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Dec 2, 2022

कविताएँः उस घर का नाम

 - संजय कुमार सिंह

1.

मुझे नीले आसमान को मत देखने दो

उसका रंग धूसर हो जाएगा

मुझसे इन फूलों को बचाओ

ये जल जाएँगे

मैं जिस नदी में नहाऊँगी

वह सूख जाएगी।

मैं अभिशप्त हूँ

मेरी कुण्डली में लिखा हुआ है,

कि जन्म के समय धरती तीन हाथ धंस गयी थी,

पर तुम उस घर का नाम बताओ

जिस घर में लड़की के जन्म पर

थालियाँ बजती हों?

2. लोकोक्ति

दादी कहती थी

बेटा फूल तो, बेटी बबूल!

हमें बुरा लगता

पर दादी सच ही कहती थी

यह एक लोकोक्ति है

समय की आग से तपी हुई

जो दादी ने नहीं बनायी है

इसमें उसका क्या कुसूर?

भाषा में, भाव में

और विचार में हर कहीं

यही तो!

3. उपेक्षा

तुम्हारे शब्द कुछ

और बोल कुछ

कथनी और करनी में फर्क

जैसे पूजा के बाद

चीजों को फेंका जाता है

हर कहीं फेंकी जाती है स्त्री

जिन्दगी के गलियारे में

पर हमें दीखता नहीं!

हम समझते हैं

सब ठीक-ठाक है।

घर में किसी स्त्री की हँसी

किसी को झूठी नहीं लगती कभी!

4. नसीहतें

यह करो, वह करो

घर के सब काम सीखो,

नहीं तो अलोल रह जाओगी

लोग कहेंगे

रोटी भी बनाना नहीं जानती

कैसी है यह लड़की

हँसेंगे, हँसेगे सब!

आकश में उड़ो

कि जमीन पर चलो

रहोगी तो लड़की ही

इसलिए काम सीखो

5. चाह

झरने से पत्थर पर कूदती धारा

टकरा कर टूटती इच्छाएँ

लहरों के संग

आसमान से झड़कर गिरते पंख

मुरझाए फूल

आँसू से भीगी रात

औनाई हुई चक्कर काटती आत्मा

सदियों सै बौखलायी हुई हवा

जाना चाहती है दहलीज के पार

एक अनंत दुनिया

दादी कहती थी

डर ने स्त्री को उड़ने नहीं दिया।

सिर्फ कहानियों में उड़ती रहीं परियाँ!

6. ट्रेनिंग

पिता एक, माता एक

घर एक, और कानून दो।.

लड़के की इच्छा सर्वोपरि

लड़की पोंछती लालटेन और घड़ी

साफ करती जाले

फींचती पढ़ाई के साथ कपड़े

और बनाती जब-तब खाना

आत्मा पर लगे दाग को भूल कर

खुश होती माँ!

सम्पर्कः प्रिंसिपल पूर्णिया महिला कॉलेज, पूर्णिया- 854301, मो. 9431867283, email- sksnayanagar9413@gmail.com

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