- विनोद साव
किसी बात का महत्व तब और अधिक बढ़ जाता है जब उनके नाम से पर्व मनाए जाते हैं। आजादी के बाद बरसों से हमारे यहां दो शब्दों के हर साल 'दिवस' मनाए जाते हैं, एक का नाम है- स्वतंत्रता दिवस और दूसरे का नाम है गणतंत्र दिवस। दिवस मनाए जाने से महत्व बढ़ता चला जाता है। कई पुरुष इसलिए महापुरुष बन जाते हैं क्योंकि बार बार उनके जन्म दिवस मना दिए जाते हैं। कुछ लोगों की महानता में कोई कसर रह जाती है या दिवस माने में चूक हो जाती है तो उसकी भरपाई उनकी जन्म शताब्दी मनाकर कर दी जाती है। कुछ लोगों की महानता इस आधार पर प्रमाणित होती है कि उनकी जन्मतिथि, पुण्यतिथि या जन्म शताब्दी कितने करोड़ खर्च करके मनायी जाती है जितना ज्यादा खरचा होगा उतनी अधिक महानता मानी जावेगी। आजकल ऐसी अनेक महान आत्माएं भटक रही हैं जन्म- शताब्दी के आधार पर अपना मूल्यांकन हो पाने के इंतजार में।
कुछ तारीखें व्यक्ति को समर्पित होती हैं तो कुछ शब्द को- दो अक्टूबर और चौदह नवम्बर व्यक्ति की याद दिलाते हैं तो पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी शब्द की याद दिलाते हैं, ये दो शब्द हैं- स्वतंत्रता और गणतंत्र - एक शब्द पंद्रह अगस्त को सुना- सुनाया जाता है तो दूसरा छब्बीस जनवरी को गुंजाया जाता है। स्वतंत्रता की झड़ी बरसात में होती है तो गणतंत्र की ठिठुरन ठण्ड में होती है। एक देश को आजाद बताता है तो दूसरा यह बताता है कि देश में बार बार संशोधन करने के लिए एक संविधान भी हैं। एक में झंडा फहराने के लिए राष्ट्रपति हैं तो दूसरे के लिए प्रधानमंत्री हैं। एक में लोग 'बापू' को याद कर के भाव- विव्हल होते हैं तो दूसरे में 'बाबा साहब' का नाम पुकारते हैं। एक शब्द सन सैंतालिस में मिला और दूसरा सन इंकावन में।
अब समानता के नाम पर भी कुछ हो जाए - इन दोनों दिवसों पर स्कूलों में प्रभात फेरी निकाली जाती है, पब्लिक स्कूलों में टॉफी व चाकलेट तथा बाकी स्कूलों में दूध पावडर और दलिया बांटे जाते हैं। सरकारी कार्यालयों में ध्वजारोहण के बाद ठेकेदारों व इंजीनियरों द्वारा चाय नाश्ते का इंतजाम। दोनों ही अवसरों में अनेक नेताओं द्वारा एक ही भाषण का देना तथा अपने भाषण में स्वतंत्रता को गणतंत्र और गणतंत्र दिवस को स्वतंत्रता दिवस कह देना उनका आम शौक है। कोई- कोई महानुभाव गणतंत्र को गणतंत्रता भी कहते हैं। इन दोनों कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण रेडियो और टी.वी. पर सबेरे सात बजे से किया जाता है जिसका आँखों देखा हाल जसदेव सिंह सुनाते हैं। पहले वे राष्ट्रीय खेल हॉकी की कामेन्टरी सुनाते थे और बाद में राष्ट्रीय दिवस का हाल सुनाने लगे- जो हाल हॉकी का हुआ वही हाल देश का हो रहा है।
सोचने की बात यह है कि स्वतंत्रता और गणतंत्र कब तक रहेंगे आखिर 'दो-शब्द'। (व्यंग्य संग्रह- 'मैदान-ए-व्यंग्य' से)
संपर्क: पद्नाभपुर के पीछे, मुक्त नगर, दुर्ग मो. 09907196626
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कुछ तारीखें व्यक्ति को समर्पित होती हैं तो कुछ शब्द को- दो अक्टूबर और चौदह नवम्बर व्यक्ति की याद दिलाते हैं तो पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी शब्द की याद दिलाते हैं, ये दो शब्द हैं- स्वतंत्रता और गणतंत्र - एक शब्द पंद्रह अगस्त को सुना- सुनाया जाता है तो दूसरा छब्बीस जनवरी को गुंजाया जाता है। स्वतंत्रता की झड़ी बरसात में होती है तो गणतंत्र की ठिठुरन ठण्ड में होती है। एक देश को आजाद बताता है तो दूसरा यह बताता है कि देश में बार बार संशोधन करने के लिए एक संविधान भी हैं। एक में झंडा फहराने के लिए राष्ट्रपति हैं तो दूसरे के लिए प्रधानमंत्री हैं। एक में लोग 'बापू' को याद कर के भाव- विव्हल होते हैं तो दूसरे में 'बाबा साहब' का नाम पुकारते हैं। एक शब्द सन सैंतालिस में मिला और दूसरा सन इंकावन में।
अब समानता के नाम पर भी कुछ हो जाए - इन दोनों दिवसों पर स्कूलों में प्रभात फेरी निकाली जाती है, पब्लिक स्कूलों में टॉफी व चाकलेट तथा बाकी स्कूलों में दूध पावडर और दलिया बांटे जाते हैं। सरकारी कार्यालयों में ध्वजारोहण के बाद ठेकेदारों व इंजीनियरों द्वारा चाय नाश्ते का इंतजाम। दोनों ही अवसरों में अनेक नेताओं द्वारा एक ही भाषण का देना तथा अपने भाषण में स्वतंत्रता को गणतंत्र और गणतंत्र दिवस को स्वतंत्रता दिवस कह देना उनका आम शौक है। कोई- कोई महानुभाव गणतंत्र को गणतंत्रता भी कहते हैं। इन दोनों कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण रेडियो और टी.वी. पर सबेरे सात बजे से किया जाता है जिसका आँखों देखा हाल जसदेव सिंह सुनाते हैं। पहले वे राष्ट्रीय खेल हॉकी की कामेन्टरी सुनाते थे और बाद में राष्ट्रीय दिवस का हाल सुनाने लगे- जो हाल हॉकी का हुआ वही हाल देश का हो रहा है।
सोचने की बात यह है कि स्वतंत्रता और गणतंत्र कब तक रहेंगे आखिर 'दो-शब्द'। (व्यंग्य संग्रह- 'मैदान-ए-व्यंग्य' से)
संपर्क: पद्नाभपुर के पीछे, मुक्त नगर, दुर्ग मो. 09907196626
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