मुक्ता दास का रूझान बचपन से ही कला के प्रति रहा है। स्कूल के समय से ही वे खाली समय में स्लेट पर अपनी कल्पनाओं को उकेरा करती थीं।
कला को अपना कैरियर बनाने के बारे में गंभीरता से आपने कब सोचा पूछने पर मुक्ता ने बताया कि उम्र बढऩे के साथ-साथ कला के प्रति मेरा रूझान और भी बढ़ता गया। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने खैरागढ़ यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया वहां अच्छे लोगों की संगति और कलात्मक वातावरण में रहकर कला में और भी निखार आता गया। यहां रहते हुए ही मुझे लगा कि यही मेरा कैरियर होगा।
अपने चित्रों के माध्यम से आप क्या अभिव्यक्त करना चाहती हैं पूछने पर मुक्ता कहती हैं कि खैरागढ़ का वातावरण बिल्कुल ही प्राकृतिक है। वहां शहरों की तड़क-भड़क व शोर नहीं है। वह एक साधना स्थल की तरह है और ऐसे वातावरण में रहते हुए मैं कब प्रकृतिमय हो गई पता ही नहीं चला। मेरे चित्रों में हवा पानी मिट्टी फूल, पत्ती, पतझड़, बसंत हर मौसम का असर रंगों एवं रेखाओं के माध्यम से दिखने लगा। मेरे चित्रों में नारी आकृति प्रकृति का ही रूप है। निजी जीवन के उतार चढ़ाव मेरे चित्रों में साफ नजर आते हैं। शादी के बाद मेरे चित्रों की एकल नारी के साथ-साथ एक पुरुष आकृति भी अनायास उभरने लगी। मुझे अलंकरण का भी बहुत शौक है और यह मेरे काम में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
मैं अनादि ब्रम्ह अर्थात इस सृष्टि को रचने वाले विश्वात्मा जो प्रकृति के रूप में चारों ओर व्याप्त है, पर विश्वास करती हूं और इसीलिए प्रयास करती हूं मेरे चित्रों में यही आध्यात्मिकता बनी रहे। निखरती रहे।
मुक्ता के चित्र कवि की कल्पना की तरह नजर आते हैं तभी तो वे कहती हैं कि लहरदार, घुमावदार उड़ती हुई सी बहती हुई रेखाओं में कार्य करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। ये रेखाएं कैनवस से बाहर निकलने को आतुर होती हैं क्योंकि मुझे एक दायरे में बंधने से घुटन होती है। इस बात पर मुक्ता एक कविता के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करती हैं-
ये है मेरा दायरा
और ये है मेरे हिस्से कि जगह
जहां मेरा रहना तय हुआ था
लेकिन अब क्या करूं
जब मैंने सचमुच में
पूरा आसमान देख लिया।
चित्रों के तकनीक के बारे में कहूं तो मैंने सभी प्रकार के रंगों में कार्य किया है और उस माध्यम का अपना अलग मजा है। मैंने आयल एवं एक्रेलिक में सबसे अधिक कार्य किया है। कभी-कभी नेपाली पेपर का उपयोग भी करती हूं।
शिक्षा के दौरान ही मैंने अपने सहपाठियों के साथ मिलकर बच्चों के लिए अनेक जगहों पर वर्कशाप किये। सन् 2002 में साथी समाज सेवी संस्था कोंडागांव बस्तर में बच्चों के लिए वर्कशाप किया जहां उन्हें पेंटिंग, क्राफ्ट, स्क्रीन प्रिटिंग आदि अनेक तरह की टे्रनिंग दी गई। इसके अलावा बनारस, जगदलपुर, मलाजखण्ड, भिलाई, खैरागढ़ आदि जगहों पर हमने- अनेक एक्जीबिशन किए, जहां कला को हमने वातावरण के साथ जोड़कर नए ढंग से दिखाने का प्रयास किया। यूनिर्वसिटी में ड्रामा, कविता पोस्टर, कविता बुक और अनेक तरह के फेस्टिवल (जैसे फिल्म फेस्टिवल) मना कर हमने कला को व्यापक रूप से विस्तारित करने की कोशिश की। इन सब कार्यक्रमों में 6 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला।
इसके बाद कुछ समय मैंने साथी समाज सेवी संस्था में डिजाइनर के तौर पर भी कार्य किया। वहां के कलाकारों के साथ मिलकर बस्तर के पारंपरिक डिजाइनों एवं तकनीक को लेकर ज्वेलरी डिजाइन किया। मास्क एवं पॉट्स में भी काफी कार्य किया। साथी में कार्य करते हुए इटली से आए डिजाइनरों के साथ भी कार्य करने का मौका मिला। यह बहुत अच्छा अनुभव था मेरे लिए।
इसके बाद अपनी निजी जरूरतों की पूर्ति के लिए पब्लिक स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी की। सोचा इस तरह मैं बच्चों के साथ काम कर पाऊंगी ( जिसकी मुझे हार्दिक इच्छा थी) और आर्ट फील्ड से भी जुड़ी रहूंगी, लेकिन स्कूल में आय तो हुई किन्तु बाकी के वो कार्य नहीं हो सके जो मैं चाहती थी। दरअसल आज के पब्लिक स्कूल केवल व्यवसाय का केंद्र बनकर रह गए हैं, अतएव तीन साल नौकरी करने के पश्चात मैंने नौकरी छोड़ खुद का कार्य करने का फैसला किया। ऐसा काम जिसे करने के बाद मन को शांति मिल रही है। जैसा पौधों को पानी देने के बाद लगता है। अब मैं फ्रीलॉन्स प्रेक्टिस करती हूं और बच्चों को आर्ट सिखाती हूं।
(उदंती फीचर्स)
मुक्ता दास
1 मार्च 1980 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में जन्मी मुक्ता दास वर्तमान में मास्क से जुड़ी हुई हैं। दुर्ग में पली बड़ी और प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से प्राप्त कर इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से बीएफए व एमएफए किया। एक्जीबिशन - मॉर्डन आर्ट गैलरी उड़ीसा 2004, नेहरू ऑर्ट गैलरी, भिलाई 1999-2004, ऑल इंडिया फाइन आर्ट एक्जीबिशन, लखनऊ 2000। कैम्प व वर्कशॉप - कलावत्र उज्जैन कैम्प 2001,
पता - मास्क, राम मंदिर के पास, न्यू शांति नगर, रायपुर (छ.ग.) 492001 मो. 09300983601, 09329551525। ईमेल - muktadas@ymail.com
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