मासूमियत का अंत
- अजिता मेनन
यहां तक कि आदित्य की आठ वर्षीय बहन रिया जिसके दोस्तों ने आर्ची कामिक्स से उसका परिचय पहले से ही करा दिया है, बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड क्या होते हैं जानने में बेहद जिज्ञासा दिखाती है। जब सोने से पहले वाली उसकी कहानी 'राजकुमार और राजकुमारी की शादी हो गई और वो हमेशा खुश रहे' के साथ खत्म होती है, तब भी वह जानना चाहती है कि शादी कैसे होती है। शादी होने के बाद क्या होता है? उसकी ताई शोभना पूछती हैं, 'बच्चों की फिल्म 'दि कराटे किड' जैसी फिल्म में भी किसिंग सीन था। रिया को उसके बारे में बहुत अधिक जिज्ञासा थी। अब एक पश्चिमी फिल्म में किशोर चुम्बन की सहजता को आप एक अलग सांस्कृतिक मूल्यों वाले भारतीय बच्चे को कैसे समझाएगें?'
अजय कहते हैं, 'प्रश्न काफी कम उम्र में आ रहे हैं और उनका सच्चाई और चतुराई से जवाब देना अनिवार्य है।' उन्होंने यह भी कहा, 'मैंने आदित्य से लड़कियों में उसकी रुचि के बारे में बात की और मैंने उसे बताया कैसे लड़कियां शारीरिक संदर्भ में लड़कों से अलग होती हैं और क्योंकि जब वो बड़ी हो जाती हैं वे बच्चे पैदा करती हैं, बच्चों को दूध पिलाती हैं वगैरह वगैरह। मैंने उसे समझाया कैसे उसकी मां ने उसे जन्म दिया। मैंने यह बात स्पष्ट की कि यह कोई हंसी मजाक की बात नहीं है और एक महिला की कितनी इज्जत करनी चाहिए। मैं आशा करता हूं कि वो समझ गया है। संसार के एक वैश्विक गांव बनने के साथ जानकारी पर समान पहुंच उपलब्ध है। बच्चें चाहे, पश्चिम में स्थित हों या पूर्व में, सभी को समान चीजों पर पहुंच है। अब किसी भी बात को नजरअंदाज या छुपाया या बिना बताए नहीं छोड़ा जा सकता।'
अनुराधा के स्कूल में पढऩे वाली लड़की का बॉयफ्रेंड है। 'वो डेट पर बाहर जाना चाहती है। बैंगलुरू जैसे शहर में इस संदर्भ में काफी पियर प्रेशर है। फिर मीडिया का प्रभाव भी है। अगर में ना कहती हूं, मैं तुरंत बुरी बन जाती हूं। तो मैं हां कहती हूं और जब तक वो बाहर रहती है चिंता करती रहती हूं। मैंने उससे एक औरत के शरीर, संभोग के बारे में, प्रजनन के बारे में बात की है। अब वह समझती है कि सारी बात अपने शरीर का आदर करने और अपने किए कार्यों की जिम्मेदारी लेने के बारे में है।'
आजकल टेलीविजन पर क्या क्या दिखाया जाता है उस पर विचार करें, डांस के शो में बच्चों का कूल्हे मटकाना, छाती हिलाना, आंखों और होंठों से छिछोरी इशारेबाजी करना। 'बालिका वधू' जैसे सीरियलों में एक छह या सात साल की लड़की की एक आठ या नौ साल के लड़के से शादी हो जाती है। कॉमेडी शो और रिएलिटी शो में आप बच्चों को वयस्कों की तरह कपड़े पहने, वयस्कों की तरह व्यवहार करते हुए वयस्कों के मजाक करते हुए देखते हैं। ये सब बच्चों के यौनिकीकरण होने के उदाहरण हैं, एक प्रवृत्ति जिसके समाज के लिए गंभीर दुष्परिणाम हैं। ऐसे कार्यक्रमों का दो तरफा प्रभाव होता है। पहला, ये बच्चों को स्वयं यौनिक व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए दबाव डालते हैं। इसके परिणामस्वरूप अक्सर बच्चे कम उम्र में यौनिक रूप से सक्रिय हो रहे हैं और उससे होने वाले स्वाभाविक परिणामों को झेल रहे हैं। दूसरा, ऐसी सामग्री देखने वाले बहुत से वयस्क बच्चों की यौनिकता के बारे में गलत समझ रहे हैं जिससे अवयस्कों के साथ यौनिक दुव्र्यवहार की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। कोलकता के राममोहन मिशन स्कूल की एक नाराज टीचर, मलांचा घोष कहती हैं, 'देखिए बच्चों को विज्ञापनों में किस तरह प्रयोग किया जाता है। उन्हें सेक्सी मॉडलों की तरह कपड़े पहनाए जाते हैं और व्यवहार कराया जाता है। बच्चों का फैशन अक्सर वयस्क फैशन की कॉपी होता है और कम्पनियां छह साल के बच्चों को जी-स्ट्रिंग और ब्रा बेच रही हैं। जैसा कि एक ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया, यह 'कॉरपरेट पीडोफीलिया' है।' पटना स्थित एक व्यवसायिक, अमिकर दयाल कहते हैं, 'मेरी चार साल की लड़की टी.वी. और पत्रिकाओं में जिन बच्चों को देखती है उनके जैसा मेकअप और कपड़े पहनना चाहती है। उसके साथ पढऩे वाले बच्चे भी वैसा ही करना चाहते हैं। लम्बे या छोटे बाल, पैंट या स्कर्ट, ये सब वो मॉन्टेना, बार्बी या पावर पफ गल्र्स क्या कर रही हैं उसी के आधार पर निर्णय करती हैं। बच्चों के शीघ्र यौनिकीकरण पर ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की रिपोर्ट इंगित करती है कि विज्ञापनों और अन्य मीडिया में वयस्क और किशोर यौनिकता को देखकर बच्चे अप्रत्यक्ष रूप से यौनिक बनते जा रहे हैं। लेकिन अभी हाल में स्वयं बच्चों को ही सेक्सी वयस्कों का बाल संस्करण बना दिया गया है, परिणाम है प्रत्यक्ष यौनिकीकरण। कोलकता स्थित चार वर्षीय समारा की मां सईदा दयाल कहती हैं, 'बच्चों जैसी मासूमियत पहले की बात थी। अकाल प्रौढ़ या समय से पहले बड़े हो जाने वाले बच्चे हर जगह दिखाई देते हैं- चाहे वह शो हो, फिल्में, विज्ञापन या म्यूजिक वीडियो। अब बच्चों की खाने की आदतें, छुट्टियां और पारिवारिक जीवनशैली और खाली समय की गतिविधियां प्रतिस्पर्धात्मक और बाजार प्रेरित होती हैं। पहले बच्चे खेला कूदा करते थे, अब उनमें से अधिकतर इंटरनेट, टेलीविजन और फैशन पर ध्यान देते हैं। वो सिर्फ बच्चे नहीं रह गए।'
सामाजिक दुष्परिणाम नशीली दवाओं के प्रयोग, शराब का नशा, स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की दर में बढ़ोतरी, बच्चों के अपराध, किशोर गर्भाधानों और गर्भपातों में वृद्धि, और बच्चों में उदासी (डिप्रेशन) और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी के रूप में नजर आ रहे हैं।
मनोवैज्ञानिक, मोहर माला चटर्जी सलाह देती हैं, 'बच्चों को दोस्तों, मीडिया या अश्लील चित्रों से आधे- अधूरे और झूठे विचार मिलते हैं। ग्रहणशीलता के स्तर ऊंचे होते हैं और वे व्यवहारों और मनोवृत्तियों के बारे में पहले से बनी धारणाएं अपना लेते हैं। बच्चों के प्रश्न पूछने पर माता- पिता को यौनिक विषयों के प्रति खुलापन रखना चाहिए। उनकी ऊर्जा को खेलों, संगीत, चित्रकला और अन्य रुचियों की ओर दिशा देना भी अनिवार्य है। पढऩे वाली किताबें और कौन सा टी.वी. कार्यक्रम देखना है चुनने में माता- पिता की निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए। माता- पिता को यह भी पता होना चाहिए कि उनके बच्चे कौन सी इंटरनेट साइटें देख रहे हैं।' जब हमने, समाज के रूप में जिस तरह से गर्भपात गोलियां दुकानों पर बेची और विज्ञापन में दिखाई जाती हैं, उसे स्वीकार कर लिया है, हमें यह भी समझना चाहिए कि इस तरह की जानकारी बच्चों तक भी पहुंचती है जो कभी- कभी जितना देखना चाहिए उससे कहीं अधिक हो जाता है। हम प्रधान समय पर दिखाए जाने वाले शो में बच्चों द्वारा यौनिक मजाक पर हंसते हैं और दूसरे कार्यक्रम के लिए उत्तेजक पोशाक में एक 12 वर्षीय बच्चे द्वारा प्रस्तुत 'आइटम नम्बर' पर बड़े मजे लेकर गंभीर विश्लेषण करते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए, स्वभाविक है कि युवाओं के लिए परामर्श और मार्गदर्शन प्रदान करने के अतिरिक्त, स्वयं वयस्कों को बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह दोबारा परिभाषित करने की जरूरत है। (बच्चों और माता-पिता के नाम उनकी पहचान को सुरक्षित करने के लिए बदल दिए गए हैं।) विमेन्स फीचर सर्विस
- अजिता मेनन
दस वर्षीय आदित्य की ड्राइंग इतनी अच्छी नहीं है तो पैरेंट-टीचर मीटिंग में जब उसके माता- पिता से कहा गया कि उनके बेटे की एक ड्राइंग के बारे में उनसे बातचीत करनी है, तो उन्हें को अचम्भा नहीं हुआ। जैसी की आशा थी, जिस ड्राइंग के बारे में बात थी वह इतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन महिला के शरीर के अंगों के नाम जितने ध्यान और सही ढंग से लिखे हुए थे, वह देखने लायक था। बैंगलोर स्थित व्यवसायी, अजय पिल्लई कहते हैं, 'मेरी पहली प्रतिक्रिया थी हंसी, जिसे मैंने दबा दिया। लेकिन दूसरी हैरानगी की थी कि मेरा बेटा एक औरत के शरीर के अंगों को सही तरह से बना सकता है। मेरी तीसरी प्रतिक्रिया थी हे भगवान! मैं इसे कैसे संभालूंगा?' हां, टीचर बिल्कुल भी हैरान नहीं थे। लगता था कि ड्राइंग सह- शिक्षा स्कूल, जहां आदित्य पढ़ता था, कक्षा के एक- एक लड़के के हाथ में गई थी। आदित्य की मां रेखा कहती हैं, 'बुनियादी जीवविज्ञान मेरे बेटे की कक्षा में पढ़ाई जाती है, तो उसकी इतनी विस्तृत जानकारी होना परेशानी का विषय नहीं था, परंतु बच्चे की ड्राइंग ने महिलाओं के शरीर के प्रति जो मनोवृत्ति दर्शायी उससे टीचर को चिंता हुई।' बच्चों में बढ़ती यौनिक जागरूकता की ऐसी कहानियां छोटे बच्चों के माता- पिताओं में भरी पड़ी हैं। दो छोटी बच्चियों की मां, अनुराधा शर्मा कहती हैं, 'जिज्ञासा जल्दी पैदा हो रही है। हमने ऐसी बातों के बारे में अपनी किशोरावस्था के अंत में सोचना शुरू किया था, लेकिन अब बच्चों में विपरीत लिंग के प्रति रुचि अधिकतर उनकी जीवनशैली, किताबों, कॉमिक्स, पत्रिकाओं, टेलीविजन और फिल्मों पर पहुंच से 6 या 9 वर्ष की छोटी उम्र में पैदा हो जाती है।' विशेषज्ञ मानते हैं कि पहले 13-15 वर्ष आयु की बजाय बहुत से मामलों में 8-12 वर्ष आयु में यौवनारंभ के साथ बच्चों में शारीरिक बदलाव आजकल जल्दी हो रहे हैं। कोलकता में प्रसिद्ध बालिगंज शिक्षा सदन की एक टीचर, रत्नाबालि घोष कहती हैं, 'विज्ञापनों, मार्केटिंग, टेलीविजन शो, फिल्मों और म्यूजिक वीडियो इत्यादि में बच्चों का निर्लज्जतापूर्ण यौनिकीकरण बच्चों को वास्तविकता की एक विकृत तस्वीर दिखा रहे हैं। वास्तव में उनके अंदर अपने और विपरीत लिंग के शरीरों के प्रति अनादर पैदा हो रहा है।'बच्चों को दोस्तों, मीडिया या अश्लील चित्रों से आधे- अधूरे और झूठे विचार मिलते हैं। ग्रहणशीलता के स्तर ऊंचे होते हैं और वे व्यवहारों और मनोवृत्तियों के बारे में पहले से बनी धारणाएं अपना लेते हैं। उनकी ऊर्जा को खेलों, संगीत, चित्रकला और अन्य रुचियों की ओर दिशा देना भी अनिवार्य है। पढऩे वाली किताबें और कौन सा टी.वी. कार्यक्रम देखना है चुनने में माता- पिता की निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए।
यहां तक कि आदित्य की आठ वर्षीय बहन रिया जिसके दोस्तों ने आर्ची कामिक्स से उसका परिचय पहले से ही करा दिया है, बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड क्या होते हैं जानने में बेहद जिज्ञासा दिखाती है। जब सोने से पहले वाली उसकी कहानी 'राजकुमार और राजकुमारी की शादी हो गई और वो हमेशा खुश रहे' के साथ खत्म होती है, तब भी वह जानना चाहती है कि शादी कैसे होती है। शादी होने के बाद क्या होता है? उसकी ताई शोभना पूछती हैं, 'बच्चों की फिल्म 'दि कराटे किड' जैसी फिल्म में भी किसिंग सीन था। रिया को उसके बारे में बहुत अधिक जिज्ञासा थी। अब एक पश्चिमी फिल्म में किशोर चुम्बन की सहजता को आप एक अलग सांस्कृतिक मूल्यों वाले भारतीय बच्चे को कैसे समझाएगें?'
अजय कहते हैं, 'प्रश्न काफी कम उम्र में आ रहे हैं और उनका सच्चाई और चतुराई से जवाब देना अनिवार्य है।' उन्होंने यह भी कहा, 'मैंने आदित्य से लड़कियों में उसकी रुचि के बारे में बात की और मैंने उसे बताया कैसे लड़कियां शारीरिक संदर्भ में लड़कों से अलग होती हैं और क्योंकि जब वो बड़ी हो जाती हैं वे बच्चे पैदा करती हैं, बच्चों को दूध पिलाती हैं वगैरह वगैरह। मैंने उसे समझाया कैसे उसकी मां ने उसे जन्म दिया। मैंने यह बात स्पष्ट की कि यह कोई हंसी मजाक की बात नहीं है और एक महिला की कितनी इज्जत करनी चाहिए। मैं आशा करता हूं कि वो समझ गया है। संसार के एक वैश्विक गांव बनने के साथ जानकारी पर समान पहुंच उपलब्ध है। बच्चें चाहे, पश्चिम में स्थित हों या पूर्व में, सभी को समान चीजों पर पहुंच है। अब किसी भी बात को नजरअंदाज या छुपाया या बिना बताए नहीं छोड़ा जा सकता।'
अनुराधा के स्कूल में पढऩे वाली लड़की का बॉयफ्रेंड है। 'वो डेट पर बाहर जाना चाहती है। बैंगलुरू जैसे शहर में इस संदर्भ में काफी पियर प्रेशर है। फिर मीडिया का प्रभाव भी है। अगर में ना कहती हूं, मैं तुरंत बुरी बन जाती हूं। तो मैं हां कहती हूं और जब तक वो बाहर रहती है चिंता करती रहती हूं। मैंने उससे एक औरत के शरीर, संभोग के बारे में, प्रजनन के बारे में बात की है। अब वह समझती है कि सारी बात अपने शरीर का आदर करने और अपने किए कार्यों की जिम्मेदारी लेने के बारे में है।'
आजकल टेलीविजन पर क्या क्या दिखाया जाता है उस पर विचार करें, डांस के शो में बच्चों का कूल्हे मटकाना, छाती हिलाना, आंखों और होंठों से छिछोरी इशारेबाजी करना। 'बालिका वधू' जैसे सीरियलों में एक छह या सात साल की लड़की की एक आठ या नौ साल के लड़के से शादी हो जाती है। कॉमेडी शो और रिएलिटी शो में आप बच्चों को वयस्कों की तरह कपड़े पहने, वयस्कों की तरह व्यवहार करते हुए वयस्कों के मजाक करते हुए देखते हैं। ये सब बच्चों के यौनिकीकरण होने के उदाहरण हैं, एक प्रवृत्ति जिसके समाज के लिए गंभीर दुष्परिणाम हैं। ऐसे कार्यक्रमों का दो तरफा प्रभाव होता है। पहला, ये बच्चों को स्वयं यौनिक व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए दबाव डालते हैं। इसके परिणामस्वरूप अक्सर बच्चे कम उम्र में यौनिक रूप से सक्रिय हो रहे हैं और उससे होने वाले स्वाभाविक परिणामों को झेल रहे हैं। दूसरा, ऐसी सामग्री देखने वाले बहुत से वयस्क बच्चों की यौनिकता के बारे में गलत समझ रहे हैं जिससे अवयस्कों के साथ यौनिक दुव्र्यवहार की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। कोलकता के राममोहन मिशन स्कूल की एक नाराज टीचर, मलांचा घोष कहती हैं, 'देखिए बच्चों को विज्ञापनों में किस तरह प्रयोग किया जाता है। उन्हें सेक्सी मॉडलों की तरह कपड़े पहनाए जाते हैं और व्यवहार कराया जाता है। बच्चों का फैशन अक्सर वयस्क फैशन की कॉपी होता है और कम्पनियां छह साल के बच्चों को जी-स्ट्रिंग और ब्रा बेच रही हैं। जैसा कि एक ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया, यह 'कॉरपरेट पीडोफीलिया' है।' पटना स्थित एक व्यवसायिक, अमिकर दयाल कहते हैं, 'मेरी चार साल की लड़की टी.वी. और पत्रिकाओं में जिन बच्चों को देखती है उनके जैसा मेकअप और कपड़े पहनना चाहती है। उसके साथ पढऩे वाले बच्चे भी वैसा ही करना चाहते हैं। लम्बे या छोटे बाल, पैंट या स्कर्ट, ये सब वो मॉन्टेना, बार्बी या पावर पफ गल्र्स क्या कर रही हैं उसी के आधार पर निर्णय करती हैं। बच्चों के शीघ्र यौनिकीकरण पर ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की रिपोर्ट इंगित करती है कि विज्ञापनों और अन्य मीडिया में वयस्क और किशोर यौनिकता को देखकर बच्चे अप्रत्यक्ष रूप से यौनिक बनते जा रहे हैं। लेकिन अभी हाल में स्वयं बच्चों को ही सेक्सी वयस्कों का बाल संस्करण बना दिया गया है, परिणाम है प्रत्यक्ष यौनिकीकरण। कोलकता स्थित चार वर्षीय समारा की मां सईदा दयाल कहती हैं, 'बच्चों जैसी मासूमियत पहले की बात थी। अकाल प्रौढ़ या समय से पहले बड़े हो जाने वाले बच्चे हर जगह दिखाई देते हैं- चाहे वह शो हो, फिल्में, विज्ञापन या म्यूजिक वीडियो। अब बच्चों की खाने की आदतें, छुट्टियां और पारिवारिक जीवनशैली और खाली समय की गतिविधियां प्रतिस्पर्धात्मक और बाजार प्रेरित होती हैं। पहले बच्चे खेला कूदा करते थे, अब उनमें से अधिकतर इंटरनेट, टेलीविजन और फैशन पर ध्यान देते हैं। वो सिर्फ बच्चे नहीं रह गए।'
सामाजिक दुष्परिणाम नशीली दवाओं के प्रयोग, शराब का नशा, स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की दर में बढ़ोतरी, बच्चों के अपराध, किशोर गर्भाधानों और गर्भपातों में वृद्धि, और बच्चों में उदासी (डिप्रेशन) और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी के रूप में नजर आ रहे हैं।
मनोवैज्ञानिक, मोहर माला चटर्जी सलाह देती हैं, 'बच्चों को दोस्तों, मीडिया या अश्लील चित्रों से आधे- अधूरे और झूठे विचार मिलते हैं। ग्रहणशीलता के स्तर ऊंचे होते हैं और वे व्यवहारों और मनोवृत्तियों के बारे में पहले से बनी धारणाएं अपना लेते हैं। बच्चों के प्रश्न पूछने पर माता- पिता को यौनिक विषयों के प्रति खुलापन रखना चाहिए। उनकी ऊर्जा को खेलों, संगीत, चित्रकला और अन्य रुचियों की ओर दिशा देना भी अनिवार्य है। पढऩे वाली किताबें और कौन सा टी.वी. कार्यक्रम देखना है चुनने में माता- पिता की निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए। माता- पिता को यह भी पता होना चाहिए कि उनके बच्चे कौन सी इंटरनेट साइटें देख रहे हैं।' जब हमने, समाज के रूप में जिस तरह से गर्भपात गोलियां दुकानों पर बेची और विज्ञापन में दिखाई जाती हैं, उसे स्वीकार कर लिया है, हमें यह भी समझना चाहिए कि इस तरह की जानकारी बच्चों तक भी पहुंचती है जो कभी- कभी जितना देखना चाहिए उससे कहीं अधिक हो जाता है। हम प्रधान समय पर दिखाए जाने वाले शो में बच्चों द्वारा यौनिक मजाक पर हंसते हैं और दूसरे कार्यक्रम के लिए उत्तेजक पोशाक में एक 12 वर्षीय बच्चे द्वारा प्रस्तुत 'आइटम नम्बर' पर बड़े मजे लेकर गंभीर विश्लेषण करते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए, स्वभाविक है कि युवाओं के लिए परामर्श और मार्गदर्शन प्रदान करने के अतिरिक्त, स्वयं वयस्कों को बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह दोबारा परिभाषित करने की जरूरत है। (बच्चों और माता-पिता के नाम उनकी पहचान को सुरक्षित करने के लिए बदल दिए गए हैं।) विमेन्स फीचर सर्विस
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