प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र बोस ने यह खोज की कि मनुष्यों की ही तरह पेड़ पौधों में भी प्राण होते हैं और वे भी अन्य प्राणियों की भांति कष्ट तथा पीड़ा अनुभव करते हैं।
डॉ. बोस ने अपनी नई खोजों का जगह-जगह प्रदर्शन किया। एक बार वे इंग्लैंड गए। वे प्रयोग द्वारा यह सिद्ध करना चाहते थे कि पौधों को भी जीवों की तरह पीड़ा का अनुभव होता है, नुकीली वस्तु चुभाने से उन्हें कष्ट होता है और जहर देने से वे मर जाते हैं। उनके प्रयोगों को देखने के लिए बहुत बड़ी संख्या में नर- नारी तथा वैज्ञानिक एकत्र थे।
डॉ. बोस ने सुईं लगा कर पौधे को जहर दिया। कुछ क्षणों में ही पौधे को मुरझा जाना था, परंतु वह ज्यों का त्यों रहा। उपस्थित वैज्ञानिक हंसने लगे, परंतु बोस शांत थे। उन्हें अपनी खोज पर पूरा विश्वास था। उन्होंने सोचा, 'अगर पौधे पर इस विष का असर नहीं हुआ तो मुझ पर भी नहीं होगा। मैं भी नहीं मर सकता।'
और डॉ. बोस ने स्वयं वह जहर पीने का निश्चय किया, ज्यों ही उन्होंने शीशी उठाई, एक व्यक्ति खड़ा हो गया और उसने स्वीकार किया कि उसने जहर के स्थान पर उसी रंग का पानी भर दिया था। बोस ने विष लेकर पुन: प्रयोग किया। पौधा धीरे- धीरे मुरझा गया। इस प्रकार उन्होंने अपनी खोज की सत्यता प्रमाणित कर दी। अपनी खोजों पर उन्हें अटूट विश्वास था, इसी कारण अनेक विरोधों और बाधाओं के बावजूद वे अनवरत लगनशील रहे और एक दिन समस्त विश्व को उन्हें मान्यता देनी पड़ी।
(सर्वोत्तम से)
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