कभी तालाबों की भूमि रहा है छत्तीसगढ़
- डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र
रायपुर छत्तीसगढ़ शुरू से ही तालाबों की भूमि रहा है। ऐतिहासिक और
धार्मिक दृष्टि से ये महत्वपूर्ण रहे हैं। साथ ही यूरोपीय यात्रियों ब्लंट, बेगलर के
अलावा साधु रामचरन दास जिन्होंने भारत भ्रमण पुस्तक लिखी और मुनि कांतिसागर ने
इसके भव्यता को वैश्विक तौर पर प्रसिद्धि दिलाई है।
क्यों हैं ये प्रसिद्ध
भारत भ्रमण पुस्तक में इन
तालाबों के बारे में बताया गया है कि पुराने समय से अब तक ये तालाब कभी भी सूखे
नहीं हैं। 1977 में जब छत्तीसगढ़ में सूखा पढ़ा था तब भी ये तालाबों ने अपना
अस्तित्व नहीं खोया था।
इसलिए ये तालाब पूरे देश में चर्चित तालाब हैं,
शहर में पानी की कमी होने से या कम बारिश होने
की स्थिति बनने से इन तालाबों का सहारा लिया जाता है। ये तालाब पूरे छत्तीसगढ़ की
खूबसूरती का नजारा पेश करते हैं।
1. प्राचीन काल में रतनपुर
रियासत में 1400 तालाब होने के प्रमाण मिलते हैं। जबकि अकेले रायपुर में ही 300 से
ज्यादा तालाब होना माना गया है। वर्तमान में 120 तालाब हैं, जिनके
होने के पुख्ता सबूत हैं।
2. छत्तीसगढ़ की मौजूदा
राजधानी रायपुर चारों ओर से तालाबों से घिरी हुई है। इसमें बूढ़ा तालाब, महाराजबंध, भइया, मलसाय, खोखो, बंधवा, प्रहलदवा, तुर्की, राजकुमार
कालेज, महंत, चौबे कॉलोनी,
आमापारा का आमा, रामकुंड, आमापारा
बाजार के पास हाँडी, रामसागर, रजबंधा, जेल के अंदर,
राजा,
तेलीबांधा,
कटोरा,
नरहरेश्वर महादेव के पास के तालाब शहर को समेटे
हुए हैं।
3. बाहरी इलाके के अलावा
शहर के भीतर भी बहुत से तालाब प्राचीन समय से ही हैं, जिसका
इस्तेमाल रहवासी दैनिक क्रियाओं के लिए करते रहे हैं। इसमें कंकाली, डबरीपारा, खदान, बूढ़ा
तालाब के बाजू का तालाब जिसमें वर्तमान समय में स्टेडियम बना हुआ है, प्रसिद्ध
हैं। कुशालपुर, चंगोराभाठा,
रायपुरा,
सरोना,
टाटीबंध,
गुढ़ियारी,
कोटा,
मठपारा,
टिकरापारा में भी प्राचीन और ऐतिहासिक दृष्टि
से महत्त्वपूर्ण
तालाब हैं।
4. तालाबों का यह शहर पहले
हर तरफ से अमरइयाँ
(आम के वृहद वृक्ष) से घिरा था। हर तालाब में कमल के फूल लगाए जाते थे। लेकिन समय
और आधुनिकता के साथ-साथ इसमें परिवर्तन होता गया। मछली पालन और ठेके पर तालाब देने
के चलन ने कमल के फूलों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। अब इन तालाबों में जलकुंभी
और काई की बहुतायत है, जिससे यह इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए हैं।
5. ऐतिहासिक बूढ़ा और
रायपुरा तालाब पुराने किले से लगे हुए थे। खोखो तालाब का निर्माण कल्चुरी काल में
राजा रामचंद्र कोका ने करवाया था। प्रसिद्ध इतिहासकार सुरेंद्र नाथ मिश्र के
अनुसार संपूर्ण हिंदुस्तान में तालाबों की ऐसी सुदृढ़ व्यवस्था देखने को नहीं
मिलती। यहाँ के ताल पचरी (घाट) के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। इसे महिलाओं की सुरक्षा
और निजता को बचाए रखने के लिए पत्थरों की दीवारों से सुसज्जित किया गया था।
6. धार्मिक दृष्टि से भी
इसके खासे मायने हैं। लगभग हर तालाब किसी न किसी धार्मिक स्थल को बढ़ावा देने के
लिए बनाया गया था। दूधाधारी मंदिर के सामने महाराज बंध, बूढ़ेश्वर
नाथ से लगा बूढ़ातालाब, कंकाली मंदिर के सामने कुंडनुमा तालाब जिसे वर्तमान में
कंकाली तालाब कहते हैं। रामसागर तालाब का निर्माण बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर
ने माता-पिता की याद में करवाया था। इसी तरह दीनानाथ साव ने तेलीबांधा तालाब को
स्वरूप दिया।
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