDWSRaRb0DL27VcOMAhi2wMiYI_d7a8Y-ekW6ZeRkOQd72dajfg5xrdybI4KC2BPc/s200/bee-7.jpg)
यह सही
है कि रानी अन्य मजदूर ततैयों से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है मगर वह कोई तानाशाह
नहीं होती जिसके आदेशों का पालन बस्ती के शेष सदस्यों को करना ही पड़े। बस्ती
सामूहिक गतिविधियों के आधार पर चलती है, जिसमें हर सदस्य अपनी-अपनी भूमिका निभाता है।
कॉकरोच
यानी तिलचट्टा भी आम सहमति पर आधारित समाज का निर्माण करता है। ब्रसेल्स की फ्री यूनिवर्सिटी
के जोस हेलोय और उनके साथी कॉकरोच की बस्तियों का अध्ययन करते रहे हैं। उनका
निष्कर्ष है कि कॉकरोच एक सरल किस्म के प्रजातंत्र का पालन करते हैं। इनके समाज
में हर एक जीव को समान अधिकार हैं और पूरे समूह का निर्णय एक- एक जीव पर लागू होता
है।
सवाल
यह है कि आप इसे समझने के लिए प्रयोग कैसे करेंगे? हेलोय ने इसके लिए एक आसान- सा
प्रयोग किया। उन्होंने कॉकरोच के एक समूह को एक बड़ी- सी तश्तरी में रखा जिसमें
तीन छिपने की जगहें थीं। कॉकरोचों ने आपस में एक- दूसरे को छूकर, एंटीना को टकराकर काफी सलाह-
मशविरा किया और फिर समूहों में बँट गए। ये समूह अलग-अलग छिपने की जगहों पर पहुँचे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPP_hZIT-CIbA2ubUgLUh85iK7in7Hv0CqubzgG-n1_F5hqOSZX2eSlHC4Hyr00Rl_zN5LGKBhktfhwEN36I6zlGqlcqnLUR8a_YmHbNCuUbpa0t50B_cqha_M1Tp25ulejUl2jq1FX60/s200/cockroach.jpg)
इस
नतीजे को समझने के लिए हेलॉय ने व्याख्या की कि कॉकरोच संसाधनों के लिए
प्रतिस्पर्धा और सहयोग के बीच संतुलन बनाते हैं। वे कहते हैं, इससे प्रजनन के ज्यादा
अवसर मिलते हैं, और भोजन व आश्रय जैसे संसाधनों के बँटवारे में मदद मिलती है।
यदि
स्तनधारियों की बात करें, तो वहाँ भी प्रजातंत्र या सामूहिक निर्णय के दर्शन होते हैं। ससेक्स
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लेरिसन कॉनरेट लाल हिरनों का अध्ययन करते रहे हैं।
उन्होंने पाया है कि इनमें हरेक सदस्य को तब फायदा मिलता है; जब वह अपने क्रियाकलाप
व गतियों को पूरे समूह के साथ सामंजस्य में करे। यहाँ भी यह दिखता है कि साथ रहकर
प्रजनन के ज़्यादा अवसर मिलते हैं और संसाधनों का यथेष्ट उपयोग करने तथा शिकारियों
से बचने में मदद मिलती है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjisqCYrfJRuZsauDlzHpBoKuPL3ClF7ceOKfRPmEtzO0WYbmJw1Nti9w6-MPNc2fiFP9aAcHF0R7qxLsPGqtEWUG0s25ZqDcbfU3s66KMRuINEUUHgBBWg-ETGbYvnY2f3sa8TN-sbJDs/s200/chimpanzee.jpg)
कॉनरेट
व रोपर ने अपने पर्चे 'डेमोक्रेसी
इन एनिमल्स- दी इवॉल्यूशन ऑफ शेयर्ड ग्रुप डिसीजन्स’ में जंतु व्यवहार का गेम सिद्धांत प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि
सामूहिक निर्णय तब होता है जब किसी समूह के सदस्य विभिन्न विकृपों में से किसी एक
का चुनाव समूहिक रूप से करते हैं।
इस
प्रक्रिया में 'आम
सहमति की लागत’ लगती है। मगर बगैर
साझेदारी के निर्णयों की अपेक्षा बराबरी की साझेदारी से किए गए सामूहिक निर्णयों
की आम सहमति लागत कम होती है। यही तो प्रजातंत्र है। जब हम मछलियों, कीटों, और स्तनधारियों का अध्ययन
करते हैं तो हमें ऐसे कई जंतुओं और उनकी बस्तियों में सहयोगी व्यवहार के विकास के
दर्शन होते हैं जहाँ सदस्य कुछ लाभों की कुर्बानी देने और कुछ लागतें वहन करने को
तैयार होते हैं ताकि सामंजस्य को बढ़ावा मिले और समूह- प्रजातंत्र चल सके। (स्रोत
फीचर्स)
1 comment:
बड़ी दिलचस्प जानकारी… :)
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