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Apr 20, 2016

पानी का सही इस्तेमाल हो

पानी का सही इस्तेमाल हो

-पूनम गुजरानी
पाश्चात्य देशों में टायलेट वॉटर पर शोध की विस्तृत कार्य-योजना चल रही है ताकि उसे पीने योग्य बनाया जा सके।
पिछले दिनों एक खबर की हेडलाईन थी - पीने के लिए टायलेट वाटर। खबर पढ़कर एक पल को झटका लगा कि हम किस ओर जा रहे हैं? क्या हमारी स्थिति इतनी खराब हो गई है कि हमें पीने के लिए टायलेट वाटर का इस्तेमाल करना पड़ेगा? किन्तु यदि गहराई से चिंतन करें तो पता चलता है कि मनुष्य ने प्रकृति के साथ इतना खिलवाड़ किया है कि प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के कारण प्राकृतिक संपदाएँ अथाह होते हुए भी खटने लगी है। सभी जानते है कि हमें हवा के पश्चात सबसे ज्यादा जरूरत पानी की होती है। हमारे आहार में 70 प्रतिशत भाग पानी का होता है फिर भी क्या कारण है कि हर घर में हर क्षेत्र में पानी का दुरुपयोग देखने को मिल जायेगा।
यद्यपि हमारे यहाँ वेद, उपनिषद तथा तमाम जैन साहित्य में पानी बचाने के निर्देश हैं। चाहे फिर वो प्यास से आकुल प्राणी को पानी पिलाने में धर्म मानता हो, कुएँ, बावडी व तालाबों का संरक्षण करने में तथा नए बनवाने में भी धर्म मानता हो अथवा एक बूँ पानी में असंख्य जीवों का होना स्वीकारता हो, पर सभी बातों का उद्देश्य पानी को संरक्षित करना, उसके दुरुपयोग को रोकना ही प्रतीत होता है। इतना होने पर भी पानी का दुरुपयोग वर्षो से हो रहा है । प्रश्न उठता है कि क्या हम आने वाली पीढ़िय़ों को पानी रूपी अमृत से वंचित रखना चाहते हैं? क्या हम चाहते हैं कि वे पानी की कमी के लिए हमें दोषी ठहराएँ या फिर वे पानी के लिए तड़पते-तड़पते अपनी जान गँवा दें।
वैश्वीकरण के इस दौर में पानी भी बाजारी वस्तु हो गया है। उपभोक्ता कीमत देकर पानी खरीद रहा है। पाश्चात्य देशों में पानी की एक बोतल काफी बड़ी कीमत देकर खरीदनी पड़ती है और वहाँ थोड़े समय के लिए जाने वाला व्यक्ति पानी भी सोच समझकर पीता है। ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? दर्पण में देखें तो स्वयं अपना ही अक्स नजर आयेगा। पैसे से पानी भी तभी तक खरीदना संभव होगा जब तक पानी है। जब पानी नहीं होगा, तब ये पैसे भी किसी काम के नहीं होंगें। रहीम जी ने एक दोहे में कितनी सटीक बात कही है-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून॥
लगभग सभी हिन्दी भाषी लोगों को यह दोहा कंठस्थ होगा किन्तु इसे जीवन में उतारने वाले एक प्रतिशत से ज्यादा नहीं होंगे।
कितने आश्चर्य का विषय है कि चाँद पर पहुँच जाने वाला मानव आज भी हमारी सबसे अति आवश्यक धरोहर (पानी) को बचा पाने में अक्षम प्रतीत हो रहा है। पृथ्वी पर पानी का अतुल भंडार है। पृथ्वी के तीन हिस्से जलमय हैं; किन्तु उसमें पीने लायक पानी काफी कम मात्रा में उपलब्ध है या यूँ कहें कि जो उपलब्ध है, उसी का दुरुपयोग दिन प्रतिदिन इसकी कमी को बढ़ा रहा है। वैसे भारत में पानी पाश्चात्य देशों के मुकाबले काफी मात्रा में है। यहाँ वर्षा भी काफी अच्छी होती है। हालाँकि संसाधनों की कमी के कारण इसका पूरा उपयोग नहीं हो पाता। जैसा कि - भारत 2020- में राष्ट्रपति कलाम ने लिखा है कि भारत में होने वाली वर्षा की मात्रा को यदि बराबर सारे देश में छितरा दिया जाए तो पानी एक मीटर की गहराई तक दिखाई देगा। इस पानी को किस तरह उपयोग किया जागा यह तो वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय है तथा आने वाला समय ही बतागा कि हम इसका कितना उपयोग कर पाते हैं? किन्तु क्या वैज्ञानिकों के भरोसे हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाने से हम कर्त्तव्य की इतिश्री हो जाती है? क्या हमारा कार्य बिना पानी के चल सकता है? अगर नहीं तो फिर पानी को बचाने की जिम्मेदारी हमारी भी उतनी ही है जितनी किसी वैज्ञानिक की।
मुझे याद है कि बचपन में मेरी दादी कपड़े धोने से निकले हुए पानी को पोंछा लगाने के काम में, दाल-चावल व सब्जियाँ धोने से निकलने वाले पानी को पौधों में डालने के काम में लिया करती थी। हमारे घर में पानी का दुरूपयोग सर्वथा वर्जित था। आज ऐसे जीवन मूल्य दुर्लभ होते जा रहे हैं। हर बाथरूम में लगा हुआ बाथ-टब, खुले नलों के नीचे धुलते कपड़े और बरतन धोते या नहाते समय फव्वारें का इस्तेमाल आदि में पानी का जमकर प्रयोग होता है। आने वाले समय में पानी कोई दुर्लभ वस्तु न बन जाए, इसके लिए हमें आज से ही सावधान रहना होगा; ताकि पानी की हर कीमती बूँद को बचाया जा सके और आने वाली पीढ़ी को पानी की कमी के लिए हमें उत्तरदायी ना ठहराएँ, यही उपयुक्त होगा। पानी जीवन की पहली शर्त है। अत: पानी की बचत करने की आदत अपनी जीवन शैली में अपनाएँ, यही जीवन को सुरक्षित रखने की तरफ हमारा पहला कदम होगा। इसके साथ ही हमें बरसात के पानी को उपयोग में लाने के तरीकों को भी अपनाना होगा ताकि उसकी हर बूँद का सदुपयोग हो सके।
पानी का सही इस्तेमाल ही हमें सुखद जीवन दे सकता है, फिर कभी बिन पानी सब सून की नौबत नहीं आगी।

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